प्रेय और श्रेय शब्दों का उल्लेख
सर्वप्रथम अथर्व वेद में आता है | इन्हीं शब्दों को और अधिक स्पष्टता देता है-
कठोपनिषद | कठोपनिषद में यम-नचिकेता संवाद है | मेरे पसंदीदा संवादों में से एक
है-यह ‘यम–नचिकेता’ संवाद | जब महर्षि अरुण के पुत्र ऋषि उद्दालक ब्राह्मणों को बीमार
और कृशकाय गायें, जो कि दूध भी नहीं दे सकती थी, दान में दे रहे थे तो उनका पुत्र
नचिकेता व्यथित हो गया | पहले तो उसने अपने पिता का इस ओर ध्यान आकर्षित करने का
प्रयास किया परन्तु जब उसने देखा कि वे उसकी किसी भी बात पर ध्यान नहीं दे रहे हैं
तो उसने अपने पिता ऋषि उद्दालक से पूछा कि आप मुझे किसको दान में दे रहे है तो एक
बार ऋषि ने उसकी इस बात की उपेक्षा कर दी | परन्तु जब नचिकेता ने यही बात तीसरी
बार भी पूछी तो ऋषि उद्दालक ने व्यंग से अपने पुत्र
को देखते हुए कहा कि मैं तुम्हें यम को दान में देता हूँ | इतना सुनते ही नचिकेता
अपने पिता का घर त्यागकर यम के निवासस्थान को प्रस्थान कर गया | यह देखकर पिता
उद्दालक व्यथित हो गए और अपने द्वारा कहे गए शब्दों पर पश्चाताप करने लगे | परन्तु
शब्द तो शब्द हैं, एक बार मुंह से बाहर निकल गए तो फिर उनको लौटा लाना असंभव है |
पिता के पश्चाताप का नचिकेता पर कोई प्रभाव नहीं हुआ | उसने वापिस मुड़कर देखा तक
नहीं |
इस प्रकार अब नचिकेता आ पहुंचा है, यम
के निवास स्थान के द्वार पर | यम किसी कार्य वश बाहर गए हुए थे | यम की पत्नी ने
उतर दे दिया कि वे तीन दिन बाद आयेंगे परन्तु नचिकेता वापिस नहीं लौटा, वहीँ यम
द्वार पर भूखा-प्यासा बैठा रहा | अब चिंतित होने की बारी यम की पत्नी की थी | उसको
बहुत बुरा लगा कि उसके द्वार पर एक ब्राह्मण पुत्र तीन दिन से भूखा-प्यासा बैठा है
| वह किसी अनहोनी और अनजाने भय से सिहर उठी | यम के लौटते ही उसने उन्हें ब्राह्मण
बालक का पूरा वृतांत कह सुनाया | यम ने नचिकेता को बुलाकर उसकी पूरी राम कहानी सुनी
| पहले तो तीन दिन का इंतजार कराने के लिए क्षमा मांगी और फिर इसके बदले उसे तीन वरदान
पाने को कहा |
क्रमशः
|| हरिः शरणम् ||
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