Friday, February 14, 2014

प्रेम और आसक्ति |

                                     प्रेम और प्रेमासक्ति ,दो शब्द मात्र ही नहीं है | दोनों समानार्थी भी नहीं है | दोनों में बड़ा ही गुणात्मक अंतर है |प्रायः लोग दोनों में अंतर नहीं कर पाते है अतः वे आसक्ति और प्रेम को एक ही समझने की भूल कर बैठते हैं |आसक्ति और दीवानगी(Infatuation) समानार्थी हैं | किसी के मोह में इतना हद तक उलझ जाना एक प्रकार की दीवानगी उत्पन्न करता है ,जबकि प्रेम में दीवानगी का कोई स्थान नहीं है |प्रेम आपके भीत्तर आत्मा और ह्रदय से उठता हुआ एक अहसास है जबकि आसक्ति या दीवानगी आपके शरीर में उत्पन्न होने वाले हार्मोन्स के कारण पैदा होती है |जैसे आप किसी को अचानक देखते है और उसकी तरफ आपका एक आकर्षण सा पैदा होता है ,वह शरीर की स्वाभाविक प्रतिक्रिया मात्र होता है जो आपके शरीर में बन रहे हार्मोन्स के कारण होता है |जबकि आपका उस व्यक्ति के साथ कोई सम्बन्ध होता भी नहीं है और न ही आप उसको अच्छी तरह से जानते हो |ऐसा प्रायः विपरीत लिंग के व्यक्ति से संपर्क में आने से होता है |
                                 प्रेम में उस व्यक्ति की भावनाओं ,उसकी अभिलाषाओं और सपनों को अच्छी तरह समझ कर उससे व्यक्तिगत संपर्क बनाया जाता है |प्रेम में सम्बन्ध सदैव के लिए होता है जबकि आसक्ति कुछ समय बाद कमजोर पड़ने लगती  है और एक समय बाद अदृश्य हो जाती है | यह निर्भर करता है की उस व्यक्ति ने आपकी आवश्यकता कितनी पूरी की |जब आपकी अपेक्षाए पूरी हो जाती है तब आपका तथाकथित प्रेम भी पानी की तरह वाष्प बनकर काफूर हो जाता है |जबकि प्रेम में अगर बलिदान भी देना पड़े तो प्रेम और ज्यादा गहराई प्राप्त करता है | ऐसा प्रेम समय के साथ बढ़ता जाता है |
                                 आजकल युवा लोग प्रेम और आसक्ति में अंतर नहीं कर पा रहे हैं |अपनी युवावस्था में शारीरिक आकर्षण के वशीभूत होकर वे इसे ही प्रेम मानकर शादी के बंधन तक में बन्ध जाते है | परन्तु शीघ्र ही उन्हें अहसास हो जाता है कि उनका यह निर्णय ही गलत था |इसी कारण आजकल प्रेम-विवाह के बाद भी तलाक की संख्या निरंतर ही बढती जा रही है |आसक्ति सिर्फ और सिर्फ अपनी उन्नति और संतुष्टि चाहती है जबकि प्रेम अपने साथी की उन्नति और संतुष्टि चाहता है |यही प्रेम और आसक्ति में मूलभूत अंतर है |अगर दो युवा प्रेमवश शादी करते हैं तो उनका प्रेम समय के साथ और आगे बढ़ेगा और उच्च अवस्था को प्राप्त होगा |आसक्तिवश किये गए प्रेम के परिणाम तो दुखद ही होंगे जिनकी परिणिति तलाक के रूप में सामने आएगी |
                             आसक्तियुक्त प्रेम  केवल भौतिक आवश्यकता पूरी करने में विश्वास रखता है और यह आवश्यकता पूरी होते ही न जाने कहाँ विलीन हो जाता है |जबकि वास्तविक प्रेम में भौतिक आवश्यकता पूरी हो या न हो ,कोई फर्क नहीं पड़ता है |आसक्ति केवल भौतिकतावादी है जबकि विशुद्ध प्रेम आध्यात्मिकतावादी |
                               ज्यों ज्यों आप परिपक्व होते हैं ,उम्र के अनुसार प्रगति करते हैं त्यों त्यों आप आसक्ति को  पीछे छोडते जाते है यानि आपकी आसक्ति कम होती जाती है | क्योंकि यह सब शरीर में पैदा होने वाले हार्मोन्स के कारण होता है और इन हार्मोन्स का स्राव ढलती उम्र के साथ कम होता जाता है | परन्तु प्रेम में ऐसा नहीं होता है |प्रेम करने की क्षमता कभी भी चुकती नहीं है , चाहे आपकी उम्र कितनी ही हो जाये |
                              आज समस्या यह है कि प्रेम और आसक्ति में अंतर कोई भी नहीं कर पा रहा है , युवा समुदाय तो बिलकुल भी नहीं |आज कथित प्रेम-दिवस पर वह हाथ में गुलाब लेकर अपने ही तरह के किसी आसक्त की तलाश कर रहा है | वह यह नहीं जानता कि प्रेम, समय,स्थान और व्यक्ति विशेष से बहुत परे है |
                                                   || हरिः शरणम् ||

2 comments:

  1. पूर्णतया उत्तम, परम सत्य,वास्तविक अनुभव हुआ है।

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