Tuesday, June 3, 2014

तन |-२

                           हम जानते हैं कि इस तन को सुचारू रूप से कार्य करने हेतु २४ तत्वों की आवश्यकता होती है । जिनमे पांच तो भौतिक तत्व है जिससे इस तन का निर्माण मात्र होता है अर्थात इस भौतिक संसार में तन रुपी मशीन अपना आकार लेती है । इसके बाद इस तन में महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है अगले १५ तत्वों की । जो हैं पांच ज्ञानेन्द्रियाँ,पांच कर्मेन्द्रियाँ और पांच इन इन्द्रियों के विषय ।समस्त ज्ञानेन्द्रियां और कर्मेन्द्रियाँ ,उपकरण है जिन्हे शास्त्रों में करण कहा गया है जबकि इनके विषय कार्य कहलाते हैं । ये सभी भी स्थूल प्रकृति के हैं और इनका निर्माण भी इन्हीं पांचो भौतिक तत्वों से ही होता है ।  पांच ज्ञानेन्द्रियाँ (Senses of knowledge)है-आँख ,नाक,जीभ ,कान और त्वचा । इनके पांच विषय(Subjects of senses) है-रूप, गंध, स्वाद, श्रवण और स्पर्श । पांच कर्मेन्द्रियाँ(Senses of act) है-हाथ (हस्त), पैर(पाद), जीभ(वाक्), उपस्थ (मूत्र द्वार) और गुदा(मलद्वार) । इन १५ तत्वों के कारण जो हमें कार्य की अनुभूति होती है वे ५ सूक्ष्म इन्द्रिय तत्व कहलाते हैं जो इन पाँचों इन्द्रियों से ही सम्बंधित रहते हैं । इन्द्रियों में सभी ज्ञानेन्द्रियाँ और कर्मेन्द्रियाँ और इनके विषय सम्मिलित है । इस प्रकार इस तन में पांच भौतिक तत्वों के साथ जब ये पांच इन्द्रिय तत्व  , मन, बुद्धि और अहंकार कुल मिलाकर १३ तत्व इक्कट्ठे हो जाते हैं तब यह तन रुपी मशीन अपना कार्य करने को तैयार हो जाती है । जब इनके साथ आत्मा नामक १४ वां तत्व आकर सम्मिलित हो जाता है तब यह मशीन अपना कार्य पूर्ण दक्षता के साथ प्रारम्भ कर देती है ।
                         प्रायः हम सब तन(Physical body) को शरीर (Body) कह देते हैं । हाँ,यह तन का पर्यायवाची शब्द अवश्य है परन्तु तन का स्थान्नापन्न शब्द नहीं है । शरीर को तीन भागों में बांटा जा सकता है-स्थूल या भौतिक शरीर(Physical body),सूक्ष्म शरीर(Subtle body) और कारण शरीर(Causal body) । भौतिक शरीर से आशय इस तन से है जो पांच भौतिक तत्वों के मिलने से बनता है । इसमे पांच ज्ञानेन्द्रियों और  पांच कर्मेन्द्रियों के उपकरण तथा पांच इन्द्रियों के विषय अर्थात कार्य सम्मिलित हैं क्योंकि उनका निर्माण भी इन्ही पांच भौतिक तत्वों से होता है । शेष बचे ९ तवों में से आत्मा को छोड़कर बचे आठ तत्व सूक्ष्म शरीर कहलाते है और अंतिम तत्व आत्मा कारण शरीर कहलाती है । अतः यह तन मात्र एक भौतिक शरीर से अधिक कुछ भी नहीं है और अकेले इसकी कीमत कुछ भी नहीं है । ठीक उसी प्रकार जैसे कोई भी मशीन बिना अपने कलपुर्जों के कबाड़ ही होती है ,मशीन नहीं । ऐसी मशीन का कुछ भी उपयोग नहीं होता और उसमे उपस्थित लोहे और ताम्बे की कीमत से अधिक मोल उसका कोई नहीं होता ।जब इस भौतिक शरीर से सूक्ष्म और कारण शरीर अलग हो जाते है तब मात्र यह भौतिक शरीर  यानि तन ही शेष बचता है जिसे हम मृत देह कह देते हैं ।  इस मृत देह में पांच भौतिक तत्वों के अतिरिक्त कुछ भी नहीं बचता और फिर यह मृत देह या तो प्राक्रतिक रूप से विखंडित होने लगती है या फिर उसको जला दिया जाता है या दफ़न कर दिया जाता है । प्रत्येक स्थिति में इस तन के निर्माण में काम में आये पाँचों भौतिक तत्व विखंडित हो कर अलग अलग हो जाते है और कालांतर में फिर किसी नए भौतिक शरीर का,तन का निर्माण करने में भूमिका निभाते हैं । इस प्रकार हम देखते हैं कि इस तन की मृत्यु के बाद भी इन पाँचों भौतिक तत्वों का अस्तित्व बना ही रहता है ।
                      गीता में भगवान् श्री कृष्ण कहते हैं-
                                           अव्यक्तादीनि भूतानि व्यक्तमध्यानि भारत ।
                                            अव्यक्तनिधनान्येव  तत्र  का  परिवेदना ॥ गीता २/२८ ॥
अर्थात,हे अर्जुन !  सम्पूर्ण प्राणी जन्म से पहले अप्रकट थे और मरने के बाद भी अप्रकट हो जाने वाले हैं, केवल बीच में ही प्रकट होते हैं; फिर ऐसी स्थिति में क्या शोक करना है ?
क्रमशः
                                       || हरिः शरणम् || 

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