Saturday, June 25, 2016

प्रेय से श्रेय की ओर-10

 मनुष्य के समक्ष उसके जीवन में केवल दो ही मार्ग हैं - चलने के लिए | पहला प्रेय-मार्ग और दूसरा श्रेय-मार्ग | किसी एक मार्ग पर तो उसको चलना ही होगा | एक मार्ग को छोड़ते हुए ही दूसरे मार्ग पर चला जा सकता है, दोनों पर एक साथ नहीं चला जा सकता | यह प्रत्येक व्यक्ति पर निर्भर करता है कि स्वयं के चलने के लिए कौन सा मार्ग चुने |
           प्रथम मार्ग, प्रेय का तो मार्ग सबके लिए खुला है । इस संसार में जन्म लेकर तो सांसारिकता छोड़ी नहीं जा सकती । इसलिए श्रेय के मार्ग पर चलना बहुत कठिन लगता है । ऐसे में प्रेय के मार्ग में जो कुछ सामने आये, उसे स्वीकार करते हुए उसमें लिप्त नहीं होना चाहिए यथा बिजली के पंखे हैं, कूलर हैं, गद्देदार पलंग हैं, मखमली कालीन हैं और दूसरे सुख – सुविधा अर्थात ऐशो-आराम के सामान हैं। इनका भोग करते हुए खुद इनका भुक्त नहीं बन जाना चाहिए । यह नहीं कि इन वस्तुओं का गुलाम बन जाना चाहिए ।  अपने अन्दर सदैव ऐसी योग्यता और इच्छा-शक्ति बनाये रखना चाहिए कि इनको छोड़ते समय इनके खो जाने का दुःख न हो । केवल ये वस्तुएं ही जिंदगी का उद्देश्य न बन जाएँ ।
         जीवन का दूसरा मार्ग  है – श्रेय मार्ग । श्रेय मार्ग में हमें आज की अपेक्षा कल को महत्व देना और भविष्य के सुख के लिए आज, वर्तमान में संयम को  अपनाना पड़ता है । कृषक वर्ग अर्थात किसान उपज प्राप्ति हेतु  अपने घर में रखा हुआ अन्न खेत में बिखेर कर बो देता है । यही बीज आगे चल कर कई गुना होकर किसान को प्राप्त तो होता हैं परन्तु आज तो घर में रखी हुई बोरी तक खाली हो गई है अर्थात वह अधिक से अधिक पाने के चक्कर में अपना सब कुछ गँवा बैठा है । विद्यार्थी दिन–रात पढ़ता हैं ठीक प्रकार से पूरी नींद सो भी नहीं पाता, खेलने और मस्ती करने की उम्र में सब कुछ छोड़कर किताब के नीरस पन्नों में सिर खपाता रहता है । घर से शिक्षण शुल्क अर्थात फीस लेकर जाता है । किताब-  कापियों में पैसे खर्च होते हैं, अध्यापकों   की फटकार सुननी पड़ती हैं । इतना सब झंझट उठाने वाला विद्यार्थी जानता है कि अंततः  इसका परिणाम अच्छा और सुखकर ही होगा । जब शिक्षा पूर्ण करके अपनी बढ़ी हुई योग्यता का समुचित लाभ उठाऊंगा तब आज की परेशानी की पूरी तरह भर पाई हो जाएगी । श्रेय मार्ग कुछ कुछ ऐसा ही हैं इसमें वर्तमान को कष्ट मय बनाकर कल के लिए स्वर्णिम भविष्य की आशा के अंकुर उगाने पड़ते हैं । वैज्ञानिक अन्वेषणकर्ता सम्पूर्ण जिंदगी प्रकृति के किन्हीं सूक्ष्म रहस्यों का पता लगाने के लिए एकाग्र भाव से शोध कार्य में लगाते हैं तब जाकर कई प्रकार के आविष्कार होते हैं तो उसका लाभ सारे संसार को मिलता है । नेता, लोक-सेवक, बलिदानी, त्यागी, तपस्वी अपने आपको विश्व मानव के हित में स्वाहा कर देते हैं तब उस त्याग का लाभ सारे जगत को मिलता हैं । बीज अपनी हस्ती को गलाकर विशाल वृक्ष के रूप में परिणत होता है । नींव में पड़े हुए पत्थरों की छाती पर ही विशाल भवनों का निर्माण हुआ है । माता अपने रक्त और माँस का दान कर गर्भ में बालक का शरीर बनाती है और उसे अपनी छाती का दूध पिलाकर पालती- पोसती हैं तब कहीं जाकर उसे माँ कहलाने का श्रेय प्राप्त  होता है । इतना सब करना और उसके लिए कष्ट उठाना ही श्रेय मार्ग है ।
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल

|| हरिः शरणम् ||

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