Friday, November 17, 2017

भज गोविन्दम् - श्लोक सं.-23

भज गोविन्दम् – श्लोक सं.-23-
कस्त्वंकोSहं कुत आयातः, का में जननी को में तातः |
इति परिभावय सर्वमसारम् विश्वं त्यक्त्वा स्वप्न विचारम् ||23||
अर्थात तुम कौन हो, मैं कौन हूँ, हम कहाँ से आये हैं, मेरी मां कौन है, मेरा पिता कौन है ? सब प्रकार से समझकर इस संसार को असार समझकर एक स्वप्न के समान त्याग दो |
        शंकराचार्यजी महाराज के द्वारा जो बात 8 वें श्लोक में कही गयी है, उन्हीं का एक शिष्य उसी बात को पुनः दोहराता है | हम कौन हैं और कहाँ से आये हैं ? इस भौतिक शरीर को उत्पन्न करने वाले माता-पिता ही क्या हमारे वास्तविक माता पिता हैं ? इस बात पर कभी विचार करते भी तो नहीं हैं | जब विचार करेंगे तो पाएंगे कि हमारे शरीर का, हमारे माता-पिता आदि सम्बन्धियों का अस्तित्व भी एक स्वप्न से अधिक नहीं है | हम प्रत्येक रात्रि को सपने देखते हैं | क्या उस सपने में देखे हुए घटनाक्रम पर विचार कर हम सुखी-दुःखी होते हैं ? नहीं, हमारे ऊपर ऐसे देखे गए सपनों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है | फिर इस परिवर्तनशील संसार की विभिन्न घटनाओं का प्रभाव हमारे ऊपर क्यों पड़ता है ?
                इसका एक ही मुख्य कारण है, हम संसार में सदैव आसक्त रहते हैं परन्तु सपनों में नहीं | जिस दिन हम संसार को भी सपने जितना ही महत्त्व देने लगेंगे अर्थात संसार में भी सपने की तरह आसक्ति नहीं होगी, तत्काल ही हम मुक्त हो जायेंगे | हम संसार से प्रभावित उसमें अपनी आसक्ति के कारण होते है अन्यथा हमें संसार की कोई ताकत प्रभावित नहीं कर सकती | हम शरीर नहीं, बल्कि आत्मा है और एक परमात्मा ही हमारे माता-पिता हैं ऐसा मान लेना ही सत्य को स्वीकार कर लेना है | हम कौन हैं ? हम कहाँ से आये हैं ? हमारा इस संसार में क्या है ? ऐसी बातों पर चिंता कर के हमें अपना समय व्यर्थ नहीं करना चाहिए | यह संसार एक स्वप्न की तरह ही झूठा और क्षण भंगुर है | यह शिष्य शंकराचार्यजी महाराज की इसी बात को पुनः याद दिला रहा है कि-
कस्त्वंकोSहं कुत आयातः, का में जननी को में तातः |
इति परिभावय सर्वमसारम् विश्वं त्यक्त्वा स्वप्न विचारम् ||23||
अर्थात तुम कौन हो, मैं कौन हूँ, हम कहाँ से आये हैं, मेरी मां कौन है, मेरा पिता कौन है ? सब प्रकार से समझकर इस संसार को असार समझकर एक स्वप्न के समान त्याग दो |
“|| भज गोविन्दं भज गोविन्दं गोविन्दं भज मूढमते ||”
कल श्लोक सं.-24
प्रस्तुति – डॉ. प्रकाश काछवाल

|| हरिः शरणम् ||

No comments:

Post a Comment