दृष्टि का नियंत्रण जब मन के पास होता है तब व्यक्ति दृश्य और उसका विश्लेषण अपने विवेकानुसार न करके मन की इच्छानुसार करता है |यही सत्य और असत्य का भेद है | सपना व्यक्ति मन की इच्छानुसार देखता है ,अपने विवेकानुसार नहीं |इसी कारण से व्यक्ति सपने को असत्य कह देता है |परन्तु सपना असत्य नहीं है क्योंकि मन की भावना को ,अपने तरीके से ,स्वयं को ही इस भावना से अवगत कराने का नाम ही सपना है | इस कारण से सपना भी सत्य है ,असत्य नहीं | असत्य तो उसे देखने की दृष्टि बना देती है |जब तक मन में यह भावना नहीं होगी कि मेरी कोई भी कामना अधूरी न रहे ,सपना देखना संभव ही नहीं होगा । संसार में सपने प्रत्येक के होते हैं और उनकी अभिव्यक्ति और पूर्णता जब तक वास्तविक जीवन में नहीं होगी तब तक सपने चलते रहेंगे । एक सपना पूरा होते ही नए सपने का जन्म हो जाता है । इच्छाओं के कारण भिखारी को राजा बनने के सपने आते हैं और सबकुछ समाप्त हो जाने के भय से राजा को भिखारी हो जाने के सपने आते हैं ,जैसा कि राजा जनक के साथ हुआ था । सपनों के जाल से निकलने के लिए इच्छाओं और कामनाओं के त्याग के साथ साथ भय का त्याग भी आवश्यक है । परमात्मा की तरफ चलने पर ही आप इन दोनों से मुक्ति पा सकते हैं ।
इच्छाओं,कामनाओं और भय से मुक्ति के लिए प्रथमतः ज्ञान आवश्यक है । ज्ञान आपको इन सब से मुक्ति दिला सकता है । ज्ञान वह अग्नि है जो आपके सब कर्मों तक को भस्मीभूत कर देती है । गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने ज्ञान की महिमा इसी रूप में स्पष्ट की है ।
यथैधांंसि समिध्दोSग्निर्भस्मसात्कुरुतेSर्जुन।
ज्ञानाग्नि: सर्वकर्माणि भस्मसात्कुरुते तथा ॥ गीता ४/३७ ॥
अर्थात,हे अर्जुन ! जैसे प्रज्वलित अग्नि समस्त इंधनोंको भस्ममय कर देती है ,वैसे ही ज्ञानरूप अग्नि सम्पूर्ण कर्मों को भस्ममय कर देता है ।
ज्ञान व्यक्ति को एक व्यापक दृष्टि उपलब्ध करवाता है । दृष्टि में परिवर्तन के फलस्वरूप ही आप सत्य को पहचान सकते हैं अन्यथा जो भी सत्य आप देख पाते हैं उसी को वास्तविक सत्य मानते हुए स्वीकार करना होगा । आप आज जो भी देख रहे हैं वह भी सत्य है परन्तु यह सत्य मात्र उस अंधकार के समान है जिसे ज्ञानी पुरुष कम प्रकाश की उपस्थिति कहते है । पूर्ण सत्य जानने के लिए आपको अंधकार अर्थात कम प्रकाश से अधिक प्रकाश की ओर जाना होगा । तभी आप वास्तविक सत्य तक पहुँच पाएंगे । आपकी दृष्टि भी जब हनुमानजी की तरह,स्थूल से कारण दृष्टि तक की यात्रा संपन्न कर लेगी तब आप पाएंगे कि चारों ओर सत्य ही सत्य है ।
क्रमशः
|| हरिः शरणम् ||
इच्छाओं,कामनाओं और भय से मुक्ति के लिए प्रथमतः ज्ञान आवश्यक है । ज्ञान आपको इन सब से मुक्ति दिला सकता है । ज्ञान वह अग्नि है जो आपके सब कर्मों तक को भस्मीभूत कर देती है । गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने ज्ञान की महिमा इसी रूप में स्पष्ट की है ।
यथैधांंसि समिध्दोSग्निर्भस्मसात्कुरुतेSर्जुन।
ज्ञानाग्नि: सर्वकर्माणि भस्मसात्कुरुते तथा ॥ गीता ४/३७ ॥
अर्थात,हे अर्जुन ! जैसे प्रज्वलित अग्नि समस्त इंधनोंको भस्ममय कर देती है ,वैसे ही ज्ञानरूप अग्नि सम्पूर्ण कर्मों को भस्ममय कर देता है ।
ज्ञान व्यक्ति को एक व्यापक दृष्टि उपलब्ध करवाता है । दृष्टि में परिवर्तन के फलस्वरूप ही आप सत्य को पहचान सकते हैं अन्यथा जो भी सत्य आप देख पाते हैं उसी को वास्तविक सत्य मानते हुए स्वीकार करना होगा । आप आज जो भी देख रहे हैं वह भी सत्य है परन्तु यह सत्य मात्र उस अंधकार के समान है जिसे ज्ञानी पुरुष कम प्रकाश की उपस्थिति कहते है । पूर्ण सत्य जानने के लिए आपको अंधकार अर्थात कम प्रकाश से अधिक प्रकाश की ओर जाना होगा । तभी आप वास्तविक सत्य तक पहुँच पाएंगे । आपकी दृष्टि भी जब हनुमानजी की तरह,स्थूल से कारण दृष्टि तक की यात्रा संपन्न कर लेगी तब आप पाएंगे कि चारों ओर सत्य ही सत्य है ।
क्रमशः
|| हरिः शरणम् ||
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