Wednesday, February 5, 2014

अमृत-धारा |रहीम-५

                                                 रहीम एक समाजसुधारक भी रहे हैं |समय समय पर उन्होंने समाज में व्याप्त कुरीतियों पर प्रहार किये|उनकी एक सोच थी कि जब तक व्यक्ति स्वयं  नहीं सुधरेगा तब तक समाज नहीं सुधर सकता |उन्होंने समझदार और मूर्खों के बारे में स्पष्टतः अंतर किया है और कहा है कि जब तक ज्ञान को आचरण में नहीं लाया जायेगा तब तक सारा ज्ञान ही व्यर्थ है |जिसको ज्ञान तो है परन्तु ज्ञान को अमल में नहीं लाता तो वह फिर ज्ञानी न होकर मूर्ख ही है |इस बारे में उनका एक दोहा है-
                                          रहिमन नीर पहान,बूडे पर सींझे नहीं |
                                           तैसे मूरख जान,बुझे पर सूझे नहीं ||
                     रहीम इस दोहे के माध्यम से कहना चाहते हैं कि जैसे नदी के जल में पत्थर डूब तो जाता है परन्तु भीतर से भीगता नहीं है-"रहिमन नीर पहान,बूडे पर सींझे नहीं"|आप पानी में पत्थर फेंकिये,वह उसमे डूब जायेगा |कई दिनों तक डूबे रहने के बाद निकालिए और उसे तोड़ डालें |आप पाएंगे कि भीतर से उसकी कठोरता कई दिनों तक पानी में डूबे रहने के बाद भी कायम है |रहीम कहते हैं कि यही स्थिति एक मूर्ख व्यक्ति की होती है,जो समझता तो सब है परन्तु उस समझ का उपयोग नहीं करता है |पानी रुपी ज्ञान में वह आकंठ डूबा है परन्तु उस ज्ञान पर वह चलता नहीं है |ऐसे व्यक्ति को मूर्ख के अतिरिक्त और क्या कह सकते हैं ?इसी मूर्खता के बारे में अन्य स्थान पर रहीम कहते हैं-
                                            पात पात को सींचबो,बरी-बरी को लोन |
                                            रहिमन ऐसी बुद्धि को ,कहो बरैगो कौन ||
                        रहीम कहते हैं कि मूर्खता कैसी कैसी होती है-देखिये जरा |पौधे को पानी देने के स्थान पर पत्तों को पानी दिया जा रहा है-"पात पात को सींचबो"|अगर पौधे को पानी देना है तो उसकी जड़ों में देना होता है,केवल पत्तों को भिगोने से कुछ नहीं होगा |इसी प्रकार दाल की जब बडियां बनाई जाती है तो नमक पूरी दाल में डाला जाता है ,न कि बडियां बनाने के बाद एक एक बड़ी पर नमक डाला जाये |मूर्ख लोग एक एक बड़ी पर नमक डालते हैं-"बरी-बरी को लोन"|आगे रहीम कहते हैं कि ऐसी बुद्धि की कोई सराहना कैसे कर सकता है ?रहीम इसके बाद बुद्धिमत्ता के बारे में कहते हैं कि-
                                           एकै साधे सब सधै,सब साधे सब जाय |
                                        रहिमन मूल ही सींचबो,फूलहि फलहि अघाय ||
                         पौधे की जड में पानी देने से सब कार्य संपन्न हो सकते हैं |पेड़ के पत्ते,फूल और फल सभी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो सकते हैं |अतः समझदार व्यक्ति एक ही मुख्य कार्य कर सभी कार्य संपन्न कर सकते हैं |प्रत्येक व्यक्ति की ऐसी ही सोच होनी चाहिए ,तभी उसकी बुद्धि की प्रशंसा की जा सकती है |
                         उपरोक्त सभी दोहों की अध्यात्मिक व्याख्या है |परमपिता परमात्मा ही सर्वज्ञ है और उन तक पहुंचना ही एक मात्र लक्ष्य होना चाहिए |उसी की आराधना ही सबसे बड़ी आराधना है |संसार का मूल वही है |समझदार व्यक्ति दिन-रात उसी में रत रहते हैं |
                                              || हरिः शरणम् ||

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