Tuesday, June 17, 2014

मन |-७

                               मन जब आत्मा और परमात्मा की तरफ उन्मुख हो जाता है तो व्यक्ति इस भौतिक तन का उपयोग अधिक बेहतर तरीके से करने लग जाता है । इस कारण से इस भौतिक शरीर की उपयोगिता अधिक प्रभावी हो जाती है । इस संसार की आलोचना करना आजकल एक फैशन सा बन गया है जबकि इस संसार में आये बिना,इस तन के द्वारा पुरुषार्थ किये बिना और इस मन की उपस्थिति के बगैर आध्यात्मिकता और परमात्मा को उपलब्ध होना असंभव है । अतः इस शरीर की,इस मन की निंदा करना अनुचित ही नहीं अस्वीकार्य भी है । हम बिना तन और मन के संसार में बने ही कैसे रह सकते हैं ? बिना इस भौतिक संसार के जब व्यक्ति का अस्तित्व ही नहीं होगा तो कैसा बंधन और कहाँ का मोक्ष ? परमात्मा को उपलब्ध होना तो बड़े दूर की कौड़ी है ।
                    जब तक हम इस तन को सुख उपलब्ध कराने ,इस शरीर को सुख देने के प्रयास करते रहेंगे तब तक यह मन भौतिकता में भटकता रहेगा । मन कभी कुछ सोचेगा कभीकुछ ।उस की गति बनी ही रहेगी । इसी को मन की चंचलता कहते हैं । मन थोड़ी थोड़ी देर में अपना मानस बदलता रहता है ,कभी सोचता है यह करना उचित रहेगा ,कभी सोचेगा वह करना सही होगा । इसे हम अस्थिर बुद्धि कह सकते हैं ।  बुद्धि का  अस्थिर  होना भी इस मन के कारण ही है । मन केवल भौतिकता में ही सुख को तलाश करता है । भौतिक वस्तुएं सदैव ही परिवर्तनशील होती है ,इस कारण से मन  वस्तुओं से सुख प्राप्त करने में संशकित रहता है जिसके कारण मन और बुद्धि अस्थिर हो जाते हैं । जिसका मन और बुद्धि स्थिर नहीं रहते वह व्यक्ति जीवन में कभी भी सुख प्राप्त नहीं कर सकता ।
                                   भौतिक वस्तुएं ,आपको एक बार सुख देने का अनुभव जरूर करा सकती है परन्तु मूल रूप से दुःख का कारण ही बनती है । इस बात को जानते सभी है परन्तु मानते हुए,स्वीकार कर जीवन में कोई भी नहीं उतारना चाहता । इसका सबसे बड़ा कारण है-व्यक्ति का मन । यह मन भीड़ तंत्र में विश्वास करता है । हमारा मन यह मानता है कि संसार में जिस कार्य को बहुधा लोग करते है वह उचित और सही होता है । परन्तु प्रत्येक स्थान पर यह बात लागू नहीं होती । आप चाहे कितनी ही जल्दी में हों,बाजार से कोई भी आवश्यक वास्तु खरीदकर घर पर शीघ्रता से पहुंचानी हो ,अगर रास्ते में तमाशा दिखाने वाले को भीड़ घेरे खड़ी होगी तो आप वहां कुछ समय उसे देखने के लिए जरूर रूकेंगे । कारण ? वही आपका मन,क्योंकि मन की ऐसी सोच है कि जब इतने व्यक्ति,इतनी भीड़ इसे देख रही है तो  अवश्य ही यहाँ से कुछ मुझे भी प्राप्त हो सकता है । प्राप्त चाहे कुछ भी नहीं हो परन्तु हम उसे कुछ समय के लिए देखेंगे अवश्य । यही हालात  आज के समय में बड़े बड़े बाबाओं ने कर रखी है । जिसने  जितनी ज्यादा भीड़ इक्कट्ठी कर ली,वही उतना ही बड़ा संत । आपका  मन भी भीड़ की तरफ आकर्षित होगा । आप भी वहां अवश्य जायेंगे और भीड़ का हिस्सा बन जायेंगे । आपका मन संतुष्ट हो जायेगा ,परन्तु सोचिये आपको क्या प्राप्त हुआ,आपको अर्थात आत्मा को संतुष्टि मिली या नहीं ? मैं जानता हूँ कि आत्मसंतुष्टि की परवाह कौन करता है ,यहाँ तो सब मन को ही संतुष्ट करने में लगे हैं ।
क्रमशः
                                                          ॥ हरिः शरणम् ॥
                                                                           

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