Friday, June 27, 2014

धन |-६

                                   धन उपार्जित करना भी अनुचित नहीं है तथा  सृजित और संग्रहित करना भी अनुचित नहीं है । फिर अनुचित क्या है ? धन के बारे में कहा जाता है कि इसका होना ,नहीं होने से अधिक दुखदाई है । चौंक गये न आप ! जी हाँ,मैं बिलकुल सत्य कह रहा हूँ । धन के न होने से व्यक्ति के जीवन में मात्र एक ही दुःख होता है -धन के अभाव का दुःख ,उसके न होने का दुःख ।  और जब एक बार धन का आगमन प्रारम्भ हो जाता है तब व्यक्ति की विलासिता भी आवश्यकता बनने लग जाती है ।  मैं इस बात से सहमत हूँ कि धन का दैनिक आवश्यकता पूर्ति के लिए होना आवश्यक है । आपकी दैनिक आवश्यकताएं धन के अभाव में पूरी होना असंभव है । परन्तु जब धन का आगमन तीव्र गति से बढ़ता है तब व्यक्ति उस अतिरिक्त धन को विलासिता पर खर्च करने लग जाता है । विलासिता उस को कहते हैं जो इस शरीर के लिए तो कतई आवश्यक नहीं है बल्कि क्षण भर के लिए,थोड़े समय के लिए इस शरीर और मन को सुख देने वाली होती है ।
                              व्यक्ति को एक छोटा सा घर भी पर्याप्त होता है ,रहने के लिए । परन्तु अतिरिक्त धन से वह बंगला खरीदता है । मनोरंजन के लिए वह अत्यल्प खर्च करके भी उसे प्राप्त कर सकता है परन्तु धन की अधिकता को वह होम थियेटर बनाने में खर्च करता है । उसका एक छोटे से स्कूटर या छोटी कार से समस्त कार्य हो सकते है परन्तु वह लग्जरी कार खरीदना पसंद करता है । समाज में झूठी शान शौकत के प्रदर्शन के लिए वह अपने बेटे बेटी की शादी में फिजूलखर्ची करता है । यह सब विलासिता के अंतर्गत आता है । एक स्थिति ऐसी आती है जब यह विलासिता ही उसकी आवश्यकता बन जाती है । जब किसी कारणवश धन का आगमन नियंत्रित हो जाता है तब उसे यह विलासिताएं अपनाना भारी पड़ता है और वह उन्हें त्यागना भी चाहता है परन्तु त्याग नहीं सकता । विलासिताओं का त्याग करना संभव नहीं हो पाता क्योंकि विलासितापूर्ण जीवन जीने के लिए जो साधन काम में लिए जाते है वे समस्त चीजें अब व्यक्ति की आवश्यकताऐं बन चुकी होती हैं । जब विलासिताएं,आवश्यकताएं बन जाती है तो जीवनयापन बड़ा ही कठिन और दुखदाई हो जाता है। यही कारण है कि धन का अभाव ज्यादा अच्छा है बजाय धन का बाहुल्य होने से ।
                               अब प्रश्न यह उठता है कि धन के तीव्र आगमन के दौरान इसके इस प्रभाव से कैसे बचा जाये ? धन का उपभोग करना कहीं से भी अनुचित नहीं है, परन्तु उस उपभोग का आदी हो जाना अनुचित है । सुविधाओं का गुलाम बन जाना ही विलासिता को आवश्यकता बना देता है । आप प्रत्येक पैसे से सुख प्राप्त करना चाहते हैं , परन्तु उस क्षणिक सुख को ,उस तात्कालिक सुख को स्थाई न समझे । ऐसा होते ही आप प्रत्येक परिस्थिति में सुखी रहेंगे-धन होने पर भी और न होने पर भी । धन की प्राप्ति प्रारब्ध और पुरुषार्थ से ही संभव है,मैं तो यहाँ तक कहूँगा की धन केवल पुरुषार्थ से ही अर्जित किया जा सकता हैक्योंकि प्रारब्ध भी तो पूर्व जन्म में किये गए पुरुषार्थ से ही बनता है । अतः अपने द्वारा किये गए पुरुषार्थ के परिणाम द्वारा आप स्वयं संचालित न हो,यही ध्यान रखें । फिर यही पुरुषार्थ ,यही धन दुखदाई न होकर आनंद देने वाला साबित होगा ।
क्रमशः
                                ॥ हरिः शरणम् ॥ 

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