भज गोविन्दम् – श्लोक
सं.20(समापन)-
गीता का मन से अध्ययन, गोविन्द को
भजते हुए भक्ति रस का पान करना और श्री कृष्ण की मन से पूजा करना व्यक्ति को संसार
के सभी प्रकार के भय से मुक्त कर सकता है | व्यक्ति
के भयग्रस्त रहने के अनेकों कारण हैं | भय क्या है ? जब तक हम भय को नहीं जानेंगे
तब तक उससे मुक्त नहीं हुआ जा सकता है | इस सांसारिक जीवन में प्रत्येक भय का एक
ही आधार है और वह आधार है, जो कुछ भी मिला है, उसके खो जाने का भय | धन मिला है,
उसके खो जाने का भय, परिवार मिला है, उसके खो जाने का डर, मान-सम्मान के मिट जाने
का भय, संसार में बने सामाजिक स्तर से नीचे गिर जाने का भय और इस मनुष्य शरीर की
मृत्यु हो जाने का भय | सभी प्रकार के भय व्यक्ति को मुक्त होकर इस जीवन को जीने
से वंचित कर देते हैं | सबसे बड़ा भय ही इस शरीर के रोगग्रस्त हो जाने तथा इसको
मृत्यु आकर मिट जाने का है |
सभी भय मन की उपज है | मन पर
नियंत्रण से ही भय पर नियंत्रण पाया जा सकता है | हमारे जीवन में चारों ओर जिस
प्रकार की गतिविधियाँ होती रहती है उसके कारण व्यक्ति सदैव डरा-डरा रहता है | इसका
कारण है कि व्यक्ति संसार को ही सब कुछ मानकर उसके आश्रय ही रहता है | अगर व्यक्ति
को भयमुक्त होना है, तो उसे इस संसार का आश्रय छोड़ना होगा | एक परमात्मा का आश्रय
ही हमें इस जीवन में भयमुक्त कर सकता है | परमात्मा के आश्रय के लिए श्री
मद्भगवद्गीता का अध्ययन, भक्ति-भाव से गोविन्द को भजना और मन लगाकर श्री कृष्ण की
पूजा करना आवश्यक है | मन को परमात्मा में लगाये बिना उसका आश्रय पाना असंभव है |
हम केवल उसकी पूजा उस परमात्मा में बिना मन लगाये करते रहें और उसके आश्रय हो गए
हैं, ऐसा मान लेना अनुचित है |
जो अपना समय आत्मज्ञान को प्राप्त करने
में लगाते हैं, जो सदैव परमात्मा का स्मरण करते हैं एवं भक्ति के मीठे रस डूब जाते
हैं, उन्हें ही संसार के सारे दुःख-दर्द एवं कष्टों से मुक्ति मिलती है | इसी को
जीवन-मुक्त होना कहते हैं, जिसमें मृत्यु का भी भय नहीं रहता | इसीलिए शंकराचार्य
अपने शिष्य के श्लोक के द्वारा यह कह रहे हैं कि -
भगवद्गीता किंचिदधीता,
गंगा-जल-कणिका-पीता |
सकृदपि येन मुरारि समर्चा
तस्ययमः किं कुरुते चर्चाम् ||20||
अर्थात जिसने भगवद्
गीता का थोडा सा भी अध्ययन किया है, जिसने भक्ति रुपी गंगा के कण भर जल का भी पान
किया है भगवान श्री कृष्ण की एक बार भी मन से पूजा की है, यम भी भला उसकी चर्चा तक
कैसे कर सकता है यानि यम भी उसकी चर्चा नहीं करता |
“|| भज गोविन्दं भज
गोविन्दं गोविन्दं भज मूढमते ||”
कल श्लोक सं.-21
प्रस्तुति – डॉ.
प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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