महाभारत युद्ध के प्रारंभ होने से पहले जब अर्जुन ने अपने सारथी श्रीकृष्ण को कहा कि रथ को दोनों सेनाओं के मध्य में ले चलिए,मैं समग्रता के साथ देखना चाहता हूँ कि कौन कौन इस युद्ध मैदान में किस किस के सामने आ खड़े हुए हैं ? इस स्थिति में मात्र यही समझा जायेगा कि अर्जुन अपनी और अपने दुश्मन की सेनाओं का आकलन करेगा और उसी के अनुरूप ही अपनी युद्ध-नीति को निर्धारित करेगा |युद्ध-भूमि में आने तक अर्जुन के मन में किसी भी प्रकार की दुर्लबता नहीं थी | लेकिन जब उसने युद्ध-भूमि में अपने ही परिजनों को अपने दुश्मनों के रूप में देखा तब उसमे एक उनके प्रति प्रकार का मोह पैदा हुआ |आप जिससे मोह करने लगते हैं ,उसकी कुशलता को लेकर आप सदैव ही चिंतित रहते हैं | यह चिंता अपने परिजनों की मृत्यु को लेकर भय पैदा करती है और यह भय ही कायरता को जन्म देता है | मोह और भय दोनों मिलकर व्यक्ति को भ्रमित कर देते हैं |यह भ्रम फिर मनुष्य की सोचने और समझने की क्षमता को भी भ्रमित कर देता है |अर्जुन भी इसी प्रकार भ्रम-जाल में उलझ गया |वह भ्रमित होते हुए युद्ध के परिणाम को अलग ही सन्दर्भ में देखने लगा | तब भगवान श्रीकृष्ण ने उसके भ्रम को तोड़ने का निर्णय लिया |
गीता में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को इस अज्ञान के बारे में समझाते हुए कहते है-
अशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्च भाषस्य |
गतासूनगतासूंश्च नानुशोचन्ति पण्डिताः || गीता २/११||
अर्थात्,हे अर्जुन ! तू न शोक करने योग्य मनुष्यों के लिए शोक करता है और पंडितों के से वचनों को कहता है ;परन्तु जिनके प्राण चले गए हैं ,उनके लिए और जिनके प्राण नहीं गए हैं ,उनके लिए भी पंडितजन शोक नहीं करते हैं |
गीता का समस्त ज्ञान मनुष्य के भय और भ्रम को दूर करने के लिए ही है |मैंने पहले ही यह स्पष्ट किया था कि मृत्यु का भय मनुष्य को सबसे अधिक होता है ,चाहे वह मृत्यु स्वयं की हो,परिजनों की हो या अन्य किसी की |इस भय से दूर भागने के लिए वह भ्रम का सहारा लेता है |उस मृत्यु का भय दूर करने के लिए वह मृत्यु से बचने की कोशिश करता है |जिस कारण से ही वह दूसरे क्रिया-कलापों का सहारा लेता है,जैसे मनोरंजन करना ,सांसारिक कार्यों में उलझे हुए रहना,पुस्तके पढते हुए ज्ञानार्जन करना आदि | परन्तु वह इन सब के बाद भी मृत्यु के भय से मुक्त नहीं हो पाता है |श्रीकृष्ण यहाँ पर अर्जुन को यही समझा रहे हैं कि किसी की भी मृत्यु का शोक करना उचित नहीं है |जो मर चुके हैं उनके लिए शोक करने का कोई औचित्य नहीं है और जो जिन्दा है उनके लिए भी किसी प्रकार का दुःख न करे,क्योंकि उन्हें भी एक न एक दिन मरना ही है |इसलिए किसी के भी लिए शोक न कर,क्योंकि मनुष्य शोक करने के योग्य ही नहीं है |भगवान यहाँ यही कहना चाहते हैं कि जिसने यहाँ जन्म लिया है उसकी मृत्यु भी होना निश्चित है |अतः तू शोक न करने योग्य मनुष्यों के लिए शोक क्यों कर रहा है ?
