Saturday, November 25, 2017

भज गोविन्दम् – श्लोक सं.26(कल से आगे-3)-

भज गोविन्दम् – श्लोक सं.26(कल से आगे-3)-
              श्रीमद्भगवद्गीता के तीसरे अध्याय के इस 41 वें श्लोक में भगवान श्री कृष्ण को तो कह दिया कि सर्वप्रथम तू इस पापी काम को मार डाल परन्तु इस काम को मार डालना क्या इतना आसान है ? आसान नहीं है, भला दूसरों से सुख प्राप्त करने की कामना का कोई क्यों कर त्याग करना चाहेगा ? यह काम ही सभी झंझटों के मूल कारण है, यह हम सभी जानते हैं; फिर भी हमारे में से कोई एक व्यक्ति भी इस पापी काम को मार डालना नहीं चाहता | भगवान कहते हैं कि काम ज्ञान-विज्ञान को नष्ट कर देता है | ज्ञान अपने होने का और विज्ञान इस अपने होने को अनुभव करने का | काम इस बुद्धि पर इतना अधिक प्रभावी हो जाता है कि हमसे अपने भले-बुरे का विचार तक करना भी नहीं हो पाता | काम वे कर्म हैं जो हम दूसरे से सुख पाने की कामना मन में पाले हुए करते हैं जबकि ध्यान है स्वयं के भीतर जाकर सुख को खोजना | काम में आसक्ति भाव लिए हुए कर्म करना हैं जबकि ध्यान में आसक्ति का पूर्णतया अभाव है | यही बात सुख-दुःख और आनंद में अंतर को स्पष्ट करती है |
            सिकंदर जब विश्व-विजय की ओर अग्रसर था तब वह एशिया को जीतने के लिए अपने देश से निकल रहा था तब वह मिलने के लिए अपने गुरु के पास गया | उसके गुरु उस समय समुद्र के किनारे मिट्टी पर लेटे हुए विश्राम कर रहे थे | जब वह गुरु से आशीर्वाद ले रहा था तब गुरु ने उससे उसका उद्देश्य पूछा | सिकंदर ने बताया कि वह पहले एशिया के छोटे-छोटे देशों को जीतेगा फिर भारत को जीतेगा | इस प्रकार वह कुछ ही वर्षों में विश्व विजेता बन जायेगा | विश्व विजेता बनकर जब वह वापिस स्वदेश लौटेगा तब वह सभी कार्यों से विश्राम ले लेगा और अपने गुरु के पास रहकर आनंद सहित शेष जीवन बिताएगा | उसके गुरु ने बड़े ही शांत भाव से उसे समझाया कि जब इतना सब कुछ करके ही विश्राम पाना है तो फिर क्यों न अभी इसी समय विश्राम को पा लिया जाये | विश्राम तो इस समय और यहाँ इस समुद्र के किनारे तत्काल ही उपलब्ध है | परन्तु सिकंदर ने अपने गुरु की बात को अनसुना कर दिया | क्या कारण था कि सिकंदर ने अपने गुरु की बात भी नहीं मानी ?
क्रमशः
प्रस्तुति - डॉ. प्रकाश काछवाल

|| हरिः शरणम् ||

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