जब समस्त पूर्व निर्धारित नियम ही सत्य है ,तो फिर यहाँ असत्य कुछ भी नहीं है । परमात्मा ने इस संसार को सुचारू रूप से चलाने के लिए कुछ नियम बनाये है । वे सभी नियम इस सृष्टि के प्रारंभ से ही समस्त पर समान रूप से लागू हैं । इन नियमों की यह विशेषता है कि किसी भी परिस्थिति में यह नियम परिवर्तित नहीं होते हैं और न ही किये जा सकते हैं । किसी एक नियम को आप अगर झुठला भी रहे हैं तो वह भी किसी प्रकृति के ही ऐसे किसी अन्य नियम के अंतर्गत ही किया जा सकता है । उससे वह नियम असत्य नहीं हो जाता । जैसे भारतीय संविधान और दंडसंहिता में अनेक नियम बने हुए है । जिन्हें धाराएँ कहा जाता है । किसी एक धारा को दूसरी धारा से कुछ संशोधित किया जा सकता है । जैसे राजकीय सेवा के लिए कुछ नियम बने हुए हैं,उनमे एक नियम है -सरकारी सेवा में आने की अधिकत्तम आयु सीमा । फिर आगे एक नियम और आता है जिसमे कुछ वर्गों को इस अधिकत्तम आयु सीमा में पांच वर्ष की छूट दी गई है । इस नियम के होने का अर्थ यह बिलकुल भी नहीं है कि इससे पहले वाला नियम असत्य है । दोनों ही नियम सत्य है ।
प्रकृति के नियमों का एक उदाहरण दूं । जल की गति को अधोगति कहा जाता है । यह प्रकृति का नियम है कि जल को अगर स्वतंत्र रूप से छोड़ दिया जाय तो वह ऊपर से नीचे की ओर गति करेगा । यह जल की गति का नियम सृष्टि के प्रारंभ से चला आ रहा है और इसमे आज तक कोई परिवर्तन नहीं हुआ है । इसलिए इसे सत्य कहा गया है । जल को विद्युत् मशीन से ऊपर की गति प्रदान की जा सकती है। इसका अर्थ यह नहीं है कि जल का अधोगति नियम असत्य है । इससे पहले वाला नियम असत्य नहीं हो जाता । दूसरा नियम कहता है कि बाह्य बल से किसी भी वस्तु को गति दी जा सकती है । ज्योंही यह बाह्य बल समाप्त होगा ,जल पुनः अपनी प्राकृतिक गति प्राप्त कर ऊपर से नीचे की ओर बहने लगेगा । इस प्रकार जो भी प्रकृति के नियम हैं,वे शाश्वत और सत्य है ,असत्य कुछ भी नहीं है । मानव को इन नियमों का हर हालत में पालन करना ही पड़ता है । इन नियमों के विरुद्ध जो भी चलने का प्रयास करता है वह दुःख को प्राप्त होता है । जो व्यक्ति नियमों का पालन करते हुए ,एक नियम से दूसरे नियम को अधिक प्रभावी या निष्प्रभावी करने की कला जान कर उपयोग में लेता है ,उसका जीवन सदैव सुखपूर्वक चलता रहता है ।
हम सदैव ही परमात्मा से अपने सुख की प्रार्थना करते हैं । परमात्मा ने हमें सुख प्राप्त करने के लिए प्रकृति के नियम दिए हैं । उन नियमों पर चलकर ही हम सुख प्राप्त कर सकते हैं । परमात्मा के बनाये नियमों के विरुद्ध जाकर आज तक किसी को अपने जीवन में सुख और शांति नसीब नहीं हुई है ,चाहे वह मंदिरों,मस्जिदों और गुरुद्वारों में घंटों बैठकर परमात्मा से कितनी भी लम्बी प्रार्थनाएं कर ले ।प्रकृति और परमात्मा के बनाये गए शाश्वत नियम ही सत्य है । अतः कारण दृष्टि यही कहती है कि जब सब कुछ उस परमात्मा के ही अंश है और परमात्मा भी अपने बनाये नियमों के विरुद्ध नहीं जाता ,तो फिर उन नियमों की पालना करना ही सच्ची आध्यात्मिकता है । जब हम अध्यात्म को पूर्ण रूप से जान लेते हैं तो फिर सब कुछ सत्य होना ही समझ में आता है ।
क्रमशः
|| हरिः शरणम् ||
प्रकृति के नियमों का एक उदाहरण दूं । जल की गति को अधोगति कहा जाता है । यह प्रकृति का नियम है कि जल को अगर स्वतंत्र रूप से छोड़ दिया जाय तो वह ऊपर से नीचे की ओर गति करेगा । यह जल की गति का नियम सृष्टि के प्रारंभ से चला आ रहा है और इसमे आज तक कोई परिवर्तन नहीं हुआ है । इसलिए इसे सत्य कहा गया है । जल को विद्युत् मशीन से ऊपर की गति प्रदान की जा सकती है। इसका अर्थ यह नहीं है कि जल का अधोगति नियम असत्य है । इससे पहले वाला नियम असत्य नहीं हो जाता । दूसरा नियम कहता है कि बाह्य बल से किसी भी वस्तु को गति दी जा सकती है । ज्योंही यह बाह्य बल समाप्त होगा ,जल पुनः अपनी प्राकृतिक गति प्राप्त कर ऊपर से नीचे की ओर बहने लगेगा । इस प्रकार जो भी प्रकृति के नियम हैं,वे शाश्वत और सत्य है ,असत्य कुछ भी नहीं है । मानव को इन नियमों का हर हालत में पालन करना ही पड़ता है । इन नियमों के विरुद्ध जो भी चलने का प्रयास करता है वह दुःख को प्राप्त होता है । जो व्यक्ति नियमों का पालन करते हुए ,एक नियम से दूसरे नियम को अधिक प्रभावी या निष्प्रभावी करने की कला जान कर उपयोग में लेता है ,उसका जीवन सदैव सुखपूर्वक चलता रहता है ।
हम सदैव ही परमात्मा से अपने सुख की प्रार्थना करते हैं । परमात्मा ने हमें सुख प्राप्त करने के लिए प्रकृति के नियम दिए हैं । उन नियमों पर चलकर ही हम सुख प्राप्त कर सकते हैं । परमात्मा के बनाये नियमों के विरुद्ध जाकर आज तक किसी को अपने जीवन में सुख और शांति नसीब नहीं हुई है ,चाहे वह मंदिरों,मस्जिदों और गुरुद्वारों में घंटों बैठकर परमात्मा से कितनी भी लम्बी प्रार्थनाएं कर ले ।प्रकृति और परमात्मा के बनाये गए शाश्वत नियम ही सत्य है । अतः कारण दृष्टि यही कहती है कि जब सब कुछ उस परमात्मा के ही अंश है और परमात्मा भी अपने बनाये नियमों के विरुद्ध नहीं जाता ,तो फिर उन नियमों की पालना करना ही सच्ची आध्यात्मिकता है । जब हम अध्यात्म को पूर्ण रूप से जान लेते हैं तो फिर सब कुछ सत्य होना ही समझ में आता है ।
क्रमशः
|| हरिः शरणम् ||
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