भ्रम ,जो सत्य से कोसों दूर है,भ्रम जो व्यक्ति को असत्य को सत्य होने का आभास देता है ,भ्रम जो सत्य को जानने की राह में सबसे बड़ी बाधा है ,संसार में ऐसे ही कई भ्रम अस्तित्व में है जो भ्रम का एक जाल सा निर्मित कर लेते हैं |वैसे भ्रम का कोई अस्तित्व नहीं है ,भ्रम पैदा होना भी एक भ्रम ही है |जैसे सपने का वास्तविकता से कोई नाता नहीं होता |आँख खुलते ही सपना अदृश्य हो जाता है |जागने पर आपको महसूस होता है कि यह सब स्वप्न मात्र था ,उसका सत्य से किसी भी प्रकार का कोई सम्बन्ध नहीं रहता |जबकि स्वप्नावस्था में सब कुछ वास्तविक ही नज़र आता है |जाग जाने के उपरांत भी अगर आप उसी स्वप्न में खोये रहते है,तो इसका एक ही अर्थ है के आप वास्तविकता से सामना करने से कतरा रहे हैं, सत्य से आप भयग्रस्त हैं | वास्तविकता से आपको डर लग रहा है |यह अपने आप के इर्द-गिर्द एक सपने का जाल बुनना जैसा ही होता है |जब यह भ्रम-जाल आपको अपनी जकड में ले लेता है ,फिर आप अपने आप को इससे मुक्त नहीं करा सकते |
रामचरितमानस में गोस्वामीजी लिखते हैं-
"उमा कहऊ मैं अनुभव अपना |सत हरि भजन जगत सब सपना ||"
शंकर भगवान अपनी धर्मपत्नि पार्वती को रामकथा सुनाते हुए यह कहते हैं " हे उमा ! यह संसार मात्र एक सपना है ,सत्य तो केवल ईश्वर का भजन करना है |यह मेरे स्वयं का अनुभव है | " शिव जैसे महेश्वर का जब यही मानना है,तो सत्य ही है |जब तक आप संसार को ही सत्य मानते रहोगे तब तक आप परमात्मा को प्राप्त नहीं कर पाओगे |संसार एक भ्रम मात्र है ,जो है नहीं परन्तु होने का आभास देता है |शाश्वत सत्य तो परमात्मा है -जो अव्यय है ,सदा एक जैसा है ,अपरिवर्तनीय है जबकि संसार तो परिवर्तनशील है |और जो पल पल बदल रहा है वह सत्य कैसे हो सकता है ?सत्य तो कभी भी नहीं बदलता है |यह आपका भ्रम ही है जो संसार को सत् होने का आभास देता है |आपको इस संसार से निकल कर अपने वास्तविक स्वरुप को प्राप्त करना होगा |इस भ्रम-जाल से बाहर निकलना होगा तभी आप सत्य के करीब होंगे |
भ्रम की सबसे बड़ी कमी यही है कि एक भ्रम दूसरा भ्रम ही पैदा करता है | इस प्रकार इंसान इससे बाहर निकल नहीं पाता और उलझ कर रह जाता है |आपके भीतर भ्रम न पले,इसका उपाय एक मात्र यही है कि सपनों में जीना छोड़ दे |जिस प्रकार मनुष्य जाग जाता है,तब वह देख रहे स्वप्न को भुला देता है | उसी प्रकार जाग जाएँ और मानलें कि जो भी आप देख रहें है सब सपना मात्र है |आप उस सपने के हिस्से जरूर हैं परन्तु सपना आपकी वास्तविकता नहीं है अर्थात सपने में आप जरूर हैं परन्तु आप स्वयं एक सपना नहीं है |आप सत्य हैं ,सपना नहीं |सपना तो भ्रम है |सपने देखना कहीं से भी गलत नहीं है परन्तु सपने को ही अपना जीवन ध्येय ही बना लेना अनुचित है | ऐसे ही कई सपने जिनको आप अपने जीवन में देखते हुए उन्ही को अपना सबकुछ मान बैठते हैं ,वह भ्रम-जाल है |सत्य तो इससे कहीं परे है |
|| हरिः शरणम् ||
रामचरितमानस में गोस्वामीजी लिखते हैं-
"उमा कहऊ मैं अनुभव अपना |सत हरि भजन जगत सब सपना ||"
शंकर भगवान अपनी धर्मपत्नि पार्वती को रामकथा सुनाते हुए यह कहते हैं " हे उमा ! यह संसार मात्र एक सपना है ,सत्य तो केवल ईश्वर का भजन करना है |यह मेरे स्वयं का अनुभव है | " शिव जैसे महेश्वर का जब यही मानना है,तो सत्य ही है |जब तक आप संसार को ही सत्य मानते रहोगे तब तक आप परमात्मा को प्राप्त नहीं कर पाओगे |संसार एक भ्रम मात्र है ,जो है नहीं परन्तु होने का आभास देता है |शाश्वत सत्य तो परमात्मा है -जो अव्यय है ,सदा एक जैसा है ,अपरिवर्तनीय है जबकि संसार तो परिवर्तनशील है |और जो पल पल बदल रहा है वह सत्य कैसे हो सकता है ?सत्य तो कभी भी नहीं बदलता है |यह आपका भ्रम ही है जो संसार को सत् होने का आभास देता है |आपको इस संसार से निकल कर अपने वास्तविक स्वरुप को प्राप्त करना होगा |इस भ्रम-जाल से बाहर निकलना होगा तभी आप सत्य के करीब होंगे |
भ्रम की सबसे बड़ी कमी यही है कि एक भ्रम दूसरा भ्रम ही पैदा करता है | इस प्रकार इंसान इससे बाहर निकल नहीं पाता और उलझ कर रह जाता है |आपके भीतर भ्रम न पले,इसका उपाय एक मात्र यही है कि सपनों में जीना छोड़ दे |जिस प्रकार मनुष्य जाग जाता है,तब वह देख रहे स्वप्न को भुला देता है | उसी प्रकार जाग जाएँ और मानलें कि जो भी आप देख रहें है सब सपना मात्र है |आप उस सपने के हिस्से जरूर हैं परन्तु सपना आपकी वास्तविकता नहीं है अर्थात सपने में आप जरूर हैं परन्तु आप स्वयं एक सपना नहीं है |आप सत्य हैं ,सपना नहीं |सपना तो भ्रम है |सपने देखना कहीं से भी गलत नहीं है परन्तु सपने को ही अपना जीवन ध्येय ही बना लेना अनुचित है | ऐसे ही कई सपने जिनको आप अपने जीवन में देखते हुए उन्ही को अपना सबकुछ मान बैठते हैं ,वह भ्रम-जाल है |सत्य तो इससे कहीं परे है |
|| हरिः शरणम् ||
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