दिनांक-19/9/2016
–सायं कालीन सत्र –
आज सायं कालीन प्रवचन का प्रारम्भ
करते हुए आचार्य श्री गोविन्द राम शर्मा ने पूर्व के तीन दिनों में
बताये गए उपाय नाम-स्मरण, प्रार्थना और भागवत-प्रेम को संक्षेप में दोहराया और फिर
चौथा सूत्र बताते हुए कहा कि परमात्मा को शीघ्र पाने का सत्संग और स्वाध्याय भी एक
साधन है | सत्संग की महिमा को समझाते हुए उन्होंने रामचरितमानस से कई चौपाइयों को
उद्घृत किया | सत्संग समान इस संसार में रहते हुए जीवन-मुक्त होने का अन्य कोई सरल
उपाय नहीं है | सत्संग में वक्ता और श्रोताओं का किस प्रकार का होना चाहिए, उसको समझाते हुए आचार्य जी
ने कहा कि वक्ता ज्ञानी होने के साथ-साथ उसका अनुभाव सिद्ध भी होना
आवश्यक है | अनुभव सिद्ध होने से आशय है कि वक्ता ने उस ज्ञान को जीवन में उतारते
हुए उसको अनुभव किया हो अन्यथा केवल ज्ञान को मुख से बोल देने मात्र से उसका असर
नहीं दिखाई देगा | श्रोता को दत्त-चित्त होकर वक्ता को श्रद्धा के सत्रह सुनना चाहिए
| सत्संग में प्रवचन सुनकर उसपर मनन-चिंतन करते हुए आत्मसात करना चाहिए तभी सत्संग
की सार्थकता है |
सत्संग सभी प्रकार के मोह को
तत्काल नष्ट कर देता है | इस बात को आचार्य जी
ने रामचरितमानस के एक प्रसंग से
स्पष्ट किया | त्रेता युग में जब भगवान श्री राम नागपाश में बंध गए थे तब उस बंधन
से मुक्त करने के लिए गरुड़ को बुलाया गया था | गरुड़ ने भगवान के बंधन काट दिए थे |
इस कारण उसके मन में मोह पैदा हो गया था, एक प्रकार के अहंकार ने उसके भीतर जन्म ले लिया था कि
सांसारिक प्राणियों के भाव बंधन काटने वाले को नागपाश के बंधन से मैंने ही मुक्त
किया था | शंकर ने उसे इस मोह और अहंकार से मुक्त होने के लिए काकभुसुंडि जी के पास सत्संग करने के लिये भेजा | काकभुसुंडि
जी के आश्रम क्षेत्र में पहुंचते ही आधा मोह नष्ट हो गया क्योंकि उस आश्रम में सतत
सत्संग चलता रहता था |शेष आधा मोह काक से
सत्संग करने से नष्ट हो गया | ऐसा प्रभाव है सत्संग का |
सत्संग के साथ-साथ शास्त्रों का पढ़ना
भी व्यक्ति को समस्त प्रकार के दोषों से मुक्त कर देता है | इसलिए शास्त्रों से ज्ञान प्राप्त कर एक अनुभव सिद्ध महात्मा अथवा सन्त से सत्संग करना परमात्मा की
प्राप्ति शीघ्र ही करवा देता है | सत्संग और स्वाध्याय की भूमिका परमात्मा
प्राप्ति में महत्वपूर्ण है |
|| हरिः
शरणम् ||
दिनांक-20/9/2016-प्रातःकालीन
सत्र –
आज प्रातः 9.30 बजे अग्रसेन भवन,
सुजानगढ़ में प्रवचन प्रारम्भ करते हुए कहा कि परमात्मा तो आपसे मिलने को तैयार होकर
खड़े हैं, देरी तो आपकी तरफ से है | शरणागति को और अधिक स्पष्ट करते हुए आचार्य
श्री गोविन्द राम शर्मा ने कहा कि आदि शंकराचार्य कहते थे कि शरणागत होने के लिए प्रत्येक
प्राणी में तीन विशेषताएं होनी आवश्यक हैं | प्रथम तो उसका मनुष्य होना आवश्यक है |
मनुष्य के अतिरिक्त अन्य किसी भी योनि में परमात्मा को प्राप्त करने की क्षमता
नहीं है | यहाँ तक कि देवता भी परमात्मा को प्राप्त करने के लिए मनुष्य योनि को
तरसते हैं | दूसरी विशेषता जो कि प्राणी में होनी चाहिए वह
है, मुमुक्षा | मुमुक्षा का अर्थ है लगन | अगर मनुष्य योनि को प्राप्त करने के
उपरांत भी परमात्मा को प्राप्त करने की इच्छा मन में पैदा नहीं होती, तो फिर यह
मनुष्य जन्म भी बेकार है | तीसरी मुख्य विशेषता होनी चाहिए, सन्त सानिध्य प्राप्त
करने की, सत्संग में जाकर अनुभव सिद्ध महात्मा से ज्ञान प्राप्त करने की | सन्त
सानिध्य से शरणागत होने का महत्त्व स्पष्ट
हो जाता है |
मनुष्य योनि को प्राप्त करने के बाद
जीव अपनी कामनाएं पूरी करने में व्यस्त हो जाता है और परमात्मा को भूल जाता है |
जबकि उसको सदैव याद रखना चाहिए कि इस संसार में आकर जो कुछ भी मिलेगा, वह प्रारब्ध
के अनुसार ही उपलब्ध होगा | प्रारब्ध से अर्थ और काम प्राप्त होते हैं जबकि
पुरुषार्थ से व्यक्ति धर्म और मोक्ष को प्राप्त कर सकता है | प्रारब्ध पूर्व जन्म का पुरुषार्थ है जो इस जन्म में प्रत्येक
स्थिति में मिलना निश्चित है, उसको कोई रोक नहीं सकता | अतः मनुष्य को अपने इस
मनुष्य जीवन में धर्म और मोक्ष के लिए ही पुरुषार्थ करना चाहिए | व्यक्ति विभिन्न इच्छाएं
और कामनाएं मन में रखकर पुरुषार्थ करता है परन्तु उसको सांसारिक वस्तुएं तो प्रारब्ध अनुसार ही
उपलब्ध होंगी | ब्रह्मलीन स्वामी राम सुख दासजी कहा करते थे कि सांसारिक वस्तुओं
को प्राप्त करने के लिए पुरुषार्थ, प्रारब्ध और इच्छा, इन तीनों का होना आवश्यक है परन्तु परमात्मा को
प्राप्त करने के लिए एक मात्र उसे प्राप्त करने की इच्छा होना ही पर्याप्त है |
स्वामी जी इस सूत्र को अति महत्वपूर्ण सूत्र होना बताते थे और कहते थे कि परमात्मा
की इच्छा में अपनी इच्छा मिला दो आपको परमात्मा अवश्य ही मिल जायेंगे |
सत्र का समापन आचार्य जी ने एक
भजन ‘कृपा बरस रही है जी बरस रही’ को गाकर इसका मर्म स्पष्ट किया | यह भजन शरणागति
को एक दम स्पष्ट कर देता है |
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ.प्रकाश
काछवाल
|| हरिः
शरणम् ||
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