Tuesday, May 20, 2014

सत्य - असत्य |-२२

                                         अध्यात्म-रामायण में एक प्रसंग आता है ,वह मैं आपके साथ बांटना चाहूँगा यह प्रसंग सत्य और असत्य के भ्रम के निवारण में सहायक सिद्ध होगा।वनवास समाप्ति के बाद भगवान श्रीराम अयोध्या लौट चुके थे। राज्याभिषेक हो गया था ।वनवास और लंका-युद्ध के सभी साथी वापिस अपने अपने स्थानों को लौट चुके थे । हनुमान के अति आग्रह करने पर भगवान ने उन्हें अपने पास सेवक के रूप में रहने को कह दिया था । दिन रात हनुमान भगवान श्रीराम और जानकी की सेवा में रत रहते थे ।  हनुमान ,राम के प्रिय भक्त हैं । अतिरिक्त समय में भगवान श्रीराम अपने भक्त को तात्विक ज्ञान देते रहते हैं ।
                                  एक बार ऐसे ही अतिरिक्त समय में भगवान श्रीराम और हनुमान बैठे बातें कर रहे थे । अचानक श्रीराम ने हनुमान से पूछा-"हनुमान ! एक बात बताओ । तुम कौन हो और मैं कौन हूँ ?"हनुमान तो भगवान श्रीराम के अनन्य भक्त ठहरे । वे भगवान के पूछने का निहितार्थ समझ गए । उन्होंने प्रश्न की गंभीरता को समझते हुए बड़ी ही शालीनता के साथ उत्तर दिया । हनुमान बोले-"भगवन ! अगर स्थूल दृष्टि से देखा जाये तो आप मानव हैं और मैं एक वानर । इस दृष्टि को अगर और सूक्ष्म करे अर्थात अगर सूक्ष्म दृष्टि से देखा जाये,सूक्ष्म रूप से देखा जाये तो आप मेरे प्रभु हैं और मैं आपका सेवक हूँ । परन्तु इससे भी अतिसूक्ष्म दृष्टि भी होती है जिसको कारण स्वरुप कहा जाता है । अगर उस दृष्टि से देखा जाये यानि कारण स्वरुप से देखा जाये तो जो आप हैं, वही मैं हूँ । "
                                    यह वह स्थिति है जब भक्त को सम्पूर्ण ज्ञान की उपलब्धि हो जाती है । ऐसी स्थिति में भक्त ही भगवान हो जाता है । वैसे कारण स्वरुप से पत्येक व्यक्ति भी वैसे भी भगवान ही होता है ,परन्तु बुद्धि पर पड़े अज्ञान के परदे के कारण वह कारण स्वरुप को समझ नहीं पाता । जिस समय ज्ञान प्राप्त हो जाता है तब अभी तक का सत्य कहीं बहुत पीछे छूट जाता है और वास्तविक सत्य सामने आ जाता है । हनुमान ने जो तीन अवस्थाएं बताई है,वे तीनो ही सत्य है । अंतर हमारी दृष्टि का ही है । संसार की दृष्टि स्थूल होती है,इस कारण से प्रत्येक व्यक्ति अन्य सभी से अपने को अलग समझता है । आध्यात्मिक दृष्टि से जब परिपक्वता आती है तो यह भेद धीरे धीरे समाप्त होने लगता है । जब यह भेद पूर्णतया समाप्त हो जाता है तब  रहा सहा अव्यक्त और व्यक्त का भेद भी मिट जाता है ।
                                    जो अव्यक्त है वह व्यक्त हो सकता है और व्यक्त को भी एक दिन अव्यक्त होना है । जब ऐसा होना ही सत्य है तो फिर हनुमान और राम में अंतर ही क्या रह जायेगा ? यही तो अंतिम और शाश्वत सत्य है ।
क्रमशः
                                                || हरिः शरणम् ||       

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