नवधा
भक्ति – प्रस्तावना -
भक्ति
के बारे में हम विस्तृत रूप से विवेचन पूर्व में कर चुके हैं | नवधा भक्ति वैसे
भक्ति से अलग हटकर कोई विषय नहीं है बल्कि भक्ति को विस्तृत रूप से समझने के लिए विभिन्न
शास्त्रों में भक्ति के ही नौ प्रकार बताए गए है | वैसे भक्ति को नौ विभागों में बांटा नहीं गया है बल्कि भक्ति की विभिन्न नौ
अवस्थाओं को बताया गया है | भक्ति तो केवल एक ही प्रकार की होती है और वह
है-परमात्मा से प्रेम | जिस प्रथम द्वार से भक्ति में प्रवेश किया जाता है और अंत में नौवें द्वार तक पहुंचा जाता है उन
नौ द्वारों को ही नवधा भक्ति नाम से कहा जाता है | जिस प्रकार एक विशाल कपड़े को कई
परतों में समेटा जाता है और पुनः खोलने के लिए उन परतों को एक एक कर खोला जाता है
तभी उस कपड़े की भीतरी और मुख्य सतह तक पहुंचा जा सकता है उसी प्रकार भक्ति की
विशालता को इसी प्रकार नौ परतों में समेटा गया है | अगर अंग्रेजी भाषा में कहें तो
हम कह सकते हैं कि ‘Navdha bhakti is the nine folds of the Devotion’| अतः यह
स्पष्ट है कि नवधा भक्ति कोई अलग अलग नौ प्रकार की भक्ति नहीं है बल्कि भक्ति के विभिन्न
रूप हैं, चरण है - प्रथम चरण से लेकर नौ चरण तक | सभी भक्ति के चरणों को सामूहिक
रूप से नवधा भक्ति कहा जाता है |
नवधा
भक्ति के बारे में हमारे सनातन धर्म के लगभग प्रत्येक ग्रन्थ में किसी न किसी रूप
में वर्णन किया गया है | वर्तमान काल में इनमें से तीन शास्त्र मुख्य रूप से पढ़े
जाते हैं | हमारे ये शास्त्र हैं- श्री मद्भागवत महापुराण, श्री मद्भागवत गीता और
गोस्वामी तुलसीदास कृत श्री रामचरित मानस | इनमें सरलतम रूप से श्री रामचरितमानस
में नवधा भक्ति का वर्णन किया गया है |
सर्वप्रथम इन ग्रंथों में वर्णित एक एक ग्रन्थ से नवधा भक्ति का वर्णन
प्रस्तुत कर रहा हूँ, जिससे इसे समझने में आसानी रहेगी |
क्रमशः
|| हरिः शरणम् ||