Thursday, February 20, 2014

भ्रम का पदार्पण |

                                            जब शिशु पैदा होता है तब वह ब्रह्मस्वरूप ही होता है |कहा जाता है न कि बच्चे भगवान का ही रूप होते हैं |एकदम निश्छल ,समता से परिपूर्ण ,चेहरे पर मधुर मुस्कान ,संसार की प्रत्येक चिंता-फ़िक्र से दूर और निर्मल मन |शिशु कभी भी भ्रम में नहीं जीता है |वास्तविकता के सबसे करीब होता है,बिलकुल सत्य के पास |बेवजह का रोना उसको पसंद नहीं होता |कोई परेशानी होगी या भूखा होगा तभी आपको उसका रोना दिखाई देगा |शेष समय में अपनी मस्ती में ही मस्त |
                                       फिर उसमे बड़े होने पर ऐसा क्या परिवर्तन आ जाता है कि वह वास्तविकता से दूर होता जाता है ,सत्य से विपरीत आचरण करने लगता है ?इसको जाने बिना हम न तो भ्रम को पहचान पाएंगे और न ही सत्य को जान पाएंगे |कहते हैं न कि बच्चे की पहली पाठशाला उसका घर होता है और पहली शिक्षिका उसकी माँ |अगर बचपन में ही उसे सही शिक्षा और दिशा मिले तो बच्चे का भ्रमित होना असंभव होता है |परन्तु यह इंसान इतना स्वार्थी होता है कि वह बच्चे को तो सत्य की राह पर चलने की शिक्षा देता है और उसके सामने ही वह असत्य का आचरण करता है |इससे सम्बंधित एक जोक याद आ रहा है |
                                     एक बार किसी व्यक्ति ने अपने मित्र से कुछ धनराशि उधार ले रखी थी |उसने वह राशि वापिस करने के लिए उसे अपने घर पर बुलाया था |दुर्भाग्यवश वह उक्त राशि का इंतजाम नहीं कर पाया था |तभी वह मित्र अपनी धनराशि लेने आ पहुंचा |उसने उसको दरवाजे पर आकर आवाज़ दी |उस व्यक्ति ने अपने चार साल के बच्चे को कहा कि जाकर उससे कह दे कि पापा घर पर नहीं है | वह बच्चा दरवाज़े पर खड़े व्यक्ति से जाकर कहता है कि अंकल, पापा कह रहे हैं कि वे घर पर नहीं है |  अब आप ही जरा सोचिये -क्या शिक्षा दे रहे हैं ऐसे व्यक्ति अपने बच्चे को |ऐसे ही शुरुआत होती है सत्य से असत्य की तरफ जाने की  यात्रा |मासूम बच्चे को भ्रमित करने का कार्य कौन कर रहा है ?देखने में,सुनने में यह आपको मात्र एक जोक लग सकता है |इसे सुनकर आप हंस सकते हैं |परन्तु यह जोक भी कुछ न कुछ सोचने को मजबूर अवश्य करता है | जब ऐसी ही कई बातें हम बच्चे के माध्यम से उपयोग में लेते हैं तो एक दिन यही बच्चा अपनी गलती को आपसे ही झूठ बोलकर छुपाने का दुस्साहस करेगा |
                              सत्य को नकार देना , उससे मुंह मोड लेना ही सबसे बड़ा भ्रम है | जब व्यक्ति को सत्य को कहने,सुनने से संसार दूर होता महसूस होता है तब उसे भ्रम पैदा होने लगता है कि यह सत्य, सत्य न होकर कोई अलग ही चीज है जो संसार को मुझसे अलग कर रही है |जब स्वयं से हटकर वह दूसरों के बारे में सोचने लगता है ,तभी सत्य से उसकी दूरी बढती जाती है |यह दूरी व्यक्ति के मन में सुखी होने का एक भ्रम पैदा करती है |ऐसे ही कई भ्रम पालकर वह भ्रम-जाल में फंसता चला जाता है |यह भ्रम-जाल ही उसे सत्य प्रतीत होने लगता है |सत्य कभी भी अचानक ही नहीं मरता है और न ही भ्रम एक दिन में पैदा हो जाता है |यह एक सतत चलते रहने वाली प्रक्रिया है |जिस दिन आप सत्य की तरफ लौटने लगोगे, भ्रम तत्काल ही दूर होता चला जायेगा |
                                    मानव जीवन की सबसे बड़ी विशेषता यही है कि सत्य उसे संसार से दूर कर देता है ,जबकि वह संसार से दूर होना नहीं चाहता |इसीलिए सत्य का भ्रम पालना उसकी मजबूरी बन जाता है |ध्यान रहे -भ्रम पालकर आप संसार में बने रह सकते है और सत्य पाकर परमात्मा को पा सकते हैं ,परन्तु दोनों को आप एकसाथ कभी भी नहीं पा सकते |तय आपको करना है कि आपके लिए सही व उचित क्या है-संसार या परमात्मा |भ्रम या सत्य |
                                                  || हरिः शरणम् ||

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