Saturday, June 28, 2014

धन |-७

                                  धन के उपार्जन और सृजन के बारे में हमने विचार किया और पाया कि अगर इसका उपार्जन उचित तरीके से किया जाये और संग्रहण भी व्यवस्थित हो तो व्यक्ति का जीवन सुखमय व्यतीत हो सकता है । धन के बारे में एकदम स्पष्ट है कि यह अस्थाई होता है और स्थान परिवर्तन करना इसकी विशेषता है । एक जगह यह कभी भी टिकता नहीं है । इसका विसर्जन होना निश्चित है । धन संग्रह करने वाले व्यक्ति को यह एक दम स्पष्ट होना चाहिए । एक उक्ति भी है कि आप चाहे जितना भी धन इक्कट्ठा कर ले,साथ में एक पैसा भी नहीं ले जाओगे । इस संसार को छोड़कर खाली हाथ ही जाना होगा । अन्तिम वस्त्र ,कफ़न के किसी भी प्रकार की कोई जेब नहीं होती है । अतः आपके इस अर्जित और सृजित किये हुए धन का विसर्जन होना निश्चित है ।
                                   धन का विसर्जन इतना आसन नहीं है । व्यक्ति का धन के प्रति लगाव अर्थात धन में आसक्ति इसके विसर्जन को प्रतिबंधित करती है । आसक्ति,धन का विसर्जन होने ही नहीं देती । धन की आसक्ति केवल उसके अर्जन और सृजन में ही विश्वास रखती है । इसी कारण परिवार में धन अथाह रूप से बढ़ता रहता है और आसक्ति के कारण खर्च कम होता है । खर्च कम इसलिए होता है क्योंकि संग्रहित धन में कमी आ जाने का सदैव ही भय बना रहता है । धन को तो सदैव एक व्यक्ति के पास तो रहना नहीं है ,वह तो समयबद्ध तरीके से व्यक्ति बदलता रहता है । इसी तरह एक दिन आपके द्वारा अर्जित और सृजित धन-संपदा को भी किसी अन्य व्यक्ति के हाथों में जाना निश्चित है । जब धन का विसर्जन होना निश्चित ही है,तो फिर यह विसर्जन क्यों न आपके अनुसार और आपके अनुकूल हो ?
                                  धन के विसर्जन को अगर समय रहते पूरा कर लिया जाये तो इस भौतिक शरीर की मृत्यु के समय व्यक्ति को किसी प्रकार का धन के प्रति मोह नहीं रहेगा । धन का मोह अन्य सभी के प्रति मोह पैदा करता है । धन के विसर्जन के साथ ही अन्य वस्तुओं और प्राणियों से मोह भी धीरे धीरे कम होने लगता है । इसीलिए अगर सभी प्रकार की ममता और मोह समाप्त करना है तो धन से वैराग्य पैदा होना आवश्यक है ।धन-सम्पति हमें परिवार के साथ बांधती है और इससे वैराग्य पैदा  होना हमें परिवार के बंधन से मुक्त करता है । अतः मुक्ति की प्रथम सीढ़ी धन से वैराग्य पैदा होना ही है । 
                                धन से वैराग्य होना,इसके विसर्जन का ही दूसरा नाम है । विसर्जन किस प्रकार और क्यों होता है ? विसर्जन इसलिए होता है कि यह धन यानि लक्ष्मी का चंचल स्वभाव माना जाता है । इसकी प्रकृति भी जड़ अर्थात अपरा कही गयी है । अपरा प्रकृति सदैव ही परिवर्तनशील होती है । इसी परिवर्तनशीलता के गुण के कारण धन का विसर्जन होना सदैव ही निश्चित होता है ।  विसर्जन या तो व्यक्ति स्वयं की मन मर्जी से कर सकता है नहीं तो यह अपने आप ही होजाता है । यह व्यक्ति की मानसिकता पर निर्भर है कि वह धन का विसर्जन स्वयं करना चाहता है या नहीं । धन का स्वयं के द्वारा किया जाने वाला विसर्जन उसे मुक्ति की राह पर ले जा सकता है ,नहीं तो वह धन के इस बंधन से जीवन में मुक्त नहीं हो पायेगा ।
क्रमशः
                                ॥ हरिः शरणम् ॥   

No comments:

Post a Comment