Saturday, June 7, 2014

तन |-६

                                " अष्ट कमल का चरखा बनाया,पांच तत्व की पूनी ।
                                 नौ दस मास बुनन म लाग्या ,मूरख मैली कीन्ही चदरिया ॥
                                 झीनी रे झीनी.……… ।"
                कबीर का यह भजन और इसकी यह पंक्तियाँ इस तन के बारे में सब कुछ स्पष्ट कर देती है । कबीर एक जुलाहा थे । उनसे बढ़कर कपडे को बुनने के बारे में और कौन जान सकता है ? पूनी,रूई के उस आकार को कहते हैं जिसे कपडा बुनने के लिए तैयार किया जाता है । रूई को अच्छी तरह साफ कर उसे ऐसा आकार दिया जाता है जिससे बुनाई करते समय हाथ में आसानी से पकड़ी जा सके । कबीर ने पूनी इस भौतिक शरीर ,इस तन के निर्माण के लिए आवश्यक पांच तत्वों के इक्कट्ठे होने को बताया है । चरखे के घेरे में, चरखे के चक्र में आठ पंखुडियां होती है ,तभी चरखा घूमता है और पूनी से सूत काता जाता है और उस सूत से कपडे का निर्माण होता है । कबीर ने पांचों इन्द्रियों के सूक्ष्म पांच तत्व,मन,बुद्धि और अहंकार ,इन आठों से चरखा बनाया है । इन आठों के मिलने से ही सूक्ष्म शरीर का निर्माण होता है । इस सूक्षम शरीर के कारण ही,इस सूक्ष्म शरीर के चाहने से ही इस तन का ,इस भौतिक स्थूल शरीर का निर्माण होता है । जिस प्रकार चरखे के घूमने से ,चरखे के कारण ही रूई की पूनी से सूत काता जा सकता है और इन सूत के धागों से चद्दर का बनना होता है । कबीर आगे कहते हैं कि इस चद्दर रुपी शरीर के बनने में ९-१० महीने लगते हैं । इतने  कड़े प्रयास से अस्तित्व में आई इतनी सुन्दर चद्दर को मनुष्य अपने स्वार्थ की पूर्ति हेतु काम में लेकर गन्दी कर रहा है । इस मूर्खता के कारण मनुष्य की यह चद्दर मैली होती जा रही है ।
                      "दास कबीर जतन करि ओढ़ी,ज्यूँ की त्यूं धर दीन्ही चदरिया "
                      इस चद्दर को कबीर कहते हैं,"इस चद्दर को मैंने परमात्मा का दास बनकर ही ओढ़ी है,मैंने उसके बनाये नियमों का पालन किया है । मैं उसकी इच्छा के विरुद्ध बिलकुल भी नहीं  चला । मैंने अपने तन का सदुपयोग किया है । इस कारण से मैंने अपनी यह चद्दर जैसी मिली ,वैसी ही वापिस लौटा रहा हूँ ।" यह तन परमात्मा का मनुष्य को एक आशीर्वाद है । इस तन का जितना सदुपयोग इस जीवन में कर लिया जाय उतना ही अच्छा है । इस तन का उद्देश्य मात्र अपने ही लिए ना किया जाये बल्कि सबको आत्मस्वरूप समझते हुए सबकी सोची जाये,तभी इस मानव तन की सार्थकता है ।
क्रमशः
                                    || हरिः शरणम् ||

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