Friday, November 10, 2017

भज गोविन्दम् – श्लोक सं.-20

भज गोविन्दम् – श्लोक सं.-20
भगवद्गीता किंचिदधीता, गंगा-जल-कणिका-पीता |
सकृदपि येन मुरारि समर्चा तस्ययमः किं कुरुते चर्चाम् ||20||
अर्थात जिसने भगवद् गीता का थोडा सा भी अध्ययन किया है, जिसने भक्ति रुपी गंगा के कण भर जल का भी पान किया है भगवान श्री कृष्ण की एक बार भी मन से पूजा की है, यम भी भला उसकी चर्चा तक कैसे कर सकता है यानि यम भी उसकी चर्चा नहीं करता |
            ब्रह्म में मन लगाने पर व्यक्ति आनंद को उपलब्ध हो सकता है | ब्रह्म में मन लगता तभी है, जब हम गोविन्द को भजें | गोविन्द को भजना ही भक्ति है | शास्त्रों का नियमित अध्ययन हमें भक्ति की राह पर अग्रसर कर देता है | इस श्लोक के माध्यम से शंकराचार्य महाराज अपने शिष्य के द्वारा क्या सन्देश देना चाहते हैं ? गोविन्द को भजना कोई आसन कार्य नहीं है | हम अपने द्वारा निर्मित किये संसार में इतने अधिक रमे हुए हैं कि परमात्मा का नाम लेना सबसे कठिन लगता है | जिह्वा से गोविन्द का नाम पुकारना अर्थहीन है | गोविन्द को तो भीतर से पुकारना होगा, ह्रदय से पुकारना होगा | ह्रदय से गोविन्द का नाम पुकारना ही उसे भजना कहलाता है |
               श्री मद्भगवद्गीता, साक्षात् परमात्मा की वाणी, जिसे पढ़कर ज्ञान को उपलब्ध हुआ जा सकता है | गीता का अध्ययन व्यक्ति की सभी प्रकार की आसक्तियों मिटा डालता है |इसी लिए इस श्लोक में गीता के अध्ययन को महत्वपूर्ण बताया गया है | गीता का अध्ययन व्यक्ति के भीतर भक्ति की गंगा का प्रवाह कर देता है | इस प्रवाह का थोडा सा भी जल जो पी लेता है, वह कृतकृत्य हो जाता है | भगवान श्री कृष्ण साक्षात् परमात्मा के व्यक्त रूप हैं | श्लोक कहता है कि जिसने भगवान श्री कृष्ण की थोड़ी सी भी पूजा कर ली है, उस व्यक्ति की चर्चा यम तक नहीं कर सकता | इसका अर्थ यह नहीं है कि व्यक्ति का शरीर अमर हो जाता है और यम उसे लेने नहीं आएगा | गोविन्द को भजने वाले व्यक्ति की यम चर्चा तक नहीं करता, इसका अर्थ है कि गोविन्द को भजने वाला मृत्यु के भय से मुक्त हो जाता है | संसार में सबसे बड़ा भय ही मृत्यु का भय है | भय मुक्त हो जाना ही सबसे अधिक आवश्यक है | अगर कोई व्यक्ति श्री कृष्ण की पूजा करते हुए भी भयग्रस्त है तो इसका एक ही अर्थ है कि उसने मन से भगवान की पूजा नहीं की है |
क्रमशः
प्रस्तुति – डॉ. प्रकश काछवाल

|| हरिः शरणम् ||

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