जिस प्रकार हनुमानजी ने भगवान श्रीराम के प्रश्न का उत्तर दिया,वह सत्य को ही प्रकाशित करने वाला है |हनुमान के उत्तर के तीन भाग है अर्थात श्रीराम और हनुमान कौन है और उनका आपस में क्या सम्बन्ध है, इसका उत्तर उन्होंने तीन बातों को ध्यान में रखते हुए दिया है |प्रथम-स्थूल दृष्टि ,दूसरी सूक्ष्म दृष्टि और तीसरी कारण दृष्टि |
किसी वस्तु,विषय या परिदृश्य को देखने का नाम ही दृष्टि है |दृष्टि से देखे गए घटनाक्रम को ही सत्य माना गया है |इसीलिए कानों सुनी से आँखों देखी का महत्व अधिक माना गया है | कानों सुना असत्य भी हो सकता है,जैसा कि आचार्य द्रोण के साथ हुआ था परन्तु आँखों की दृष्टि से देखा गया असत्य नहीं हो सकता |आँखों से दृष्टि किस प्रकार और कहाँ तक जाती है,दृश्य उसी प्रकार देखा जाता है |किसी भी दृश्य का अवलोकन करने के लिए दो साधनों की आवश्यकता होती है -प्रथम ,प्रतिबिम्ब बनाने वाले साधन की |प्रतिबिम्ब बनाने का साधन इस मनुष्य शरीर में आँख है,जो पांच ज्ञानेन्द्रियों में से एक है | दूसरा साधन है,मस्तिष्क |मस्तिष्क उस प्रतिबिम्ब का विश्लेषण करता है |मनुष्य का मस्तिष्क संसार में अन्य सभी प्राणियों के मस्तिष्क से अधिक विकसित है |एक तीसरा अन्य माध्यम या साधन भी है जो अपरोक्ष रूप से दृश्य और दृष्टि को प्रभावित करता है ,वह है मन |मन एक ऐसा माध्यम है जो कभी आँख पर हावी हो जाता है और कभी मस्तिष्क में स्थित बुद्धि पर |जब मन आँख पर अपना प्रभुत्व स्थापित करता है तब व्यक्ति वही दृश्य देखता है जो मन उसे दिखलाना चाहता है |हालाँकि आँख के दृष्टिपटल पर प्रतिबिम्ब प्रकृति के नियमों के अनुसार सत्य बनता है परन्तु मन इस प्रतिबिम्ब के सही संकेत मस्तिष्क तक पहुँचने से रोक देता है | मेरे कहने का अर्थ यह है कि मस्तिष्क तक सही संकेत उस प्रतिबिम्ब के नहीं पहुँच पाते | ऐसे में उस प्रतिबिम्ब का सही विश्लेषण नहीं हो पाता | इसी प्रकार जब मन ,व्यक्ति के मस्तिष्क पर हावी होता है,बुद्धि को अधिग्रहित कर लेता है ,तब प्रतिबिम्ब के संकेत आँख के दृष्टिपटल से मस्तिष्क तक तो सत्य ही पहुंचते हैं परन्तु बुद्धि उसका आकलन और विश्लेषण सही नहीं कर पाती है |
मन का इन दोनों साधनों पर प्रभाव व्यक्ति की मनोदशा प्रदर्शित करता है |जब तक व्यक्ति मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं होगा तब तक उसकी दृष्टि सही नहीं हो सकती | ऐसे में सब कुछ सत्य होते हुए भी असत्य प्रतीत हो सकता है |सब कुछ सत्य होने के बावजूद भी मन इसे असत्य कर देता है |इसी कारण से हमारे सनातन शास्त्रों ने मन पर नियंत्रण स्थापित करने को सबसे अधिक महत्त्व दिया है |मन पर नियंत्रण होते ही सब ओर सत्य ही सत्य नज़र आएगा क्योंकि सत्य के अतिरिक्त यहाँ कुछ अन्य है भी नहीं |
क्रमशः
|| हरिः शरणम् ||
किसी वस्तु,विषय या परिदृश्य को देखने का नाम ही दृष्टि है |दृष्टि से देखे गए घटनाक्रम को ही सत्य माना गया है |इसीलिए कानों सुनी से आँखों देखी का महत्व अधिक माना गया है | कानों सुना असत्य भी हो सकता है,जैसा कि आचार्य द्रोण के साथ हुआ था परन्तु आँखों की दृष्टि से देखा गया असत्य नहीं हो सकता |आँखों से दृष्टि किस प्रकार और कहाँ तक जाती है,दृश्य उसी प्रकार देखा जाता है |किसी भी दृश्य का अवलोकन करने के लिए दो साधनों की आवश्यकता होती है -प्रथम ,प्रतिबिम्ब बनाने वाले साधन की |प्रतिबिम्ब बनाने का साधन इस मनुष्य शरीर में आँख है,जो पांच ज्ञानेन्द्रियों में से एक है | दूसरा साधन है,मस्तिष्क |मस्तिष्क उस प्रतिबिम्ब का विश्लेषण करता है |मनुष्य का मस्तिष्क संसार में अन्य सभी प्राणियों के मस्तिष्क से अधिक विकसित है |एक तीसरा अन्य माध्यम या साधन भी है जो अपरोक्ष रूप से दृश्य और दृष्टि को प्रभावित करता है ,वह है मन |मन एक ऐसा माध्यम है जो कभी आँख पर हावी हो जाता है और कभी मस्तिष्क में स्थित बुद्धि पर |जब मन आँख पर अपना प्रभुत्व स्थापित करता है तब व्यक्ति वही दृश्य देखता है जो मन उसे दिखलाना चाहता है |हालाँकि आँख के दृष्टिपटल पर प्रतिबिम्ब प्रकृति के नियमों के अनुसार सत्य बनता है परन्तु मन इस प्रतिबिम्ब के सही संकेत मस्तिष्क तक पहुँचने से रोक देता है | मेरे कहने का अर्थ यह है कि मस्तिष्क तक सही संकेत उस प्रतिबिम्ब के नहीं पहुँच पाते | ऐसे में उस प्रतिबिम्ब का सही विश्लेषण नहीं हो पाता | इसी प्रकार जब मन ,व्यक्ति के मस्तिष्क पर हावी होता है,बुद्धि को अधिग्रहित कर लेता है ,तब प्रतिबिम्ब के संकेत आँख के दृष्टिपटल से मस्तिष्क तक तो सत्य ही पहुंचते हैं परन्तु बुद्धि उसका आकलन और विश्लेषण सही नहीं कर पाती है |
मन का इन दोनों साधनों पर प्रभाव व्यक्ति की मनोदशा प्रदर्शित करता है |जब तक व्यक्ति मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं होगा तब तक उसकी दृष्टि सही नहीं हो सकती | ऐसे में सब कुछ सत्य होते हुए भी असत्य प्रतीत हो सकता है |सब कुछ सत्य होने के बावजूद भी मन इसे असत्य कर देता है |इसी कारण से हमारे सनातन शास्त्रों ने मन पर नियंत्रण स्थापित करने को सबसे अधिक महत्त्व दिया है |मन पर नियंत्रण होते ही सब ओर सत्य ही सत्य नज़र आएगा क्योंकि सत्य के अतिरिक्त यहाँ कुछ अन्य है भी नहीं |
क्रमशः
|| हरिः शरणम् ||
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