Monday, September 26, 2016

चाणक्य-नीति-3

                  जलबिन्दुनिपातेन क्रमशः पूर्यते घटः |
                  स हेतु: सर्व विद्यानां धर्मस्य च धनस्य च || चाणक्यनीति-12/22 ||

                 पानी की एक एक बूंद टपकने से धीरे धीरे घड़ा भर जाता है | इसी प्रकार थोडा थोडा सीखते रहने से विधाएं, थोडा थोडा करते रहने से धर्म और धन का भी संचय हो जाता है |
                          ||हरिः शरणम् ||

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