Wednesday, June 22, 2016

प्रेय से श्रेय की ओर -7

प्रेय से श्रेय की ओर-7
  प्रेय हमें क्या देता है ? वही न जिसमें मनुष्य के साथ साथ अन्य प्राणी भी रत हैं – आहार, निद्रा, भय और मैथुन | सब सांसारिक सुख इन्द्रियों के कारण ही संभव होते हैं और संसार के सभी प्राणी इन इन्द्रियों के माध्यम से ही भोगों में रत रहते हैं | अगर आहार, निद्रा, भय और मैथुन में रत रहना ही इतना महत्वपूर्ण होता तो फिर यह जैविक विकास एक कोशिकीय जीव से प्रारम्भ होकर विभिन्न प्राणियों से होते हुए मनुष्य तक कैसे पहुँच जाता ? कभी सोचा है आपने ? परमात्मा को मनुष्य नाम के प्राणी के निर्माण की आवश्यकता ही क्यों हुई ? केवल प्रेय में ही लगे रहने के लिए नहीं बल्कि साथ ही साथ श्रेय को जानने के लिए भी | अगर सभी प्राणी प्रेय-मार्ग के अनुगामी बने रहते तो इस सृष्टि का काल चक्र भी थम जाता | विभिन्न कल्पों और बारम्बार सृष्टि की रचना का आधार ही ये दो मार्ग हैं | किसी एक मार्ग का होना अर्थात केवल एक मार्ग पर प्राणियों का चलना सृष्टि की परिवर्तनशीलता में बाधक है | यह एक अलग विषय है, जो काल की गति, विभिन्न सृष्टियों की रचना, युगों और कल्पों की अवधारणा को पुष्ट करता है | इसकी चर्चा फिर आगे कभी करेंगे | सृष्टि का  यह चक्र निर्बाध गति से चलता रहे, इसीलिए अन्य प्राणियों में स्थित बुद्धि से अलग हटकर मनुष्य को विवेक भी दिया है, परमात्मा ने | वह अपने विवेक का सही उपयोग कर प्रेय से श्रेय की ओर यात्रा कर सकता है |
आइये, अब हम प्रेय और श्रेय मार्ग को थोडा और अधिक विस्तार से जानें | पहले हम प्रेय-मार्ग  की बात करेंगे क्योंकि हमारी यह यात्रा, आत्म-ज्ञान के लिए है और आत्म-ज्ञान  के लिए प्रेय मार्ग को छोड़कर श्रेय मार्ग पर चलना पड़ता है | प्रेय-मार्ग को जाने समझे बिना हम उसका परित्याग कैसे करेंगे, इसलिए श्रेय-मार्ग पर चलने से पहले प्रेय-मार्ग को जानना आवश्यक है | ध्यान रहे, मनुष्य को छोड़कर संसार में एक भी प्राणी ऐसा नहीं है जो श्रेय मार्ग पर चल सके |
कल-प्रेय मार्ग 
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल

|| हरिः शरणम् ||

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