तन की दूसरी विशेषता है इसका अस्थायित्व भाव । तन कभी भी स्थाई नहीं होता,यह निरंतर परिवर्तनशील है । हम चाहे लाख कोशिश कर लें ,इस तन को एक दिन समाप्त होना ही है । जब तक हम में यह भावना रहेगी कि संसार में सब कुछ समाप्त हो रहा है और होता जा रहा है परन्तु हमें अपने आप को बचाए रखना है तब तक हमारे मन से मृत्यु का भय निकल नहीं सकता । भय इस संसार की सबसे बड़ी विकृति है ,जिसके कारण ही इस संसार में इतना वैमनस्य और स्वार्थ एक सीमा से अधिक बढ़ता जा रहा है । आज हम सब अपने अपने स्वार्थों की पूर्ति में लगे हुए हैं और इस प्रकृति को,इस संसार को नष्ट करने पर तुले हैं । हम यह नहीं जानते कि यह संसार है तो हम है,यह प्रकृति है तो हम है । सब पेड़ की छाया में तो बैठना चाहते है परन्तु पेड़ लगाना और उसका पालन पोषण करना कोई नहीं चाहता । पेड़ लगाने की बात तो दूर उलटे उन्हें काटने और समाप्त करने को उद्यत हैं ।
यह भौतिक शरीर ,स्थूल शरीर ,यह आपका तन, जिस को सजाने और संवारने में आप दिन रात एक किये जा रहे हैं,वह प्रतिपल बदल रहा है । आप कितना ही जतन करलें,विभिन्न प्रकार के योग कर लें , कितने ही उपचार के तरीके काम में लेते रहे,एक दिन इसे समाप्त होना ही है । इस तन को हम क्यों संभाल कर रखना चाहते हैं? जरा समय निकल कर सोचिये । जिस किसी को भी मैं अपने दैनिक प्रातः कालीन भ्रमण के दौरान पूछता हूँ सबके उत्तर लगभग एक समान और एक ही उद्देश्य लिए हुए होते हैं । किसी ने अपने चिकित्सक के कहने से भ्रमण और योग प्रारम्भ किया है,किसी के खून में कॉलेस्ट्रोल का स्तर अधिक है,किसी का वजन एक सीमा से अधिक है,किसी के उच्च रक्तचाप है ,कोई मधुमेह से पीड़ित है और जिस किसी को कोई बीमारी नहीं है वह भविष्य में होने वाली सम्भवित बीमारी से बचने के लिए ऐसा कर रहा है । सबके उत्तर समान है,अपने शारीरिक सवास्थ्य में सुधार यानि निजी स्वार्थ । मैंने पूछा-अच्छा स्वास्थ्य रख कर आपको क्या फायदा होगा?फिर वही एक समान उत्तर । अपनी आजीविका कमाने के लिए अच्छा स्वास्थ्य आवश्यक है, अभी परिवार में बच्चे छोटे हैं , बुजुर्गों का कहना होता है कि हाथ पांव चलते रहे तो किसी से सेवा कराने की आवश्यकता न पड़े आदि आदि । क्या इन सब की सोच ,इन सबका उत्तर सही है ? हाँ वो स्वार्थवश सच कह रहे हैं । परन्तु क्या इस तन का यही एक उद्देश्य होना चाहिए? क्या इस तन को हम केवल अपने काम में लेने से अलग किसी और काम के किये भी उपयोग में ले सकते हैं ?
हाँ,यह तन स्थाई नहीं है,अमरता लिए हुए नहीं है और इसका उपयोग हम अपने स्वार्थ सिद्धि के अतिरिक्त भी कर सकते है और करना भी चाहिए । अपने स्वार्थ के अतिरिक्त उपयोग करना ही आपके इस तन को पशु तन से अलग करता है,अन्यथा आपमें और एक पशु में अंतर ही क्या रह जायेगा ?
क्रमशः
|| हरिः शरणम् ||
यह भौतिक शरीर ,स्थूल शरीर ,यह आपका तन, जिस को सजाने और संवारने में आप दिन रात एक किये जा रहे हैं,वह प्रतिपल बदल रहा है । आप कितना ही जतन करलें,विभिन्न प्रकार के योग कर लें , कितने ही उपचार के तरीके काम में लेते रहे,एक दिन इसे समाप्त होना ही है । इस तन को हम क्यों संभाल कर रखना चाहते हैं? जरा समय निकल कर सोचिये । जिस किसी को भी मैं अपने दैनिक प्रातः कालीन भ्रमण के दौरान पूछता हूँ सबके उत्तर लगभग एक समान और एक ही उद्देश्य लिए हुए होते हैं । किसी ने अपने चिकित्सक के कहने से भ्रमण और योग प्रारम्भ किया है,किसी के खून में कॉलेस्ट्रोल का स्तर अधिक है,किसी का वजन एक सीमा से अधिक है,किसी के उच्च रक्तचाप है ,कोई मधुमेह से पीड़ित है और जिस किसी को कोई बीमारी नहीं है वह भविष्य में होने वाली सम्भवित बीमारी से बचने के लिए ऐसा कर रहा है । सबके उत्तर समान है,अपने शारीरिक सवास्थ्य में सुधार यानि निजी स्वार्थ । मैंने पूछा-अच्छा स्वास्थ्य रख कर आपको क्या फायदा होगा?फिर वही एक समान उत्तर । अपनी आजीविका कमाने के लिए अच्छा स्वास्थ्य आवश्यक है, अभी परिवार में बच्चे छोटे हैं , बुजुर्गों का कहना होता है कि हाथ पांव चलते रहे तो किसी से सेवा कराने की आवश्यकता न पड़े आदि आदि । क्या इन सब की सोच ,इन सबका उत्तर सही है ? हाँ वो स्वार्थवश सच कह रहे हैं । परन्तु क्या इस तन का यही एक उद्देश्य होना चाहिए? क्या इस तन को हम केवल अपने काम में लेने से अलग किसी और काम के किये भी उपयोग में ले सकते हैं ?
हाँ,यह तन स्थाई नहीं है,अमरता लिए हुए नहीं है और इसका उपयोग हम अपने स्वार्थ सिद्धि के अतिरिक्त भी कर सकते है और करना भी चाहिए । अपने स्वार्थ के अतिरिक्त उपयोग करना ही आपके इस तन को पशु तन से अलग करता है,अन्यथा आपमें और एक पशु में अंतर ही क्या रह जायेगा ?
क्रमशः
|| हरिः शरणम् ||
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