Monday, June 13, 2016

भक्ति-13

भक्ति-योग / ज्ञान, ध्यान और कर्म-योग –
            प्रेम और शरणागत होना परमात्मा को पाने के सबसे सुगम मार्ग है और इसी को भक्ति कहा जाता है | गीता का उतरार्ध इसको भक्ति-मार्ग के रूप में स्पष्ट करता है | इस भक्ति को स्पष्ट करने के लिए भगवान श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन को भक्ति-योग का विस्तृत रूप से ज्ञान दिया है | इस ज्ञान के द्वारा यह स्पष्ट किया गया है कि मनुष्य चाहे कितना ही ज्ञान और ध्यान में रत रहे, उसको वास्तविक शांति भक्ति से ही प्राप्त होती है | संसार और शास्त्रों का समस्त ज्ञान तब तक अज्ञान (अविद्या) ही है जब तक उससे परमात्मा के प्रति प्रेम और समर्पण पैदा न हो | अतः परमात्मा के प्रति प्रेम और समर्पण को ही भक्ति कहा जाता है |   
      परमात्मा को ज्ञान, ध्यान और कर्म योग से तभी पाया जा सकता है जब इनके साथ साथ परमात्मा के प्रति प्रेम भाव भी हो | ज्ञान, बिना प्रेम के अहंकार पैदा कर सकता है, ध्यान बिना समर्पण के व्यर्थ है और कर्म जब तक परमात्मा के लिए और उनको समर्पित किये बिना किये जाये तो वे सकाम कर्म के अंतर्गत आ जाते हैं, जिनके कारण मनुष्य को फल भोगने पड़ते हैं और भाव-सागर से आवागमन नहीं छूटता | परन्तु जब ज्ञान, ध्यान और कर्म परमात्मा के प्रति समर्पण भाव से होते हैं तब यही सब भक्ति बन जाते हैं | ज्ञान, ध्यान और कर्म सभी भक्ति की और ले जा सकते हैं परन्तु ये तीनों मार्ग कठिनाइयों से भरे हैं | अगर व्यक्ति प्रारम्भ से ही परमात्मा के प्रति प्रेम भाव से शरणागत हो जाता है तब वह परमात्मा की भक्ति को उपलब्ध हो जाता है | ऐसी भक्ति के कारण मनुष्य स्वतः ही ज्ञान, ध्यान और कर्म योग को उपलब्ध हो जाता है | अतः भक्ति मार्ग पर चलते हुए परमात्मा को पाना अधिक आसान है | यह सबसे सुगम मार्ग है | इसीलिए गीता में भी कर्म-योग के साथ साथ भक्ति-योग को बहुत महत्त्व दिया गया है | भक्ति-मार्ग ही एक सुगम मार्ग है जिस पर चल कर आदिकाल से आज तक अनेकों नामचीन भक्त हो चुके हैं जबकि केवल ज्ञान, ध्यान अथवा कर्म-मार्ग पर चलते हुए अनेकों मनुष्य इन मार्गों की कठिनाइयाँ देखते हुए पदच्युत भी हुए हैं | भक्ति आपको ज्ञान उपलब्ध करवा सकती है परन्तु अकेला ज्ञान भक्ति को उपलब्ध हो जाये यह प्रत्येक के लिए संभव नहीं है | परमात्मा, समस्त ज्ञान से भी परे हैं, उन्हें केवल मात्र पुस्तकीय ज्ञान से प्राप्त नहीं किया जा सकता | परमात्मा को तो प्रेम और समर्पण से ही जाना और पाया जा सकता है | ज्ञान, ध्यान और कर्म तो प्रेम और भक्ति के लिए अनुकूल आधार प्रदान कर सकते हैं जिस पर भक्ति का भवन निर्मित किया जा सकता है | जबकि अगर केवल भक्ति को ही आधार बना लिया जाये तो ऐसी भक्ति से जो निर्माण होता है उसमें ज्ञान, ध्यान और कर्म सब परमात्मा प्राप्ति के ही साधन बन जाते हैं| इतिहास प्रसिद्ध भक्तों के जीवन से हमें यही प्रेरणा मिलती है |
                      ज्ञान का एक मात्र स्रोत है, परमात्मा | पुस्तकों से ज्ञान नहीं मिलता है बल्कि केवल सूचना मात्र मिलती है | ज्ञान बाहर नहीं है | समस्त ज्ञान आपके स्वयं के भीतर है, जो परमात्मा की कृपा से ही अनावृत होता है | परमात्मा की कृपा संसार की सेवा और सभी से प्रेम करके ही प्राप्त की जा सकती है | संसार की सेवा ही परमात्मा से प्रेम करना है और प्रेम ही भक्ति है | इस दृष्टि से भक्ति-योग परमात्मा को पाने का सर्वोत्तम मार्ग कहा जा सकता है |
  मुख्य बात - इस शीर्षक से यह लेख तब लिखा गया था जब हरिः शरणम् आश्रम में आचार्य श्री गोविन्दराम शर्मा के सानिध्य से मुझे पहली बार यह ज्ञान हुआ कि पुस्तकीय ज्ञान से अधिक महत्वपूर्ण है भक्ति | भक्ति में ज्ञान प्राप्त हो जाता है परन्तु ज्ञान से भक्ति प्राप्त होगी ही, कहा नहीं जा सकता |
प्रस्तुति-डॉ.प्रकाश काछवाल

                || हरिः शरणम् ||

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