Sunday, June 19, 2016

प्रेय से श्रेय की ओर-4

जब व्यक्ति के भीतर मुमुक्षा होती है, तब वह भूख और प्यास सब कुछ भूल जाता है | शारीरिक भूख और प्यास इस अनित्य शरीर से सम्बंधित है, इस भौतिक शरीर से सम्बंधित है जबकि आत्मिक भूख यानि मुमुक्षा आत्म-कल्याण से सम्बंधित है | भूख और प्यास प्रेय के अंतर्गत आती है जबकि मुमुक्षा श्रेय का मार्ग है | भूख और प्यास शांत होने पर सांसारिक सुख मिलता है परन्तु समय पाकर  यह भूख पुनः जाग्रत हो उठती है और व्यक्ति पुनः दौड़ पड़ता है, बाहर इस संसार में, इसको शांत करने के लिए | मुमुक्षा को शांत करने के लिए मनुष्य को संसार को त्यागकर स्वयं के भीतर प्रवेश करना पड़ता है | मुमुक्षा  के शांत हो जाने पर मनुष्य को अतुलनीय आनन्द प्राप्त होता है | नचिकेता को भूख तो थी परन्तु वह भूख आत्म-कल्याण की थी, शारीरिक नहीं | शारीरिक भूख को वरियता देने वाला वरदान में भौतिक सुख सुविधाएँ मांगता है जबकि आत्म-कल्याण के लिए भूखा व्यक्ति आत्म-ज्ञान प्राप्त करने का वर मांगता है | जिसकी जैसी मांग होती है, परमात्मा उसको उसी अनुरूप देता है | नचिकेता इस दूसरी श्रेणी का बालक है, वह मुमुक्षु है |     

          नचिकेता ने जो पहले दो वर मांगे वे इस विषय से सम्बंधित नहीं है, अतः पहले दो को यहीं पर छोड़कर हम तीसरे वरदान की तरफ चलते हैं | नचिकेता ने तीसरा वर माँगा-‘ब्रह्म विद्या’ प्राप्त करने का | यम ने उसको ब्रह्म विद्या के बदले अन्य कई भोग प्राप्त कर लेने का प्रलोभन दिया परन्तु नचिकेता ब्रह्म विद्या प्रदान करने की जिद्द पर ही अडा रहा | ब्रह्म विद्या का यह प्रसंग कठोपनिषद की दूसरी वल्ली में वर्णित है |
    प्रेय और श्रेय का वर्णन जो कठोपनिषद में आता है वह आपके समक्ष प्रस्तुत है | इस वर्णन को पढ़ने से पता चलता है कि ब्रह्म-विद्या प्राप्त करने का वास्तविक अधिकारी कौन होता है ? ब्रह्म-विद्या आज भले ही हमारे शास्त्रों में लिखी पड़ी हो, परन्तु इन शास्त्रों को भी आज कौन पढ़  रहा है ? प्रेय का अनुगामी तो शास्त्रों को देखकर ही बिदक जाता है और श्रेय का अनुगामी, जैसे तैसे शास्त्रों में इसे खोज ही लेता है | हम ऋणी हैं हमारी इस कठोपनिषद के, जो इसके माध्यम से ब्रह्म-विद्या को जान सकते हैं |
                  || हरिः शरणम् ||

2 comments:

  1. Bali 2 vardaan la but ulekhh Karen ki kripa late.

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    1. https://hindi.webdunia.com/sanatan-dharma-article/nachiketa-yama-dialogue-116021900031_1.html

      mere prashn ka uttar yahan par hai

      dhanyawaad

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