दानं धर्मश्च विद्या च रूपं शीलं कुलं तथा |
सुखमायुर्यशश्चैव नव गोप्यानि यत्नतः || चाणक्य नीति शास्त्र ||
दिया हुआ दान, किया हुआ शुभ कार्य, अपनी विद्या, अपना सौन्दर्य, उत्तम स्वभाव,
अपने खानदान की बातें, सुख के साधन, आयु और कीर्ति की बातें; ये नौ वस्तुएं गोपनीय
हैं, इनका ढिंढोरा नहीं पीटना चाहिए |
|| हरिः शरणम् ||
No comments:
Post a Comment