आप अपना वास्तविक जीवन केवल इसी लिए नहीं जी पा रहे हैं क्योंकि आपको दूसरों की देखा देखी जीना ही उचित लगता है |लेकिन ऐसा जीवन क्या आपको जीने की संतुष्टि दे सकता है ?नहीं,कदापि नहीं| ऐसा जीना आपको जीने का भ्रम ही देता है ,संतुष्टि नहीं |ऐसे जीवन से आप संतुष्ट हो ही नहीं सकते क्योंकि ऐसा जीवन आप दूसरों के अनुसार जी रहे है.स्वयं के अनुसार नहीं |जब तक मनुष्य स्वयं के अनुसार कुछ नहीं कर लेता तब तक उसे संतुष्टि मिल ही नहीं सकती |स्वयं के संतुष्ट हो जाने को ही आत्मसंतुष्टि कहा जाता है |आत्म संतुष्टि तभी मिल पायेगी जब आप इस भ्रम-जाल से मुक्ति पा लेंगे |इस भ्रम-जाल को निर्मित करने में भय की मुख्य भूमिका होती है अतः सबसे पहले भय की वास्तविकता जाननी होगी |भय को जाने बिना हम भ्रम से बाहर नहीं निकल सकते |
भय को कई तरीकों से वर्णित किया जा सकता है -जैसे संसार का भय ,किसी इंसान या जानवर का भय,परिवार से बिछडने का भय,मरने का भय,इज्जत का भय,किसी काम के गलत हो जाने का भय आदि | सभी प्रकार के भय केवल मात्र एक ही कारण के अंतर्गत आ जाते है |वह है "कुछ या सब कुछ खो जाने" का भय |यही भय की वास्तविकता है |जब तक मानव मन से यह खो जाने का भय नहीं निकल जायेगा तब तक उसका अपने ही स्वभाव से जीना नहीं हो पायेगा | जिस दिन व्यक्ति सब कुछ खो जाने को तैयार हो जाता है, उस दिन से वह भय-मुक्त हो जाता है |फिर उसे न तो मरने का भय रहता है और न ही किसी प्रकार की झूठी इज्जत का |वह संसार में प्रत्येक भय से मुक्त हो जायेगा और यह भय से मुक्ति उसे भ्रम से भी मुक्ति दिला देगी |
जब मानव इस संसार में जन्म लेता है तब उसका भविष्य पहले से ही तय होता है | उसके इस जीवन में क्या होना है,क्या करना है और कब तक और कैसे जीना है ,सब कुछ पहले से ही निर्धारित किया जा चूका होता है |इसलिए मानव को अपने इस जीवन में ऐसा कुछ भी नहीं सोचना चाहिए जो एक प्रकार का भय पैदा करे | भय मुक्त जीवन ही उन्मुक्त जीवन है |ऐसे उन्मुक्त जीवन में भ्रम का कोई स्थान नहीं है |
|| हरिः शरणम् ||
भय को कई तरीकों से वर्णित किया जा सकता है -जैसे संसार का भय ,किसी इंसान या जानवर का भय,परिवार से बिछडने का भय,मरने का भय,इज्जत का भय,किसी काम के गलत हो जाने का भय आदि | सभी प्रकार के भय केवल मात्र एक ही कारण के अंतर्गत आ जाते है |वह है "कुछ या सब कुछ खो जाने" का भय |यही भय की वास्तविकता है |जब तक मानव मन से यह खो जाने का भय नहीं निकल जायेगा तब तक उसका अपने ही स्वभाव से जीना नहीं हो पायेगा | जिस दिन व्यक्ति सब कुछ खो जाने को तैयार हो जाता है, उस दिन से वह भय-मुक्त हो जाता है |फिर उसे न तो मरने का भय रहता है और न ही किसी प्रकार की झूठी इज्जत का |वह संसार में प्रत्येक भय से मुक्त हो जायेगा और यह भय से मुक्ति उसे भ्रम से भी मुक्ति दिला देगी |
जब मानव इस संसार में जन्म लेता है तब उसका भविष्य पहले से ही तय होता है | उसके इस जीवन में क्या होना है,क्या करना है और कब तक और कैसे जीना है ,सब कुछ पहले से ही निर्धारित किया जा चूका होता है |इसलिए मानव को अपने इस जीवन में ऐसा कुछ भी नहीं सोचना चाहिए जो एक प्रकार का भय पैदा करे | भय मुक्त जीवन ही उन्मुक्त जीवन है |ऐसे उन्मुक्त जीवन में भ्रम का कोई स्थान नहीं है |
|| हरिः शरणम् ||
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