Saturday, June 21, 2014

मन |-११

                                                     जब सब कुछ मन पर ही निर्भर है,तो फिर क्यों न  इसकी आलोचना करने के स्थान पर इसका सदुपयोग किया जाये । एक बुद्धिमान व्यक्ति मेरी इस बात से शतप्रतिशत सहमत होगा । संसार में कोई भी वस्तु अनुपयोगी नहीं है । यहाँ कोई भी वस्तु निंदा करने के योग्य नहीं है । मन को व्यक्ति बड़ी आसानी से अपने नियंत्रण में ले सकता है,सिर्फ आवश्यकता है प्रबल इच्छाशक्ति की।बिना इच्छाशक्ति के इस संसार में कुछ भी संभव नहीं है । मन की चंचलता को आप उसी के विरुद्ध एक हथियार बना सकते हैं । सांसारिक वस्तुओं और सांसारिक भोगों के लिए भटक रहे मन को आप परमात्मा कि तरफ बार बार लाने का प्रयास करते हुए एक दिन सफल हो सकते हैं । मन को वासना और इच्छा पूर्ति से दूर हटाने के दो रास्ते हैं-प्रथम रास्ता सांसारिकता में अति की सीमा तक बढा जाये और दूसरा रास्ता है मन को उसकी इच्छा के विपरीत ही साधन उपलब्ध कराये जाये ।
                      प्रथम मार्ग के अनुसार जो भी इच्छा मन की हो,मन करना चाहता हो,वह मन को करने दें ,जो साधन मन मांगता हो ,उपलब्ध करवाते रहें ।इससे यह फायदा होगा कि मन उस  इच्छा से अतिसंतृप्त  हो जायेगा और उस इच्छा से विमुख होने लगेगा । इसमें एक ही सावधानी रखने की आवश्यकता है कि मन की इन इच्छाओं को और अधिक विस्तार न लेने दें । उदाहरण के लिए,अगर कोई बच्चे का मन हर समय आम खाने को करता है तो उसे लगातार प्रतिदिन अधिक मात्र में आम खिलाते रहें । इस प्रकार प्रतिदिन आम खाने से वह अतिसंतृप्त होकर आम से विमुख हो जायेगा । परन्तु ध्यान रहे ,उसकी इच्छा फिर आगे विस्तार पाकर और कुछ पाने की कामना ना करने पाए । यह तरीका शास्त्रोक्त बिलकुल भी नहीं है । न ही सनातन शास्त्र कहते है-इस बारे में । इस बारे में विज्ञान जरूर कहता है कि अगर किसी वस्तु या व्यक्तिके संपर्क में व्यक्ति लगातार रहता है तो वह व्यक्ति एक निश्चित समय के उपरांत उससे विमुख हो जाता है । इसी आधार पर आधुनिक युग के कई दार्शनिक इस तरीके को आज के युग के लिए उपयुक्त मानते और बताते हैं ।
                      दूसरा मार्ग है-मन पर पूर्णतया नियंत्रण स्थापित कर लेना । यह रास्ता उपयुक्त भी है और शास्त्रोक्त भी । इसके अनुसार मन की अनुचित इच्छा को कभी भी पूरा करने की कोशिश न करे। जब भी  मन की अनुचित इच्छा सामने आये,इसको बलात परमात्मा की ओर लगाने का प्रयास करें । एक दिन आप पाएंगे कि मन भौतिक संसाधनों और भौतिक सुख की कामना से दूर होता जा रहा है ।यही सबसे उपयुक्त मार्ग है क्योंकि इस मार्ग पर चल पड़ने के बाद न तो मन में कोई नई कामना जन्म ले पाती है और न ही किसी इच्छा का विस्तार ही होता है । इसी को मन का परमात्मा को अर्पण करना कहते हैं । संसार में रहते हुए,मन की इच्छा के अनुसार चलते रहने से मन का परमात्मा को अर्पण होना असंभव है । मन परमात्मा का ही बनाया  हुआ है,उसे उसी में लगायें तभी मन का अर्पण सफल होगा ।कबीर ने कहा भी है-
                              मन के मते ना चालिए,मन के मते अनेक ।
                              जो मन पर असवार हो,वो  साधु कोई एक ॥
कल से "धन"पर ध्यान देंगे....
                                                 ॥ हरिः शरणम् ॥  

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