तन एक साधन है और इस साधन का उपयोग हमारा मन करता है |जिस प्रकार तन पुरुषार्थ के लिए आवश्यक है,उसी प्रकार इस पुरुषार्थ को शुरू करना मन के हाथ है |इस सृष्टि में जो कुछ भी हमें दृष्टिगत हो रहा है या अदृश्य है,सब कुछ उर्जा ही है |यह तन भी उर्जा है जो हमें दिखाई दे रही है और जब तन समाप्त हो जाता है यह उर्जा पञ्च भौतिक तत्वों में स्थानांतरित हो जाती है |इसी प्रकार इस तन को संचालित करने हेतु जो कारण शरीर होता है,जिसे आम बोल चाल में हम आत्मा नाम से संबोधित करते हैं वह भी एक प्रकार की उर्जा ही है |तन और आत्मा अर्थात स्थूल शरीर और कारण शरीर की उर्जा में एक मात्र अंतर यही है कि पहली उर्जा दृश्यमान है और दूसरी उर्जा अदृश्य |स्थूल (Physical Body)और कारण शरीर(Causal Body) के मध्य एक और शरीर होता है जिसे हम सूक्ष्म शरीर (Subtle Body) कहते हैं वह भी एक प्रकार की अदृश्य उर्जा ही है ,अंतर केवल इतना ही है कि इस उर्जा का स्रोत पहले वर्णित शरीरों अर्थात स्थूल शरीर यानि तन और कारण शरीर यानि आत्मा होता है |इनमे से किसी एक की भी उर्जा के अभाव में सूक्ष्म शरीर की उर्जा किसी भी कर्म करने के उद्देश्य से निष्प्रभावी होती है ,जबकि कारण और स्थूल शरीर की उर्जायें सदैव ही प्रभावी स्थिति में रहती हैं | इस सूक्ष्म शरीर के अंतर्गत ही हमारा मन आता है |मन के अतिरिक्त इसमे हमारी बुद्धि,अहंकार और पांच इन्द्रियों के पञ्च सूक्ष्म तत्व सम्मिलित है |मन के अधीन इन्द्रियों के पञ्च सूक्ष्म तत्व होते हैं जब कि बुद्धि और अहंकार मन के अधीन हो भी सकते हैं और नहीं भी |
सूक्ष्म शरीर के इन आठ तत्वों में मन सदैव ही केन्द्रीय भूमिका में होता है |इसीलिए हम तन के बाद मन और अंत में आत्मा,इसी क्रम में इनको रखते हैं |मन के कार्य करने की विधि जानने से पहले यह जानना आवश्यक है कि मन हमारे शरीर में कहाँ पर स्थित होता है |वैसे मन भी आत्मा की तरह ही एक अदृश्य उर्जा है परन्तु किसी भी उद्देश्य को संपन्न करने के लिए कर्म करने की आवश्यकता होती ही है |अतः मन भी शरीर की जड़ प्रकृति की ज्ञानेन्द्रियों और कर्मेंदियों से कर्म करवाता है |इन इन्द्रियों पर नियंत्रण मनुष्य के मस्तिष्क का होता है | मस्तिष्क के जो हिस्से इन इन्द्रियों को नियंत्रित करते हैं ,उनका नियंत्रण इस मन के पास होता है |इसीलिए मन को आम व्यक्ति अंग्रेजी में Mind कहता है | हालाँकि शास्त्रानुसार यह उपयुक्त शब्द नहीं है,फिर भी हमें शब्दजाल में उलझने से क्या हासिल होना है ? अतः हम इस शब्द को स्वीकार कर सकते है |हमारे मस्तिष्क के उस हिस्से को मन अपने नियंत्रण में रखता है ,जो हमारी इन्द्रियों और उनके विषयों से सम्बंधित है | मस्तिष्क में ही बुद्धि का निवास होता है,और बुद्धि से मन को नियंत्रित किया जा सकता है |मन ,बुद्धि और इस मस्तिष्क को जो उर्जा अपने नियंत्रण में रखती है उस उर्जा का नाम ही आत्मा है ,जो कारण शरीर भी कहलाती है |
क्रमशः
|| हरिः शरणम् ||
सूक्ष्म शरीर के इन आठ तत्वों में मन सदैव ही केन्द्रीय भूमिका में होता है |इसीलिए हम तन के बाद मन और अंत में आत्मा,इसी क्रम में इनको रखते हैं |मन के कार्य करने की विधि जानने से पहले यह जानना आवश्यक है कि मन हमारे शरीर में कहाँ पर स्थित होता है |वैसे मन भी आत्मा की तरह ही एक अदृश्य उर्जा है परन्तु किसी भी उद्देश्य को संपन्न करने के लिए कर्म करने की आवश्यकता होती ही है |अतः मन भी शरीर की जड़ प्रकृति की ज्ञानेन्द्रियों और कर्मेंदियों से कर्म करवाता है |इन इन्द्रियों पर नियंत्रण मनुष्य के मस्तिष्क का होता है | मस्तिष्क के जो हिस्से इन इन्द्रियों को नियंत्रित करते हैं ,उनका नियंत्रण इस मन के पास होता है |इसीलिए मन को आम व्यक्ति अंग्रेजी में Mind कहता है | हालाँकि शास्त्रानुसार यह उपयुक्त शब्द नहीं है,फिर भी हमें शब्दजाल में उलझने से क्या हासिल होना है ? अतः हम इस शब्द को स्वीकार कर सकते है |हमारे मस्तिष्क के उस हिस्से को मन अपने नियंत्रण में रखता है ,जो हमारी इन्द्रियों और उनके विषयों से सम्बंधित है | मस्तिष्क में ही बुद्धि का निवास होता है,और बुद्धि से मन को नियंत्रित किया जा सकता है |मन ,बुद्धि और इस मस्तिष्क को जो उर्जा अपने नियंत्रण में रखती है उस उर्जा का नाम ही आत्मा है ,जो कारण शरीर भी कहलाती है |
क्रमशः
|| हरिः शरणम् ||
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