छिन्नोsपि चन्दनतरुर्न जहाति गंधम् ,
वृद्धोsपि वारणपतिर्न जहाति लीलाम् |
यंत्रार्पितो मधुरतां न जहाति चेक्षुः,
क्षीणोsपि न त्यजति शीलगुणान् कुलीनः ||चाणक्यनीति-15/18 ||
चन्दन का वृक्ष कटने पर भी सुगंध का त्याग नहीं करता, बुढा हाथी भी विनोद करना
नहीं छोड़ता, कोल्हू में डाला हुआ ईख भी मिठास का त्याग नहीं करता; ऐसे में अच्छे
कुल का व्यक्ति क्षीण होने पर भी अथवा बुरी परिस्थितियों में भी उत्तम स्वभाव नहीं
छोड़ता |
|| हरिः शरणम् ||
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