प्रेय से श्रेय की ओर-14 समापन कड़ी-
सब कुछ पश्चिम की भोगवादी
संस्कृति को अपनाने का परिणाम है और इसके लिए हम स्वयं दोषी है | हम ज्ञान बहुत
उड़ेलते हैं परन्तु अपने बच्चे के लालन पालन में इस ज्ञान का उपयोग नहीं करते हैं |
जब भी यह प्रश्न हमारे सामने आता है, हम आधुनिक भागदौड़ वाले युग होने का कहकर मुंह
मोड़ लेते हैं | परन्तु वास्तविकता यह है कि हमें स्वयं को श्रेय मार्ग से अच्छा
प्रेय मार्ग लगता है और दोषारोपण आधुनिक व्यवस्था पर करते फिरते हैं | किसी के कहने पर अगर हम किसी कुएँ में जाकर
नहीं गिर सकते तो फिर आपको श्रेय मार्ग पर चलने से कौन रोक सकता है ?आज की
आवश्यकता है कि माता-पिता स्वयं श्रेय मार्ग का अनुगमन करते हुए बचपन से ही अपने पुत्र/पुत्री
के सामने एक आदर्श प्रस्तुत करें | तभी इस
व्यवस्था में सुधार संभव है |
अंत में मैं आपको पुनः महर्षि शांडिल्य की भक्ति
की अनुरक्तियों वाली अवधारणा की और ले जाना चाहूँगा | परा और अपरा अनुरक्तियां दोनों
ही परमात्मा की देन है | अपरा अर्थात सांसारिक अनुरक्ति में उलझ जाना प्रेय-मार्ग
है और परा अनुरक्ति आध्यात्मिक अनुरक्ति है और इसको अपनाना ही श्रेय मार्ग है |
प्राणियों की चौरासी लाख प्रजातियाँ प्रेय-मार्ग पर चलने का ही परिणाम है और
मनुष्य की प्रजाति में जन्म लेकर श्रेय-मार्ग पर चलना ही परमात्मा से प्रेम करना
है | निर्णय करना केवल और केवल आपके हाथ में है | मैं तो आप सब के लिए परमात्मा से
यही प्रार्थना कर सकता हूँ कि वह आपको इतना विवेक अवश्य प्रदान करे जिससे आप ‘प्रेय
से श्रेय की ओर’ चल सकें | अगर आप श्रेय मार्ग पर चलेंगे तो आपका, आपके परिवार,
आपके समाज और आपके देश का भला होगा और भारत पुनः इस संसार में सभी देशों में
अग्रणी बन जायेगा |
प्रस्तुति-डॉ.प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
पुनश्चः
इस विवेचन के मध्य में श्री पंकज
अग्रवाल का पूरक प्रश्न मिला है | उन्होंने नचिकेता के तीन में से मांगे गए दो वर
पूछे हैं | पहला वर था कि जब मैं वापिस अपने पिता उद्दालक के पास लौटूं तो वे मुझे
पूर्व की भांति प्रेमपूर्वक पुत्र रूप में स्वीकार कर ले | उनके मन में मेरे लिए किसी
प्रकार का दुःख का भाव और मुझे मृत्यु (यम) को देने के प्रति अपराध बोध न रहे |
दूसरा वर था कि जहाँ न जरा हो, न दुःख हो, न आपका यानि मृत्यु का भय हो, न भूख लगे
और न ही प्यास ऐसी जगह स्वर्ग है, वहां पहुँचने के लिए अग्नि विद्या को जानना
आवश्यक है | अतः हे यम ! मुझे आप अग्नि विज्ञान प्रदान करें | यह अग्नि विज्ञान बाद
में नचिकेता के नाम से प्रसिद्ध हुआ |
|| हरिः शरणम् ||
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