धन का उपार्जन ,सबसे पहली सीढ़ी है जिस पर व्यक्ति इस भौतिक संसार की ऊंचाइयां छूने के लिए प्रथम कदम रखता है । यहीं से वह अपने आपको मन के हवाले कर देता है । मन,जो स्वयं कुछ भी करने को असमर्थ है,उसे इस संसार की भौतिक वस्तुएं और उनसे प्राप्त होने वाला भौतिक सुख अपनी और आकर्षित करता है । प्रारम्भ में व्यक्ति इस मन के चक्कर में यह सोचकर आ जाता है कि" मुझे अपने जीवनयापन के लिए धन जुटाना आवश्यक है । एक बार मुझे इतना धन अर्जित कर लेना चाहिए जिससे मेरा जीवनयापन सुगमता से सके । ऐसी स्थिति आ जाने पर मैं इसे और अधिक उपार्जित करने के लोभ में नहीं आऊंगा । "लेकिन क्या ऐसा आज तक किसी के साथ हो पाया है ? क्या क निश्चित की गयी सीमा के पास आ जाने के बाद उसने अर्थार्जन ,धन का और अधिक उपार्जन करना बंद कर दिया है ? नहीं,ऐसा कभी न तो किसी ने किया है और न ही कोई ऐसा करने की सोचता तक है । यह एक वास्तविकता है ।
किसी अच्छे खासे धनपति के मकान के पड़ौस में ही,एक दम दीवार के लगते ही एक अत्यधिक गरीब व्यक्ति की झोंपड़ी थी । रात को इस भयंकर गर्मी में धनपति और उसकी पत्नी दो मंजिले मकान की छत पर गर्मी के मारे तड़पते रहते,नींद नहीं आती थी । उसकी पत्नी देखती कि पास की झोंपड़ी वाला गरीब व्यक्ति अपनी पत्नी और बच्चों के साथ,बिना किसी बिस्तर के ,मामूली सी चटाई पर रात को गहरी नींद में सोते । गरीब व्यक्ति दिनभर मेहनत मजदूरी करता और रात को लौटते समय खाने का सामान खरीद कर लाता तभी घर में भोजन बनता। रात को पास में एक पैसा भी नहीं बचता । सुबह उठते ही फिर से वही चक्कर। एक दिन धनपति की पत्नी से रहा नहीं गया । उसने अपने पति से आखिर पूछ ही लिया कि " यह गरीब व्यक्ति इतनी मस्त नींद कैसे ले लेता है जबकि आप आप रात भर सो नहीं पाते हो ,चाहे कैसा ही मौसम हो । जबकि हमारे पास सभी सुख सुविधा और साधन उपलब्ध है । आपके न सोने के कारण मुझे भी जागना पड़ता है ।"
धनपति ने उत्तर दिया-"सब ९९ का फेर है । मैंने इतना सारा धन कमा लिया है,इतनी धन सम्पदा सृजित कर ली है परन्तु मेरे मन में एक ही डर लगा रहता है कि कही इसमे कमी न हो जाय । इस कारण से रात भर मैं इसे बनाये रखने की ही सोचता रहता हूँ और इस कारण से मुझे रात भर नींद नहीं आती । इस बेचारे गरीब के पास रात को एक फूटी कौड़ी ही पास में नहीं रहती तो फिर कम होने का भय कहाँ होगा ? इस कारण से वह भलीभांति अच्छी नींद ले पाता है । "उसकी पत्नी इस बात से असहमत थी । धनपति ने उसे एक दिन साबित करके दिखाने का भरोसा दिया । एक बार जब उसकी पत्नी अपने पीहर गयी हुई थी । उसने एक रात को चुपके से गरीब की झोंपड़ी के बाहर में ९९ रुपये डाल दिए । हमेशा की तरह भोर में गरीब उठा । उठते ही उसकी नज़र एक रुपये के नोट पर पड़ी । उसने उसे इधर उधर देखा और फिर उसे उठा लिया । तभी उसकी दृष्टि कई और बिखरे नोटों पर पड़ी । उसने सभी नोट उठा लिए और गिनने लगा । ओह! ये तो ९९ ही है ,१०० से एक कम। अब इनको पूरे १०० कैसे करूँ ? इसी उहाँपोँह में वह दिन की मज़दूरी पर निकल गया । रात को लौटा तो खाने का सामान थोड़ा कम था । पत्नी ने पूछा तो उसने टाल दिया । उसकी एक दिन की बचत बी उन ९९ रु. को १०० पूरे नहीं कर सकी । दूसरे दिन पत्नी ने किसी और चीज को लेकर आने का कह दिया ।इस प्रकार प्रतिदिन उसके पास अंत में ९९ रुपये ही रह जाते,१०० रुपये कभी भी पूरे नहीं हो पाते । अब उसको भी इन्हे १०० करने की धुन में रात भर सोचते रहने से नींद नहीं आती ।
एक दिन धनपति की पत्नी लौट आयी । धनपति उसे रात को छत पर ले गया । अब आश्चर्यचकित होने की बारी उसकी पत्नी की थी । उसने देखा कि गरीब व्यक्ति भी रात को सो नहीं पा रहा है । उसने पति से इसका कारण पूछा । धनपति ने कहा-"मैंने कहा था न ,सब ९९ का फेर है ।"इस प्रकार उसने अपनी पत्नी को पूरा घटनाक्रम बता दिया । अब उसकी पत्नी भी पूरी बात समझ गयी ।पत्नी सोच रही थी कि कैसे एक भला चंगा व्यक्ति इस धन के चक्कर में पड़कर अपने जीवन की शांति को खो बैठता है ?