एक गडरिया था | वह प्रतिदिन एक भेड़ को काटकर उसका मांस बेचा करता था | उसके जीवनयापन के लिए यह आवश्यक भी था |जब वह किसी एक भेड़ को पकड़ने आता तो सभी भेड़े उससे दूर भागती |जिससे उसे किसी एक भेड़ को पकडने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ती |इससे परेशान होकर वह अपने गुरु के पास गया |गुरु ने कहा कि प्रत्येक जीव की यह मानसिकता होती है कि वह मृत्यु के भय से भागता है |तुम अपनी प्रत्येक भेड़ को अलग से ले जाकर यह समझा दो कि मैं तुम्हे नहीं मारूंगा,किसी अन्य को ही पकड़ कर मारूंगा | गुरु की बात मानते हुए गडरिये ने सभी भेड़ों को अलग अलग लेजाकर प्रत्येक के कान में यह बात कह दी |दूसरे दिन जब वह गडरिया किसी एक भेड़ को मारने के लिए पकडने को आया तो सब भेड़े खड़ी खड़ी आराम से चरती रही |उसने आसानी के साथ एक भेड़ को पकड़ लिया |उसे आश्चर्य हुआ कि आज भेड़े उससे बचने के लिए इधर उधर नहीं भागी |कारण क्या था ,आप समझ ही गए होंगे ?प्रत्येक भेड़ यह सोच रही थी कि मुझे तो यह गडरिया मारेगा नहीं,क्योंकि उसने मुझे न मारने का आश्वासन दे रखा है |यह भ्रम भेड़ों की भयमुक्ति के लिए काफी था | परन्तु वह पशु है और मनुष्य एक इंसान | फिर भी मनुष्य भी ऐसे ही भ्रम में जी रहा होता है कि मेरी मृत्यु अभी कहाँ ? मर तो अन्य लोग रहे हैं |परन्तु यह मात्र भय से मुक्त होने के लिए भ्रम मात्र है , भय कही भीतर बैठा साँस ले रहा है |इस भ्रम से मुक्ति के लिए संत यही कहते हैं कि मृत्यु शाश्वत सत्य है,इससे भागो मत |मृत्यु का शोक मत करो |मृत्यु को सदैव याद रखें |
अब प्रश्न यह उठता है कि मृत्यु का शोक नहीं करें,तो क्या हम भयमुक्त हो जायेंगे ? नहीं, बिलकुल भी नहीं |मृत्यु को जब तक हम समझ नहीं पाएंगे तब तक इस भ्रम से निकल पाना मुश्किल है |सभी संत लोग कहते हैं कि मृत्यु को सदैव याद रखे |उनका कहने का अर्थ साफ है कि मृत्यु कभी भी आ सकती है क्योंकि यह शाश्वत सत्य है |अतः इससे डरे नहीं बल्कि इसको समझे | मृत्यु को एक अवस्था की तरह समझना-जैस बालक,युवा ,प्रोढ,वृद्धावस्था और अंत में शरीर की मृत्यु और फिर नया शरीर | जिस दिन मृत्यु को आप समझ लेंगे तब आपके मन से भय और भ्रम दोनों ही समाप्त हो जायेंगे | भय और भ्रम के जाते ही सत्य आपके सामने होगा | वही सत्य आपको अपनी वास्तविकता से परिचय करायेगा |
|| हरिः शरणम् ||
गीता में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को इस अज्ञान के बारे में समझाते हुए कहते है-
अशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्च भाषस्य |
गतासूनगतासूंश्च नानुशोचन्ति पण्डिताः || गीता २/११||
अर्थात्,हे अर्जुन ! तू न शोक करने योग्य मनुष्यों के लिए शोक करता है और पंडितों के से वचनों को कहता है ;परन्तु जिनके प्राण चले गए हैं ,उनके लिए और जिनके प्राण नहीं गए हैं ,उनके लिए भी पंडितजन शोक नहीं करते हैं |
गीता का समस्त ज्ञान मनुष्य के भय और भ्रम को दूर करने के लिए ही है |मैंने पहले ही यह स्पष्ट किया था कि मृत्यु का भय मनुष्य को सबसे अधिक होता है ,चाहे वह मृत्यु स्वयं की हो,परिजनों की हो या अन्य किसी की |इस भय से दूर भागने के लिए वह भ्रम का सहारा लेता है |उस मृत्यु का भय दूर करने के लिए वह मृत्यु से बचने की कोशिश करता है |जिस कारण से ही वह दूसरे क्रिया-कलापों का सहारा लेता है,जैसे मनोरंजन करना ,सांसारिक कार्यों में उलझे हुए रहना,पुस्तके पढते हुए ज्ञानार्जन करना आदि | परन्तु वह इन सब के बाद भी मृत्यु के भय से मुक्त नहीं हो पाता है |श्रीकृष्ण यहाँ पर अर्जुन को यही समझा रहे हैं कि किसी की भी मृत्यु का शोक करना उचित नहीं है |जो मर चुके हैं उनके लिए शोक करने का कोई औचित्य नहीं है और जो जिन्दा है उनके लिए भी किसी प्रकार का दुःख न करे,क्योंकि उन्हें भी एक न एक दिन मरना ही है |इसलिए किसी के भी लिए शोक न कर,क्योंकि मनुष्य शोक करने के योग्य ही नहीं है |भगवान यहाँ यही कहना चाहते हैं कि जिसने यहाँ जन्म लिया है उसकी मृत्यु भी होना निश्चित है |अतः तू शोक न करने योग्य मनुष्यों के लिए शोक क्यों कर रहा है ?
