Tuesday, June 28, 2016

प्रेय से श्रेय की ओर-13

                 अब बात करते हैं कि आधुनिक युग में श्रेय मार्ग पर चलना कठिन क्यों होता जा रहा है ? इसका सबसे बड़ा कारण है-धर्म से विमुखता | प्राचीन काल में बच्चे का लालन पालन जिस वातावरण में होता था, वह आज के समय में कहाँ उपलब्ध है ? स्वयं माता-पिता की दिनचर्या तक अस्त-व्यस्त है | पहले शैशव काल के बाद जब बाल्यावस्था में बालक प्रवेश करता था तब उसे ब्रह्मचर्य आश्रम के अनुसार गुरुकुल में भेज दिया जाता था | ब्रह्मचर्य का अर्थ है, ब्रह्म की चर्या और ब्रह्मचारी अर्थात ब्रह्म के जैसे आचरण करने वाला | ब्रह्मचर्य का अर्थ आजकल अलग रूप से प्रस्तुत किया जा रहा है, वह मात्र दिग्भ्रमित करने वाला अर्थ है | गुरुकुल में केवल ब्रह्म के बारे में शिक्षा दी जाती थी | वहां पर जाकर बालक को श्रेय-मार्ग पर ही चलना होता था | ब्रह्म में स्त्री और पुरुष का कोई भेद नहीं है | अतः आज के बालक की तरह ऐसे भेद को पालकर वहां गुरुकुल में कोई भी बालक कभी कुंठित नहीं होता था | वास्तविक ब्रह्मचर्य का जीवन तो गुरुकुल का जीवन ही था |
           आज के विद्यालयों में स्त्री-पुरुष भेद प्रारम्भ से ही बालक के मन में प्रवेश कर जाता है | इस लिंग-भेद की अग्नि में घी डालने का कार्य करती है, आधुनिक तकनीक जैसे दूरदर्शन और मोबाइल आदि | अति विकसित देश अमेरिका में आये दिन विद्यालयों में हो रहे गोली कांड और विद्यार्थी जीवन में ही कम उम्र में बच्चियों द्वारा गर्भ धारण कर लेना विद्यार्थियों में पैदा हो रही मानसिक कुंठा का ही तो परिणाम है | मैं आज दावे के साथ कह सकता हूँ कि अगर हम अभी भी नहीं चेते तो निकट भविष्य में हमारे देश में भी ऐसी घटनाएँ होने लगेगी | आज सब कुछ सुविधाएँ है, विद्यार्थी के पास | ऐसे में वह प्रेय-मार्ग पर चलना अपने जीवन के प्रारम्भ में ही सीख जाता है | ऐसी स्थिति से बाहर वह वानप्रस्थ आश्रम के अंत तक भी नहीं निकल पाता | वानप्रस्थ में समय और ऊर्जा उसका साथ छोड़ रहे होते हैं और फिर नए जन्म के लिए वही वासना भोग वाली चौरासी लाख योनियां उसका इंतजार कर रही होती हैं |
कल समापन कड़ी-

|| हरिः शरणम् ||

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