Tuesday, June 14, 2016

भक्ति-समापन किश्त

              भक्ति का मार्ग सर्वोत्तम मार्ग है | ज्ञान प्राप्त करके भी आपको शांति मिले, यह आवश्यक नहीं है परन्तु भक्ति में आपको शांति अवश्य ही मिलेगी यह शतप्रतिशत सत्य है | मनुष्य जीवन भर भटकता रहता है, अर्थोपार्जन के लिए, जिससे भविष्य में सुख और शांति का आनंद ले सके | परन्तु क्या अर्थ से कभी शांति खरीदी जा सकती है ? मैं कहता हूँ कि नहीं क्योंकि शांति अनमोल है | शांति बाहर संसार में खोजने से नहीं मिलती अथवा पैसों से नहीं खरीदी जा सकती | शांति प्राप्त होती है, अपने भीतर प्रवेश करने से, आत्म-ज्ञान से | संसार की सभी मूल्यवान वस्तुओं का शांति के सामने कुछ भी मोल नहीं है | अनित्य और नाशवान वस्तुओं से शांति मिलेगी, इस संसार में इससे बड़ा भ्रम दूसरा कोई हो ही नहीं सकता | इसी भ्रम में जीवन का, इस शरीर का संध्याकाल आ धमकता है अर्थात व्यक्ति का अंतिम समय आ जाता है और सिवाय हाथ मलते रहने के वह कुछ भी नहीं कर पाता है | ऐसी स्थिति में उसके पास सम्हल पाने के लिए न तो समय बचा होता है और न ही ऊर्जा | इस प्रकार से फिर वही संसार में आवागमन का अभेद्य चक्र |
           इस शरीर को शांति प्राप्त होती है, संतोष धारण करने से | संतोष केवल नित्य के साथ सम्बन्ध स्थापित करने से ही प्राप्त होता है | नित्य अर्थात जो परिवर्तनशील नहीं है | अर्थ अनित्य है, संसार अनित्य है, परिवर्तनशील है | आज है कल नहीं भी हो सकता | आज पर्याप्त नहीं है, कल भी अपर्याप्त ही रहेगा | जीवन भर पर्याप्त नहीं हो पायेगा चाहे जितना दौड़ते रहना | अगर जीवन में शांति चाहिए, संतोष धारण कर लें, इस दौड़ को बंद करें | नित्य के साथ योग करें, परमात्मा के साथ योग करें | परमात्मा के साथ योग अर्थात भक्ति, आपका परमात्मा के साथ नित्य सम्बन्ध है,  इस बात को विस्मृत न होने दें | ‘योगक्षेमं वहाम्यहम्“ (गीता 9/22), परमात्मा सभी प्रकार से आपका ध्यान रखेंगे, चिंता मुक्त हो जाइये | यही भक्ति-योग है और भक्ति की पराकाष्ठा है शरणागति | परमात्मा आपको अपनी शरण में लें और आप उसकी अनन्य भक्ति में सदैव लीन रहें |
           आप सभी का आभार एवं साधुवाद |
प्रस्तुति - डॉ.प्रकाश काछवाल

             || हरिः शरणम् ||

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