Tuesday, November 14, 2017

भज गोविन्दम्य - श्लोक सं.-21(समापन)-

भज गोविन्दम् – श्लोक सं.-21(समापन)-
             शंकराचार्यजी महाराज के शिष्य का इस श्लोक के माध्यम से यही कहना है कि यह बार-बार मरना, बार-बार माता के गर्भ में पड़ना, विभिन्न प्रकार के शरीर धारण करना और उन्हें त्यागना, इनसे कैसे पार हुआ जा सकता है ? यह संसार चक्र है, उसे ही संसार सागर कहा गया है | इस संसार सागर से पार जाने का कौन सा मार्ग है ? बार-बार जन्म लेना और बार-बार का मरना, इस प्रक्रिया से यह जीवात्मा तंग आ चुकी है | हे मुरारी ! मुझे इस संसार सागर से बाहर होने का रास्ता दिखा | संसार सागर को पार करने का सरल रास्ता केवल और केवल एक ही है | गोविन्द की भक्ति |
          गोविन्द को भजने का अर्थ है, इस शरीर से जो भी कर्म करें, उसे परमात्मा के लिए कर्म करना मानें | प्रत्येक प्राणी के ह्रदय में परमात्मा निवास करते हैं, उन्हें किसी भी प्रकार का दुःख नहीं पहुंचाएं | ब्रह्मलीन स्वामी रामसुखदासजी महाराज कहते थे कि ‘यह मनुष्य शरीर संसार की सेवा करने के लिए मिला है | संसार की सेवा करें और संसार से पिंड छुडाएं |’ संसार की सेवा तभी हो सकती है, जब आप संसार का आश्रय न लेकर परमात्मा का आश्रय लें | एक परमात्मा का आश्रय ही आपको संसार के दुखों से मुक्ति दिला सकता है | संसार के दुखों से मुक्ति पा जाना ही संसार सागर के पार चले जाना है | परमात्मा का आश्रय ले गोविन्द को भजो और उससे प्रार्थना करो |
         ‘हे परम पूज्य परमात्मा ! मुझे अपनी शरण में ले लो | मैं इस जन्म और मृत्यु के चक्कर से मुक्ति पाना चाहता हूँ | मुझे इस संसार रुपी विशाल समुद्र को पार करने की शक्ति दो, ईश्वर |’
       इसीलिए भज गोविन्दम्  में शंकराचार्य महाराज का शिष्य कह रहा है कि -
पुनरपि जननं पुनरपि मरणं, पुनरपि जननी जठरे शयनम् |
इह संसारे बहु दुस्तारे, कृपया पारे पाहि मुरारे ||21||
अर्थात बार-बार जन्मना, बार-बार मरना बार-बार मां के गर्भ में शयन, इस संसार से पार जाना बहुत ही कठिन है | हे कृष्ण ! हे मुरारी !! मुझे इस आवागमन से मुक्त कर दे |
 भज गोविन्दं भज गोविन्दं गोविन्दं भज मूढमते ||”
कल श्लोक सं.-22
प्रस्तुति – डॉ’ प्रकाश काछवाल

|| हरिः शरणम् ||

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