Wednesday, June 1, 2016

भक्ति -क्रमशः

भक्ति-
    भक्ति शब्द एक विशाल और महान अर्थ को अपने भीतर समेटे हुए है | इसको समझना और सही रूप से समझना आज के समय में आवश्यक है | आजकल के दौर में भौतिकता  वादियों ने इस शब्द को हास्यास्पद बना दिया है | उनकी दृष्टि में भक्ति और भक्त सदैव ही उपेक्षित रहे हैं | भारत जैसे आध्यात्मिकता पूर्ण वातावरण वाले देश में ऐसा होना  चिंतनीय है | इसलिए यह आवश्यक है कि हम भक्त और भक्ति शब्दों में निहित अर्थ को सही रूप से समझे | दोनों ही शब्द मात्र साधारण शब्द ही नहीं है  बल्कि बड़े ही सारगर्भित शब्द हैं |

           भक्त मूल रूप से एक संस्कृत शब्द है और बाद में इसका हिंदी में भी उपयोग किया जाने लगा | इस शब्द का अर्थ है किसी के साथ जुड़ना | इस शब्द की संज्ञा भी भक्त ही है जिस कारण इसका एक अर्थ यह भी हो जाता है – किसी के साथ जुड़ने वाला | एक भक्त के द्वारा किये जाने वाले कार्य को भक्ति कहा जाता है | यह तो मात्र भक्ति और भक्त के शाब्दिक अर्थ है | भक्ति शब्द का भावार्थ और निहितार्थ है- परमात्मा के प्रेम में रत हो जाना | जो परमात्मा के प्रेम में डूब जाता है वह भक्त है और इस प्रेम में सतत डूबे रहने की प्रक्रिया को भक्ति कहा जाता है | वैसे इस शब्द की यह व्याख्या महर्षि शांडिल्य से लेकर कबीर और तुलसी तक सभी भक्तों ने अलग अलग रूप से की है | सभी की व्याख्या का निष्कर्ष एक ही है- भक्ति अर्थात परमात्मा के प्रति प्रेम-भाव, परमात्मा के साथ जुडाव | यह परमात्मा के साथ जुडाव की जो प्रक्रिया है, वह एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है | इस प्रक्रिया के अंतर्गत कई मार्ग हैं, जो भक्ति-योग के अंतर्गत हैं और जिन पर चलते हुए परमात्मा के साथ स्थायी योग किया जा सकता है और परमात्मा के साथ स्थाई योग का नाम ही मुक्ति है |
क्रमशः 
               || हरिः शरणम् ||

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