आज इस संसार में जहाँ भी दृष्टि डालो ,धर्मगुरु ही धर्मगुरु नज़र आते हैं |वे केवल मात्र अपना कुनबा बढ़ाने का प्रयास ही कर रहे है |जबकि समाज और व्यक्ति के कल्याण का प्रयास करना उनकी जिम्मेदारी है |आज की इस भागदौड की जिंदगी से परेशान व्यक्ति शांति की तलाश में इन गुरुओं के पास भटकते रहते है |वे शांति दे पाते हैं या नहीं ,इसकी जानकारी तो आपको उन लोगों से ही प्राप्त हो सकती है ,जो इनके शिष्य बने हुए हैं |आये दिन समाचार पत्रों में इन धर्मगुरुओं की ख़बरें पढकर मन जरूर व्यथित हो जाता है कि सारे संसार का धर्मगुरु कहलाने वाले भारत देश में ऐसे कैसे धर्मगुरु बने लोग फिर रहे है ?
संसार से वियोग कर परमात्मा के साथ योग करना ही वास्तविक आध्यात्मिकता है |परन्तु आज तो धर्मगुरु शिष्यों से स्वयं के साथ योग करने का कहते हैं |ऐसे शिष्य कैसे परमात्मा के साथ योग कर पाएंगे ,यह तो वे तथाकथित धर्मगुरु ही बता सकते हैं |शायद कबीर को ऐसे धर्मगुरुओं के बारे में बहुत पहले ही आभास हो गया था |तभी उन्होंने लिखा है कि -
जो गुरु ते भ्रम न मिटे,भ्रान्ति न जिसका जाय |
सो गुरु झूठा जानिए, त्यागत देर न लाय ||
व्यक्ति अपनी जिंदगी में कई परेशानियां पाल लेता है |जब वह इन परेशानियों से तंग आ जाता है तब वह ऐसे व्यक्ति की तलाश करता है जो उसे इन सभी परेशानियों से मुक्ति दिला सके |व्यक्ति की इस मानसिकता का फायदा उठाते हुए ये तथाकथित धर्मगुरु उसे अपना शिष्य बना लेते हैं |परन्तु उसकी परेशानियों का हल ऐसे गुरु भी नहीं सुझा पाते | वह व्यक्ति एक से दूसरे ,फिर तीसरे गुरु के पास जाता है और इस प्रकार यह एक अंतहीन सिलसिला बन जाता है |कबीर कहते हैं कि जो गुरु आपका भ्रम मिटा न सके ,आपके मन की भ्रान्ति दूर न कर सके ,वह फिर गुरु न होकर कोई गुरु का स्वांग धारण किये हुए झूठा व्यक्ति है |आपको ऐसे व्यक्ति को तुरंत ही त्याग देना चाहिए |आपकी समस्त परेशानियां आपकी भ्रान्ति के कारण है,भ्रम के कारण है |वे सब आपकी कमियां ही है ,जो परेशानियां बनकर आपके जीवन को बर्बाद कर रही है |सच्चा गुरु आपकी कमियों को दूर करता है न कि केवल अपना कुनबा बढाता है |आदर्श गुरु की पहचान के बारे में कबीर कहते हैं-
गुरु कुम्हार शिष्य कुम्भ है,गढ़ गढ़ काढे खोट |
अंतर हाथ सहार दे, बाहर बाहे चोट ||
जैसे एक कुम्हार जब घड़ा बनाता है तो वह घड़े के भीतर एक हाथ से सहारा रखता है और बाहर से दूसरे हाथ से चोट मारकर उसकी कमियां निकालकर उस घड़े को मजबूती प्रदान करता है |जिससे वह घड़ा भविष्य में पड़ने वाली समस्त चोटों को सहन कर सके |कबीर यही बताते हैं कि गुरु कुम्हार की तरह होना चाहिए |वह शिष्य को भीतर से तो सहारा दिए रखे और बाहर से उसकी समस्त कमियां दूर करे जिससे वह भविष्य में पैदा हो सकने वाली परेशानियों का सामना मजबूती के साथ कर सके | ऐसा व्यक्ति ही वास्तविक गुरु हो सकता है |
|| हरिः शरणम् ||
संसार से वियोग कर परमात्मा के साथ योग करना ही वास्तविक आध्यात्मिकता है |परन्तु आज तो धर्मगुरु शिष्यों से स्वयं के साथ योग करने का कहते हैं |ऐसे शिष्य कैसे परमात्मा के साथ योग कर पाएंगे ,यह तो वे तथाकथित धर्मगुरु ही बता सकते हैं |शायद कबीर को ऐसे धर्मगुरुओं के बारे में बहुत पहले ही आभास हो गया था |तभी उन्होंने लिखा है कि -
जो गुरु ते भ्रम न मिटे,भ्रान्ति न जिसका जाय |
सो गुरु झूठा जानिए, त्यागत देर न लाय ||
व्यक्ति अपनी जिंदगी में कई परेशानियां पाल लेता है |जब वह इन परेशानियों से तंग आ जाता है तब वह ऐसे व्यक्ति की तलाश करता है जो उसे इन सभी परेशानियों से मुक्ति दिला सके |व्यक्ति की इस मानसिकता का फायदा उठाते हुए ये तथाकथित धर्मगुरु उसे अपना शिष्य बना लेते हैं |परन्तु उसकी परेशानियों का हल ऐसे गुरु भी नहीं सुझा पाते | वह व्यक्ति एक से दूसरे ,फिर तीसरे गुरु के पास जाता है और इस प्रकार यह एक अंतहीन सिलसिला बन जाता है |कबीर कहते हैं कि जो गुरु आपका भ्रम मिटा न सके ,आपके मन की भ्रान्ति दूर न कर सके ,वह फिर गुरु न होकर कोई गुरु का स्वांग धारण किये हुए झूठा व्यक्ति है |आपको ऐसे व्यक्ति को तुरंत ही त्याग देना चाहिए |आपकी समस्त परेशानियां आपकी भ्रान्ति के कारण है,भ्रम के कारण है |वे सब आपकी कमियां ही है ,जो परेशानियां बनकर आपके जीवन को बर्बाद कर रही है |सच्चा गुरु आपकी कमियों को दूर करता है न कि केवल अपना कुनबा बढाता है |आदर्श गुरु की पहचान के बारे में कबीर कहते हैं-
गुरु कुम्हार शिष्य कुम्भ है,गढ़ गढ़ काढे खोट |
अंतर हाथ सहार दे, बाहर बाहे चोट ||
जैसे एक कुम्हार जब घड़ा बनाता है तो वह घड़े के भीतर एक हाथ से सहारा रखता है और बाहर से दूसरे हाथ से चोट मारकर उसकी कमियां निकालकर उस घड़े को मजबूती प्रदान करता है |जिससे वह घड़ा भविष्य में पड़ने वाली समस्त चोटों को सहन कर सके |कबीर यही बताते हैं कि गुरु कुम्हार की तरह होना चाहिए |वह शिष्य को भीतर से तो सहारा दिए रखे और बाहर से उसकी समस्त कमियां दूर करे जिससे वह भविष्य में पैदा हो सकने वाली परेशानियों का सामना मजबूती के साथ कर सके | ऐसा व्यक्ति ही वास्तविक गुरु हो सकता है |
|| हरिः शरणम् ||
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