Wednesday, June 11, 2014

मन |-२

                                    कल हमने जाना कि वास्तव में मन इस भौतिक शरीर में कहाँ पर निवास करता है |मुख्य रूप से मस्तिष्क के वे हिस्से जो इन्द्रियों से सम्बंधित होते है,उनपर मन का नियंत्रण रहता है |मन का दूसरा हिस्सा व्यक्ति के ह्रदय से सम्बंधित होता है |मन का यह हिस्सा  मुख्य रूप से भावना से सम्बंधित होता है और चित्त कहलाता है |इसे अंतर्मन भी कहा जा सकता है |वैसे यह मन के दोनों हिस्से संयुक्त रूप से कार्य करते हैं परन्तु कार्य करने की दृष्टि से दोनों में मूलभूत अंतर है |मन का वह बड़ा हिस्सा जो अपने स्थूल शरीर के निकट होता है वह मन ही कहलाता है और दूसरा हिस्सा जो आत्मा की तरफ या आत्मा के निकट होता है ,चित्त कहलाता है | मानव तंत्रिका तंत्र में केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र जिसमे मस्तिष्क और सुषुम्ना नाड़ी आते हैं उसमे इन्द्रियों के नियंत्रण करने वाले हिस्से को मुख्य रूप से मन ही नियंत्रित करता है |तंत्रिका तंत्र के दुसरे भाग,परिधीय तंत्रिका तंत्र के जिन भागों से जो नियंत्रण इन्द्रियों पर होता है उनका नियंत्रण मुख्य रूप से चित्त के पास होता है |हमारा परिधीय तंत्रिका तंत्र हमारी भावनाओं को नियंत्रित करता है |अतः यह तंत्र मन के दुसरे भाग चित्त  से सम्बंधित होता है |मन की समस्त कार्य प्रणाली इस मस्तिष्क और परिधीय तंत्रिका तंत्र से ही संचालित होती है |मन के कार्य करने के लिए उसके मूल उर्जा स्रोतों की उपस्थिति आवश्यक है अन्यथा मन किसी भी हालत में अपना कार्य करने में सक्ष्म नहीं रहेगा |
                            मन का आत्मा के निकट वाला हिस्सा या भाग जो चित्त होता है,वही चित्त सूक्ष्म शरीर का मुख्य तत्व होता है |इस स्थूल शरीर के ,इस तन के समाप्त हो जाने पर यह चित्त ही सूक्ष्म तरंगों के रूप में आत्मा के साथ आगे की यात्रा पर उसके साथ साथ चलता है |इसी चित्त में मानव जीवन के अधूरे रहे उद्देश्यों की पूर्ति के लिए आत्मा किसी नए तन की तलाश करती है |ये दोनों आत्मा और चित्त अर्थात कारण शरीर और सूक्ष्म शरीर फिर से किसी नए स्थूल शरीर (तन) में प्रवेश कर आगे की यात्रा पर निकल पड़ते हैं |यही पुनर्जन्म कहलाता है |पुनर्जन्म इस चित्त यानि सूक्ष्म शरीर का होता है ,आत्मा यानि कारण शरीर तो उसके साथ यात्रा करने को विवश है क्योंकि बिना कारण शरीर,बिना आत्मा के तन में जीवन संभव नहीं है | इस सूक्ष्म शरीर के स्थूल शरीर में आने को ही हम बंधन कहते है  और जब सूक्ष्म शरीर को किसी नए स्थूल शरीर की आवश्यकता नहीं रहेगी तब उसको हम मोक्ष होना या मुक्ति होना कह देते है |बंधन की स्थिति में आत्मा,चित्त के साथ बंधी रहती है और मोक्ष या मुक्ति की स्थिति में आत्मा चित्त के बंधन से मुक्त हो जाती है |अकेली आत्मा अपने मूल स्रोत,जिसका वह एक अंश मात्र है, में जाकर विलीन हो जाती है | यही आत्मा का परमात्मा के साथ मिलन है और मुक्ति भी |
क्रमशः
                                   || हरिः शरणम् ||

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