भक्ति-
भक्ति शब्द एक विशाल और महान अर्थ को अपने
भीतर समेटे हुए है | इसको समझना और सही रूप से समझना आज के समय में आवश्यक है |
आजकल के दौर में भौतिकता वादियों ने इस
शब्द को हास्यास्पद बना दिया है | उनकी दृष्टि में भक्ति और भक्त सदैव ही उपेक्षित
रहे हैं | भारत जैसे आध्यात्मिकता पूर्ण वातावरण वाले देश में ऐसा होना चिंतनीय है | इसलिए यह आवश्यक है कि हम भक्त और
भक्ति शब्दों में निहित अर्थ को सही रूप से समझे | दोनों ही शब्द मात्र साधारण
शब्द ही नहीं है बल्कि बड़े ही सारगर्भित शब्द
हैं |
भक्त मूल रूप से एक संस्कृत शब्द है और
बाद में इसका हिंदी में भी उपयोग किया जाने लगा | इस शब्द का अर्थ है किसी के साथ
जुड़ना | इस शब्द की संज्ञा भी भक्त ही है जिस कारण इसका एक अर्थ यह भी हो जाता है
– किसी के साथ जुड़ने वाला | एक भक्त के द्वारा किये जाने वाले कार्य को भक्ति कहा
जाता है | यह तो मात्र भक्ति और भक्त के शाब्दिक अर्थ है | भक्ति शब्द का भावार्थ
और निहितार्थ है- परमात्मा के प्रेम में रत हो जाना | जो परमात्मा के प्रेम में
डूब जाता है वह भक्त है और इस प्रेम में सतत डूबे रहने की प्रक्रिया को भक्ति कहा
जाता है | वैसे इस शब्द की यह व्याख्या महर्षि शांडिल्य से लेकर कबीर और तुलसी तक सभी
भक्तों ने अलग अलग रूप से की है | सभी की व्याख्या का निष्कर्ष एक ही है- भक्ति
अर्थात परमात्मा के प्रति प्रेम-भाव, परमात्मा के साथ जुडाव | यह परमात्मा के साथ
जुडाव की जो प्रक्रिया है, वह एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है | इस प्रक्रिया के
अंतर्गत कई मार्ग हैं, जो भक्ति-योग के अंतर्गत हैं और जिन पर चलते हुए परमात्मा के
साथ स्थायी योग किया जा सकता है और परमात्मा के साथ स्थाई योग का नाम ही मुक्ति है
|
क्रमशः
|| हरिः शरणम् ||
No comments:
Post a Comment