Thursday, June 16, 2016

प्रेय से श्रेय की ओर-1 प्रस्तावना


       इस संसार में जितने भी प्राणी है, जिन्हें हम एक आध्यात्मिक व्यक्ति की भाषा में ‘जीवात्मा’ भी कह सकते हैं, उन सभी का यहाँ पर उत्पन्न होना केवल भोग के लिए ही है अन्यथा उनको इस संसार में जन्म लेने की कोई आवश्यकता भी नहीं थी | सनातन धर्म शास्त्रों के अनुसार इस प्रकार के समस्त प्राणियों की प्रजातियां चौरासी लाख एक कही गयी है | विज्ञान अभी इस संख्या से लगभग आधी ही प्रजातियां खोज पाया है और अभी इनकी खोज जारी है | अभी भी नई प्रजातियां मिल रही है और मिलती भी जाएगी जब तक समस्त चौरासी लाख एक की संख्या तक नहीं पहुँच जाये | आप कह सकते हैं कि मैं यह दावा कैसे कर सकता हूँ कि इन नित नई प्रजातियों की खोज तब तक नहीं रुकेगी जब तक सनातन शास्त्रों में वर्णित संख्या को प्राप्त नहीं कर लिया जाये ? मेरे मित्रों, आज तक विज्ञान ने जो कुछ भी पाया है, सभी पहले से ही हमारे शास्त्रों में वर्णित है और मेरे इस विश्वास का आधार मेरे ये धर्म शास्त्र ही हैं |
           हाँ, तो बात चल रही थी, विभिन्न प्रकार की भोग प्रजातियों की, जिनमें एक मनुष्य नाम की प्रजाति भी सम्मिलित है | परन्तु मनुष्य और अन्य प्राणियों में एक मूलभूत अंतर है, जो मनुष्य को अन्य शेष प्राणियों से अलग और विशेष बनाता है और वह अंतर है उसमें ज्ञान और विवेक का होना | ज्ञान तो अन्य प्राणियों में भी होता है परन्तु वह ज्ञान केवल भोग के लिए होता है जिसमें आहार, निद्रा, भय (मृत्यु का भय) और मैथुन शामिल है | मनुष्य में ज्ञान के साथ साथ विवेक भी होता है और विवेक का उपयोग वह अपनी इच्छा से विभिन्न प्रकार के कर्मों को करने में करता है | ये कर्म केवल इन्द्रिय जनित भोगों को भोगने के लिए ही नहीं होते बल्कि आत्म-ज्ञान के लिए भी होते हैं | आत्म-ज्ञान अर्थात स्वयं को जानना | स्वयं को जानना यानि परमात्मा को जानना | इसीलिए मनुष्य अन्य प्राणियों की तरह मात्र एक भोग प्रजाति न होकर भोग के साथ में कर्म व योग प्रजाति भी है |
             भोग प्रजाति या भोग योनि अर्थात पूर्व मानव जन्म में किये गए कर्मों का फल प्राप्त करने व उन्हें भोगने के लिए पैदा होना और योग प्रजाति या योग योनि अर्थात वर्तमान मानव जीवन में विवेक का उपयोग करते हुए कर्म करना जिनका फल प्राप्त करने और उसको भोगने के लिए भविष्य के जीवन को तय किया जा सके | सब कुछ मनुष्य के हाथ में ही दे दिया है, परमात्मा ने | अतः किसी अनुचित और अप्रिय कर्मफल के लिए परमात्मा को दोष न दें, सब कुछ आपने स्वयं ही निश्चित किया है | इसीलिये यह कहा जाता है –

              “Your birth is not by chance but by your choice.”
                                           || हरिः शरणम् ||

No comments:

Post a Comment