संसार में हम जितने भी कार्य करते हैं ,प्रायः कार्य किसी न किसी भय के वशीभूत होकर ही करते हैं |"लोग क्या कहेंगे ?" ऐसा हम सभी अपने जीवन में सदैव ही सोचते और कहते रहते हैं |यह "लोग क्या कहेंगे ?"ही सबसे बड़ा भय है ,जो व्यक्ति को सबसे ज्यादा भ्रमित करता है |इस भय के कारण ही कोई भी इंसान अपने स्वभावानुसार जी नहीं पा रहा है |मैं जानता हूँ कि आप में से कई व्यक्ति मेरी इस बात से कतई सहमत नहीं होंगे |लेकिन यह कटु सत्य है |हम में से ज्यादातर लोग दूसरों के हिसाब से ही अपना जीवन जी रहे हैं,बहुत ही कम लोग ऐसे मिलेंगे जो अपना जीवन अपने अनुसार ही जी रहे हैं|कहेंगे सभी कि हम स्वयं के स्वभावानुसार जी रहे है ,लेकिन जरा दिल पर हाथ रखकर दो मिनट के लिए सोचिये कि क्या आप सही कह रहे हैं ?
अगर आप सही कह रहे हैं तो मैं आपसे सिर्फ यही पूछना चाहता हूँ कि आपको सबसे ज्यादा गुस्सा अपने आप ही आता है या कोई दिलाता है ?आपका जवाब मैं जानता हूँ कि क्या होगा?आप कहेंगे कि किसी की अनुचित बात पर मुझे गुस्सा आता है |अब आपही सोचिये कि जब गुस्से पर नियंत्रण भी किसी दूसरे का है तो ऐसे में आपके जीवन का नियंत्रण भी तो किसी और के हाथ में हो सकता है |आप बाहर जाने से पहले अपने आप को क्यों सजाते संवारते हैं ?इसलिए न कि आप लोगों को यही दिखाना चाहते है कि आपका जीवन कितना सुव्यवस्थित है | अगर आपका जीवन इतना ही सुव्यवस्थित है तो फिर किसी को सुव्यवस्थित दिखाने की आवश्यकता भी क्या है ?आवश्यकता है,क्योंकि आपका जीवन सुव्यवस्थित नहीं है,इस लिए आप अपने को सुव्यवस्थित दिखाने का भ्रम पैदा करते हैं |और यहीं से आपकी मानसिक अवस्था बदलना शुरू हो जाती है |आप धीरे धीरे इस डर से कि कोई क्या सोचेगा ,अपने आपको वास्तविकता से परे करते जाते है और यह दूसरों का कथित भय आपको भ्रम-जाल में उलझाता चला जाता है |
आपने एक बात अपने संज्ञान में ली होगी कि जब आप कभी अकेले किसी एक अँधेरी रात में निर्जन क्षेत्र से गुजर रहे होते हैं तब अचानक ही आपके गले से कुछ स्वर निकलने प्रारम्भ हो जाते है,चाहे वह किसी गाने के बोल हो,भजन हो या सीटीकी आवाज़ हो |कभी आपने इस पर गौर किया है कि ऐसा क्यों होता है ?ऐसा इसलिए होता है,जिससे कि आपको उन स्वरों को सुनकर अकेले होने का अहसास न हो | आप अपने आप ही ऐसा भ्रम पाल लेते हैं जैसे इस रास्ते पर आपके अलावा कोई अन्य भी है | ऐसा भ्रम आप इसलिए पैदा कर लेते हैं ,जिससे आपको भय न लगे |भय और भ्रम का आपस में चोली दामन का साथ है |जहाँ भय है वहाँ भ्रम भी है | जिस दिन आपके मन से सारा भय दूर हो जायेगा ,भ्रम अपने आप ही तिरोहित हो जायेगा |
भ्रम से बाहर निकलने का सबसे आसान और एकमात्र तरीका यही है कि आप भयमुक्त हो जाएँ |भयवश भगवान की उपासना,पूजा भी एक भ्रम पालने से अधिक कुछ भी नहीं है | जहाँ भय है वहाँ प्रेम का पदार्पण कभी भी नहीं हो सकता |जहाँ प्रेम नहीं वहाँ परमात्मा भी नहीं |
||हरिः शरणम् ||
अगर आप सही कह रहे हैं तो मैं आपसे सिर्फ यही पूछना चाहता हूँ कि आपको सबसे ज्यादा गुस्सा अपने आप ही आता है या कोई दिलाता है ?आपका जवाब मैं जानता हूँ कि क्या होगा?आप कहेंगे कि किसी की अनुचित बात पर मुझे गुस्सा आता है |अब आपही सोचिये कि जब गुस्से पर नियंत्रण भी किसी दूसरे का है तो ऐसे में आपके जीवन का नियंत्रण भी तो किसी और के हाथ में हो सकता है |आप बाहर जाने से पहले अपने आप को क्यों सजाते संवारते हैं ?इसलिए न कि आप लोगों को यही दिखाना चाहते है कि आपका जीवन कितना सुव्यवस्थित है | अगर आपका जीवन इतना ही सुव्यवस्थित है तो फिर किसी को सुव्यवस्थित दिखाने की आवश्यकता भी क्या है ?आवश्यकता है,क्योंकि आपका जीवन सुव्यवस्थित नहीं है,इस लिए आप अपने को सुव्यवस्थित दिखाने का भ्रम पैदा करते हैं |और यहीं से आपकी मानसिक अवस्था बदलना शुरू हो जाती है |आप धीरे धीरे इस डर से कि कोई क्या सोचेगा ,अपने आपको वास्तविकता से परे करते जाते है और यह दूसरों का कथित भय आपको भ्रम-जाल में उलझाता चला जाता है |
आपने एक बात अपने संज्ञान में ली होगी कि जब आप कभी अकेले किसी एक अँधेरी रात में निर्जन क्षेत्र से गुजर रहे होते हैं तब अचानक ही आपके गले से कुछ स्वर निकलने प्रारम्भ हो जाते है,चाहे वह किसी गाने के बोल हो,भजन हो या सीटीकी आवाज़ हो |कभी आपने इस पर गौर किया है कि ऐसा क्यों होता है ?ऐसा इसलिए होता है,जिससे कि आपको उन स्वरों को सुनकर अकेले होने का अहसास न हो | आप अपने आप ही ऐसा भ्रम पाल लेते हैं जैसे इस रास्ते पर आपके अलावा कोई अन्य भी है | ऐसा भ्रम आप इसलिए पैदा कर लेते हैं ,जिससे आपको भय न लगे |भय और भ्रम का आपस में चोली दामन का साथ है |जहाँ भय है वहाँ भ्रम भी है | जिस दिन आपके मन से सारा भय दूर हो जायेगा ,भ्रम अपने आप ही तिरोहित हो जायेगा |
भ्रम से बाहर निकलने का सबसे आसान और एकमात्र तरीका यही है कि आप भयमुक्त हो जाएँ |भयवश भगवान की उपासना,पूजा भी एक भ्रम पालने से अधिक कुछ भी नहीं है | जहाँ भय है वहाँ प्रेम का पदार्पण कभी भी नहीं हो सकता |जहाँ प्रेम नहीं वहाँ परमात्मा भी नहीं |
||हरिः शरणम् ||
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