Sunday, November 19, 2017

भज गोविन्दम् - श्लोक सं.-24(समापन)-

भज गोविन्दम् – श्लोक सं.24(समापन)-
         संसार के कण-कण में परमात्मा का वास है | कोई भी प्राणी ईश्वर की कृपा से अछूता नहीं है | यह मान लेना सत्य को स्वीकार कर लेना है | जब इस ब्रह्माण्ड के प्रत्येक कण में परमात्मा का वास है इसका अर्थ है कि हमारे भीतर भी परमात्मा ही निवास कर रहे हैं | गीता में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं –
अहमात्मा गुडाकेश सर्वभूताशय स्थितः |
अहमादिश्च मध्यं च भूतानामन्त एव च || गीता-10/20 ||
अर्थात हे अर्जुन ! मैं सब प्राणियों में स्थित सबका आत्मा हूँ तथा सभी भूतों का आदि, मध्य और अंत भी मैं ही हूँ |
         सभी प्राणियों के भीतर परमात्मा आत्मा के रूप में निवास करते हैं | परमात्मा का अंश आत्मा है और उसी के कारण ही यह भौतिक शरीर सक्रिय रहता है | जिस दिन इस शरीर को आत्मा छोड़कर चली जाएगी, यह शरीर मृत होकर किसी काम का नहीं रहेगा | स्वयं के भीतर उपस्थित परमात्मा की उपस्थिति को पहचान लेना ही विष्णु पद को प्राप्त कर लेना है | यही आत्म-बोध भी है और यही परम-ज्ञान है | जिस दिन हमें यह ज्ञान उपलब्ध हो जायेगा, हमारा चित्त भी इधर उधर भटकना छोड़ देगा और व्यक्ति स्थितप्रज्ञ हो जायेगा | स्थितप्रज्ञ पुरुष ही समान चित्त वाला होता है और सभी प्राणियों को समान भाव से देखता है | जब चित्त सर्वत्र समान भाव वाला हो जाता है तो व्यक्ति के जीवन में सुख-दुःख, राग-द्वेष आदि का कोई स्थान नहीं रहता और न ही वह विषम स्थिति में विचलित होता है और न ही किसी प्रकार के मान-सम्मान की चाहना रखता है | इसीलिए शंकराचार्यजी का यह शिष्य कह रहा है कि अगर अपने भीतर बैठे विष्णु को प्राप्त करना चाहते हो तो सर्वत्र समान चित्त वाले हो जाओ |
त्वयि मयि चान्यत्रैको विष्णु:, व्यर्थ कुप्यसि सर्वसहिष्णु: |
भव समचित्तः सर्वत्र त्वं, वाछंसिअचिराद्यदि विष्णुत्वम् ||24||
अर्थात तुममें, मुझमें और अन्यत्र सब जगह एक विष्णु ही है | तुम व्यर्थ ही क्रोध करते हो | यदि तुम शाश्वत विष्णु-पद को प्राप्त करना चाहते हो तो सर्वत्र समान चित्त वाले हो जाओ |
“|| भज गोविन्दं भज गोविन्दं गोविन्दं भज मूढमते ||”
कल श्लोक सं.-25
प्रस्तुति – डॉ. प्रकाश काछवाल

|| हरिः शरणम् ||

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