संसार में किसी भी मनुष्य के जीवित रहने के लिए २४ तत्वों की आवश्यकता होती है |जिसमे पांच तो इस तन के निर्माण के लिए आवश्यक तत्व हैं |भूमि,जल,अग्नि ,आकाश और वायु |यह पाँचों वे तत्व है जिनके बिना यह तन रुपी मशीन अपना भौतिक स्वरूप प्राप्त नहीं कर सकती | बिना इस मशीन के कोई भी कार्य यहाँ संपन्न नहीं हो सकते |संसार में प्रत्येक मशीन की अपनी कार्य करने की एक निश्चित समय सीमा होती है |उस सीमा के बाद उसका सुचारू रूप से कार्य करना संभव नहीं हो सकता |इस समय सीमा को हम उस मशीन की आयु अथवा उम्र कह सकते हैं |संसार में जितनी भी ऐसी मशीने है,उनका जब से निर्माण होता है,उससे उसके योग्य सम्पूर्ण कार्य उससे संपन्न किये जाते हैं | धीरे धीरे उसकी कार्य क्षमता कम होती जाती है और अंत में वह मशीन एक दिन पूर्ण रूप से कार्य करने योग्य नहीं रह पाती और समाप्त हो जाती है | मशीन के ख़राब होजाने पर,काम योग्य नहीं रह पाने पर उसके समस्त अंगों को अलग अलग कर,उन्ही अंगों को परिवर्तित कर फिर एक नई मशीन तैयार की जाती है |इस प्रकार प्रत्येक मशीन के साथ यह चक्र सतत चलता रहता है | ऐसा ही कुछ कुछ मानव तन रुपी मशीन के साथ भी होता है |
इस संसार में यह भौतिक शरीर उपरोक्त वर्णित पाँचों तत्वों से निर्मित होता है |वह बाल्यावस्था से होता हुआ युवावस्था को प्राप्त होता है ,तब उसकी कार्य क्षमता पूर्ण ऊंचाई पर होती है |कुछ समय बाद उसकी कार्य क्षमता धीरे धीरे समाप्ति की ओर चल पड़ती है और एक दिन समस्त कार्य क्षमता समाप्त हो जाती है | इस स्थिति में यह तन कार्य करने योग्य नहीं रह पाता और उसकी मृत्यु हो जाती है |मृत्यु उपरांत उपरोक्त पांचो तत्व अलग अलग हो जाते हैं |समय पाकर फिर से ये एक नए तन की संरचना करते हैं |जिस प्रकार एक मशीन के पूर्णतया ख़राब हो जाने के बाद उसके समस्त अंगों को अलग कर एक से अधिक मशीनों के निर्माण में काम में लिए जा सकते हैं,उसी प्रकार मनुष्य के शरीर के इन पांच तत्वों से भी भिन्न भिन्न प्रकार के तन बनाये जा सकते हैं | यह आवश्यक नहीं है कि इन तत्वों से केवल एक विशेष प्रकार के तन ही बनाये जा सकते हो |संसार में जितने भी जीव-जंतु हैं उनमे प्रत्येक के तन के निर्माण में इन पाँचों तत्वों की भूमिका अवश्य रहती है |
क्रमशः
|| हरिः शरणम् ||
इस संसार में यह भौतिक शरीर उपरोक्त वर्णित पाँचों तत्वों से निर्मित होता है |वह बाल्यावस्था से होता हुआ युवावस्था को प्राप्त होता है ,तब उसकी कार्य क्षमता पूर्ण ऊंचाई पर होती है |कुछ समय बाद उसकी कार्य क्षमता धीरे धीरे समाप्ति की ओर चल पड़ती है और एक दिन समस्त कार्य क्षमता समाप्त हो जाती है | इस स्थिति में यह तन कार्य करने योग्य नहीं रह पाता और उसकी मृत्यु हो जाती है |मृत्यु उपरांत उपरोक्त पांचो तत्व अलग अलग हो जाते हैं |समय पाकर फिर से ये एक नए तन की संरचना करते हैं |जिस प्रकार एक मशीन के पूर्णतया ख़राब हो जाने के बाद उसके समस्त अंगों को अलग कर एक से अधिक मशीनों के निर्माण में काम में लिए जा सकते हैं,उसी प्रकार मनुष्य के शरीर के इन पांच तत्वों से भी भिन्न भिन्न प्रकार के तन बनाये जा सकते हैं | यह आवश्यक नहीं है कि इन तत्वों से केवल एक विशेष प्रकार के तन ही बनाये जा सकते हो |संसार में जितने भी जीव-जंतु हैं उनमे प्रत्येक के तन के निर्माण में इन पाँचों तत्वों की भूमिका अवश्य रहती है |
क्रमशः
|| हरिः शरणम् ||
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