एक गडरिया था | वह प्रतिदिन एक भेड़ को काटकर उसका मांस बेचा करता था | उसके जीवनयापन के लिए यह आवश्यक भी था |जब वह किसी एक भेड़ को पकड़ने आता तो सभी भेड़े उससे दूर भागती |जिससे उसे किसी एक भेड़ को पकडने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ती |इससे परेशान होकर वह अपने गुरु के पास गया |गुरु ने कहा कि प्रत्येक जीव की यह मानसिकता होती है कि वह मृत्यु के भय से भागता है |तुम अपनी प्रत्येक भेड़ को अलग से ले जाकर यह समझा दो कि मैं तुम्हे नहीं मारूंगा,किसी अन्य को ही पकड़ कर मारूंगा | गुरु की बात मानते हुए गडरिये ने सभी भेड़ों को अलग अलग लेजाकर प्रत्येक के कान में यह बात कह दी |दूसरे दिन जब वह गडरिया किसी एक भेड़ को मारने के लिए पकडने को आया तो सब भेड़े खड़ी खड़ी आराम से चरती रही |उसने आसानी के साथ एक भेड़ को पकड़ लिया |उसे आश्चर्य हुआ कि आज भेड़े उससे बचने के लिए इधर उधर नहीं भागी |कारण क्या था ,आप समझ ही गए होंगे ?प्रत्येक भेड़ यह सोच रही थी कि मुझे तो यह गडरिया मारेगा नहीं,क्योंकि उसने मुझे न मारने का आश्वासन दे रखा है |यह भ्रम भेड़ों की भयमुक्ति के लिए काफी था | परन्तु वह पशु है और मनुष्य एक इंसान | फिर भी मनुष्य भी ऐसे ही भ्रम में जी रहा होता है कि मेरी मृत्यु अभी कहाँ ? मर तो अन्य लोग रहे हैं |परन्तु यह मात्र भय से मुक्त होने के लिए भ्रम मात्र है , भय कही भीतर बैठा साँस ले रहा है |इस भ्रम से मुक्ति के लिए संत यही कहते हैं कि मृत्यु शाश्वत सत्य है,इससे भागो मत |मृत्यु का शोक मत करो |मृत्यु को सदैव याद रखें |
अब प्रश्न यह उठता है कि मृत्यु का शोक नहीं करें,तो क्या हम भयमुक्त हो जायेंगे ? नहीं, बिलकुल भी नहीं |मृत्यु को जब तक हम समझ नहीं पाएंगे तब तक इस भ्रम से निकल पाना मुश्किल है |सभी संत लोग कहते हैं कि मृत्यु को सदैव याद रखे |उनका कहने का अर्थ साफ है कि मृत्यु कभी भी आ सकती है क्योंकि यह शाश्वत सत्य है |अतः इससे डरे नहीं बल्कि इसको समझे | मृत्यु को एक अवस्था की तरह समझना-जैस बालक,युवा ,प्रोढ,वृद्धावस्था और अंत में शरीर की मृत्यु और फिर नया शरीर | जिस दिन मृत्यु को आप समझ लेंगे तब आपके मन से भय और भ्रम दोनों ही समाप्त हो जायेंगे | भय और भ्रम के जाते ही सत्य आपके सामने होगा | वही सत्य आपको अपनी वास्तविकता से परिचय करायेगा |
|| हरिः शरणम् ||
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