क्रमशः
॥ हरिः शरणम् ॥
किसी अच्छे खासे धनपति के मकान के पड़ौस में ही,एक दम दीवार के लगते ही एक अत्यधिक गरीब व्यक्ति की झोंपड़ी थी । रात को इस भयंकर गर्मी में धनपति और उसकी पत्नी दो मंजिले मकान की छत पर गर्मी के मारे तड़पते रहते,नींद नहीं आती थी । उसकी पत्नी देखती कि पास की झोंपड़ी वाला गरीब व्यक्ति अपनी पत्नी और बच्चों के साथ,बिना किसी बिस्तर के ,मामूली सी चटाई पर रात को गहरी नींद में सोते । गरीब व्यक्ति दिनभर मेहनत मजदूरी करता और रात को लौटते समय खाने का सामान खरीद कर लाता तभी घर में भोजन बनता। रात को पास में एक पैसा भी नहीं बचता । सुबह उठते ही फिर से वही चक्कर। एक दिन धनपति की पत्नी से रहा नहीं गया । उसने अपने पति से आखिर पूछ ही लिया कि " यह गरीब व्यक्ति इतनी मस्त नींद कैसे ले लेता है जबकि आप आप रात भर सो नहीं पाते हो ,चाहे कैसा ही मौसम हो । जबकि हमारे पास सभी सुख सुविधा और साधन उपलब्ध है । आपके न सोने के कारण मुझे भी जागना पड़ता है ।"
धनपति ने उत्तर दिया-"सब ९९ का फेर है । मैंने इतना सारा धन कमा लिया है,इतनी धन सम्पदा सृजित कर ली है परन्तु मेरे मन में एक ही डर लगा रहता है कि कही इसमे कमी न हो जाय । इस कारण से रात भर मैं इसे बनाये रखने की ही सोचता रहता हूँ और इस कारण से मुझे रात भर नींद नहीं आती । इस बेचारे गरीब के पास रात को एक फूटी कौड़ी ही पास में नहीं रहती तो फिर कम होने का भय कहाँ होगा ? इस कारण से वह भलीभांति अच्छी नींद ले पाता है । "उसकी पत्नी इस बात से असहमत थी । धनपति ने उसे एक दिन साबित करके दिखाने का भरोसा दिया । एक बार जब उसकी पत्नी अपने पीहर गयी हुई थी । उसने एक रात को चुपके से गरीब की झोंपड़ी के बाहर में ९९ रुपये डाल दिए । हमेशा की तरह भोर में गरीब उठा । उठते ही उसकी नज़र एक रुपये के नोट पर पड़ी । उसने उसे इधर उधर देखा और फिर उसे उठा लिया । तभी उसकी दृष्टि कई और बिखरे नोटों पर पड़ी । उसने सभी नोट उठा लिए और गिनने लगा । ओह! ये तो ९९ ही है ,१०० से एक कम। अब इनको पूरे १०० कैसे करूँ ? इसी उहाँपोँह में वह दिन की मज़दूरी पर निकल गया । रात को लौटा तो खाने का सामान थोड़ा कम था । पत्नी ने पूछा तो उसने टाल दिया । उसकी एक दिन की बचत बी उन ९९ रु. को १०० पूरे नहीं कर सकी । दूसरे दिन पत्नी ने किसी और चीज को लेकर आने का कह दिया ।इस प्रकार प्रतिदिन उसके पास अंत में ९९ रुपये ही रह जाते,१०० रुपये कभी भी पूरे नहीं हो पाते । अब उसको भी इन्हे १०० करने की धुन में रात भर सोचते रहने से नींद नहीं आती ।
एक दिन धनपति की पत्नी लौट आयी । धनपति उसे रात को छत पर ले गया । अब आश्चर्यचकित होने की बारी उसकी पत्नी की थी । उसने देखा कि गरीब व्यक्ति भी रात को सो नहीं पा रहा है । उसने पति से इसका कारण पूछा । धनपति ने कहा-"मैंने कहा था न ,सब ९९ का फेर है ।"इस प्रकार उसने अपनी पत्नी को पूरा घटनाक्रम बता दिया । अब उसकी पत्नी भी पूरी बात समझ गयी ।पत्नी सोच रही थी कि कैसे एक भला चंगा व्यक्ति इस धन के चक्कर में पड़कर अपने जीवन की शांति को खो बैठता है ?
क्रमशः
॥ हरिः शरणम् ॥
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