इस संसार में जितने भी कवियों ने जन्म लिया है ,वे आध्यात्मिक व्यक्तित्व के धनी रहे हैं |वे परमात्मा में विश्वास रखते थे |परमात्मा के साथ उनका सम्बन्ध प्रेम का होता था |और आप जानते ही हैं कि प्रेम-संबंधों में नोंक-झोंक चलती रहती है |जो जिसको सबसे अधिक प्रेम करता है,उसको किसी कार्य के संपन्न न होने पर उलाहना भी देता है |परमात्मा से प्रेम करने वाला भी इस सिद्धांत से परे नहीं है|विशेष रूप से कवि ह्रदय तो उन्मुक्त भाव से अपने साध्य ,अपने प्रेमी परमात्मा को उलाहना देने में जरा भी नहीं चुकते है |तभी तो पता चलता है कि साध्य और साधक में कितना प्रेम है ?कवि बिहारी भी इससे अछूते नहीं है |वे भी अपने परमात्मा को उलाहना देते हुए कहते हैं -
कब को टेरत दीन है,होत न स्याम सहाय |
तुम हूँ लागी जगत गुरु,जगनायक जग बाय ||
बिहारी इस दोहे के माध्यम से प्रभु को उलाहना देते हुए कहते हैं -"कब को टेरत दीन हैं"अर्थात हे परमात्मा ,आपको यह दीन दुखी व्यक्ति कितने लंबे समय से पुकार रहा है |जब व्यक्ति मुसीबत में होता है तब वह ईश्वर को सबसे ज्यादा याद करता है |क्योंकि प्रत्येक मुसीबत मनुष्य के मन मे एक प्रकार का भय पैदा करती है |बिना परेशानी और मुसीबत के मनुष्य के मन में किसी भी प्रकार का भय पैदा होने का प्रश्न ही नहीं है |जब वह मुसीबत और परेशानी में होता है तब उसे एकमात्र ईश्वर का सहारा ही नज़र आता है |ऐसी अवस्था में वह ईश्वर को बिना रुके वह बार बार पुकारता चला जाता है |फिर भी हे ईश्वर तुम उसकी सहायता करने के लिए क्यों नहीं आते हो?-"होत न श्याम सहाय"|यह ईश्वर को कवि ह्रदय का स्पष्टतः उलाहना ही है |उलाहना देते हुए बिहारी ईश्वर को मनुष्य के बराबर होने का कटाक्ष करते हुए कहते हैं कि "तुम हूँ लागी जगत गुरु,जगनायक जग बाय ||"अर्थात हे संसार के गुरु,जगतगुरु,हे जगनायक क्या तुम्हे भी इस संसार की इस जग की हवा (बाय)लग गयी है जो तुम इस दीन की बिलकुल भी नहीं सुन रहे हो |इस संसार में कोई भी किसी की नहीं सुनता है |बिहारी यही बात अपने अन्दाज़ में परमात्मा को कहते हुए कहते हैं कि हे परमात्मा क्या तुम्हे भी इस संसार की हवा लग गई है जो तुम भी सांसारिक लोगों की तरह ही व्यवहार करने लग गए हो |
इतना मधुर उलाहना एक प्रेमी भक्त ही अपने परमात्मा को दे सकता है |इससे भी बढ़कर यह बात है कि ऐसे भक्त का उलाहना परमात्मा भी खुले मन से स्वीकार करते हैं |
|| हरिः शरणम् ||
कब को टेरत दीन है,होत न स्याम सहाय |
तुम हूँ लागी जगत गुरु,जगनायक जग बाय ||
बिहारी इस दोहे के माध्यम से प्रभु को उलाहना देते हुए कहते हैं -"कब को टेरत दीन हैं"अर्थात हे परमात्मा ,आपको यह दीन दुखी व्यक्ति कितने लंबे समय से पुकार रहा है |जब व्यक्ति मुसीबत में होता है तब वह ईश्वर को सबसे ज्यादा याद करता है |क्योंकि प्रत्येक मुसीबत मनुष्य के मन मे एक प्रकार का भय पैदा करती है |बिना परेशानी और मुसीबत के मनुष्य के मन में किसी भी प्रकार का भय पैदा होने का प्रश्न ही नहीं है |जब वह मुसीबत और परेशानी में होता है तब उसे एकमात्र ईश्वर का सहारा ही नज़र आता है |ऐसी अवस्था में वह ईश्वर को बिना रुके वह बार बार पुकारता चला जाता है |फिर भी हे ईश्वर तुम उसकी सहायता करने के लिए क्यों नहीं आते हो?-"होत न श्याम सहाय"|यह ईश्वर को कवि ह्रदय का स्पष्टतः उलाहना ही है |उलाहना देते हुए बिहारी ईश्वर को मनुष्य के बराबर होने का कटाक्ष करते हुए कहते हैं कि "तुम हूँ लागी जगत गुरु,जगनायक जग बाय ||"अर्थात हे संसार के गुरु,जगतगुरु,हे जगनायक क्या तुम्हे भी इस संसार की इस जग की हवा (बाय)लग गयी है जो तुम इस दीन की बिलकुल भी नहीं सुन रहे हो |इस संसार में कोई भी किसी की नहीं सुनता है |बिहारी यही बात अपने अन्दाज़ में परमात्मा को कहते हुए कहते हैं कि हे परमात्मा क्या तुम्हे भी इस संसार की हवा लग गई है जो तुम भी सांसारिक लोगों की तरह ही व्यवहार करने लग गए हो |
इतना मधुर उलाहना एक प्रेमी भक्त ही अपने परमात्मा को दे सकता है |इससे भी बढ़कर यह बात है कि ऐसे भक्त का उलाहना परमात्मा भी खुले मन से स्वीकार करते हैं |
|| हरिः शरणम् ||
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