Sunday, November 26, 2017

भज गोविन्दम् - श्लोक सं.26(कल से आगे-4)-

भज गोविन्दम् – श्लोक सं.26(कल से आगे-4)-
             क्या कारण रहा होगा, जो सिकंदर ने अपने गुरु की बात को सुनकर भी अनसुना कर दिया ? अगर सिकंदर स्वयं के भीतर प्रवेश कर विश्राम खोजता, स्वयं के अन्दर जाकर सुख को खोजता तो विश्राम और सुख दोनों; वहीँ उसी समय, उसी स्थान पर उसे उपलब्ध हो जाते | परन्तु नहीं, सिकंदर तो दूसरों से सुख पाना चाहता था | दूसरों को अपने अधीन कर सुखी होना चाहता था | इसीलिए उसने अपने गुरु की बात को अनसुना कर दिया और विश्व विजय के लिए चल पड़ा | यह ‘काम’ ही उसे प्रेरित कर रहा था, विश्व विजय के लिए | एक देश को जीतते ही दूसरे देश को जीतने की कामना मन में उठ जाती, यह लोभ उसको फिर नई कामना को पूरी करने के लिए प्रेरित करता | जब किसी देश को वह जीतने में असफल हो जाता तो उसे क्रोध आता और इस क्रोध के वशीभूत होकर वह और अधिक हिंसक हो उठता | इस एक ‘काम’ नामक विकार के उपस्थित होने के कारण से महान कहे जाने वाले सिकंदर जैसे व्यक्ति में भी एक-एक कर सभी विकार उत्पन्न हो गए |
         हम भी सिकंदर से किसी प्रकार भिन्न नहीं है | सिकंदर के मन में विश्व विजय के प्रति जो आसक्त-भाव था, उसी का नाम ‘काम’ है | हमारे भीतर किसी अन्य को अपने अधीन कर सुख प्राप्त करने की चाहना है, वह भी ‘काम’ है | सम्पूर्ण विश्व पर विजय और किसी एक व्यक्ति पर विजय, दोनों के प्रति आसक्त होने में कोई अंतर नहीं है | हाँ, मात्रात्मक अंतर अवश्य है परन्तु गुणात्मक अंतर बिलकुल भी नहीं है | दोनों में ही ‘काम’ प्रधान है | हम क्यों स्वयं में सुख को नहीं खोजते हैं ? दूसरों से मिलने वाला सुख अस्थाई है जबकि स्वयं से मिलने वाला सुख स्थाई होता है | किसी दूसरे से मिलने वाला सुख, कभी न कभी दुःख का कारण बनेगा ही; यह निश्चित है | स्वयं से मिलने वाला सुख कभी भी दुःख में नहीं बदलेगा, इसीलिए ऐसे सुख को आनंद कहा गया है | दूसरों से मिलने वाले सुख में विश्राम और शांति का नितांत अभाव है क्योंकि उस सुख के एक दिन तिरोहित हो जाने का भय सदैव बना रहता है | भयग्रस्त व्यक्ति कभी भी शांत रहकर विश्राम को उपलब्ध नहीं हो सकता | स्वयं के भीतर जाने से मिलने वाला सुख कभी समाप्त नहीं हो सकता अतः उसके खोने का भय भी नहीं रहता | भय न रहने से सदैव के लिए शांति और विश्राम भी उपलब्ध हो जाता है | इस प्रकार भगवान ने अर्जुन को ‘काम’ से सदैव सजग रहने को कहा है और उसे बलपूर्वक मारने का कहा है |
क्रमशः
प्रस्तुति – डॉ. प्रकाश काछवाल

|| हरिः शरणम् ||

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