Sunday, November 5, 2017

भज गोविन्दम् - श्लोक सं. 17(समापन)-

भज गोविन्दम् – श्लोक सं.17(समापन)-
            हमारा उद्देश्य  आत्म-ज्ञान प्राप्त करना ही होना चाहिए | आत्म-बोध होना ही परमात्मा को पा लेना है और यही परम ज्ञान है | इस अवस्था को उपलब्ध होते ही व्यक्ति सहज रहने लगता है | उसे संसार की कोई भी बात चाहे वह उचित हो अथवा अनुचित, सुख पहुँचाने वाली हो अथवा दुःख दायी, मान बढाने वाली हो अथवा अपमानित करने वाली, किसी भी परिस्थिति से वह विचलित नहीं हो सकेगा | यह परम ज्ञान प्राप्त हो जाने की अवस्था है | “समत्वं योग उच्यते”, (गीता-2/48)गीता में इस अवस्था को भगवान श्री कृष्ण ने समत्व-योग कहा है |
              गंगासागर जैसे कठिन तीर्थों की यात्रायें शरीर को थका देने वाली होती हैं | ऐसी यात्रायें आपके शरीर को प्रभावित कर सकती है, मन को नहीं | कठोर व्रत भी शरीर को ही कष्ट देते हैं, उनसे मन को प्रभावित नहीं किया जा सकता | दान अवश्य ही कुछ स्तर तक आपको मानसिक संतुष्टि दे सकता है परन्तु दान के जो प्रकार गीता में बतलाये गए है उनमें केवल सात्विक दान ही फलदायी होते है | शंकराचार्यजी के अनुसार उपरोक्त तीनों कार्य आप चाहे एक सौ वर्षों तक करें, आप मुक्त नहीं हो सकते | हमें मुक्त होना है, सांसारिक बंधनों से, मोह-माया से, मन में उठ रही सांसारिक कामनाओं और अनगिनत इच्छाओं से | इनसे मुक्त होने के लिए ये तीनों उपाय व्यर्थ हैं | हमें चाहिए कि हम परमात्मा की खोज में लगें, स्वयं के भीतर उसको पाने की लगन पैदा करें, तभी परम ज्ञान को पाया जा सकता है | परम ज्ञान क्या है ? परम ज्ञान है, स्वयं को जान लेना | हम सब परमात्मा स्वरूप ही हैं, इसको जानकर ज्ञानी हो जाना | यही आत्म-बोध है | राजकुमार सिद्धार्थ ने उपरोक्त वर्णित सभी उपाय किये थे | उनको कर-कर के वे थक चुके थे | तीर्थ यात्रायें, कठोर व्रत आदि ने उनके शरीर को जर्जर कर दिया था | परन्तु जब वे परम ज्ञान को उपलब्ध हुए तभी वे सहज अवस्था को उपलब्ध होकर भगवान बुद्ध कहलाये | कबीर भी कहते हैं –
आतम-ज्ञान बिना सब सूना, क्या मथुरा क्या काशी |
कहत कबीर सुनो भाई साधो, गुरु बिना मिटे न चौरासी ||
अर्थात चाहे आप कितनी ही यात्रायें मथुरा, काशी आदि तीर्थ स्थानों की कर लें, आत्म-ज्ञान हुए बिना आप आवागमन से मुक्त नहीं हो सकते | गुरु से ज्ञान प्राप्त कर ही आप इन चौरासी लाख योनियों में जाने से अपने आपको रोक सकते हैं अन्य उपायों से नहीं | यह सब होगा, गुरु के पास जाकर आत्म-ज्ञान प्राप्त करने से | यही बात शंकराचार्य महाराज का यह शिष्य भी कह रहा है -
कुरुते गंगासागरगमनं, वृतपरिपालनमथवादानम् |
ज्ञानविहीन:सर्वमतेन मुक्तिः, न भवति जन्मशतेन ||17||
अर्थात संसार का प्रत्येक धर्म कहता है कि बिना ज्ञान प्राप्त किये मुक्त नहीं हुआ जा सकता | केवल गंगासागर जाकर स्नान करने से, व्रतादि कर लेने से अथवा दान देने से भी सौ जन्मों में भी मुक्ति नहीं हो सकती | हमें मुक्ति की प्राप्ति सिर्फ आत्मज्ञान के द्वारा प्राप्त हो सकती है | लम्बी यात्रा पर जाने से या कठिन व्रत रखने से हमें परम ज्ञान अथवा मोक्ष प्राप्त नहीं होगा |
कल श्लोक सं.-18
प्रस्तुति – डॉ. प्रकाश काछवाल

|| हरिः शरणम् || 

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