रसखान,वाकई रस की खान ही है |मुस्लिम परिवार में जन्म लेने के बावजूद वे कृष्ण के परम भक्त थे |जितनी भी उन्होंने रचनाएँ की है,सब में कृष्ण के प्रति उनका प्रेम दृष्टिगोचर होता है |भक्ति-काल की इस विभूति ने रहीम और कबीर की तरह ही प्रेम को सर्वोच्च स्थान दिया है |परमात्मा की प्रार्थना में प्रेम अगर शामिल नहीं है तो वह प्रार्थना परमात्मा कैसे स्वीकार कर सकता है ?रसखान ने कृष्ण के जीवन के प्रेम-पक्ष को अपनी रचनाओं में प्राथमिकता दी है |प्रेम के बारे में रसखान कहते हैं कि-
प्रेम प्रेम सब कोऊ कहत,प्रेम न जानत कोइ |
जो जन जानत प्रेम जो , मरे जगत क्यूँ रोइ ||
रसखान भी यहाँ कबीर कि तरह ही प्रेम के बारे में कहते हैं कि सारा संसार प्रेम,प्रेम ,प्रेम ....कहता जरूर है ,परन्तु प्रेम क्या होता है यह बात कोई जानता तक नहीं है |सब लोगों ने प्रेम का नाम सुन जरूर रखा है परन्तु उनके जीवन में प्रेम परिलिक्षित कहीं भी नहीं होता है |आप प्यासे हो और केवल पानी ,पानी की रट लगाते रहोगे तो केवल क्या पानी का नाम लेते रहना ही आपकी प्यास बुझा देगा ?अगर प्यास बुझानी है तो फिर पानी पीना ही होगा |इसी प्रकार केवल प्रेम का नाम रटते रहने से प्रेम का अवतरण आपके जीवन में नहीं हो पायेगा |जिस दिन प्रेम का प्रादुर्भाव हो जायेगा उस दिन के बाद आपके जीवन से सारा रोना-धोना स्वतः ही मिट जायेगा |इसी को रसखान कहते हैं -"जो जन जानत प्रेम जो , मरे जगत क्यूँ रोइ "|अगर प्रेम को जानते हैं तो फिर यह संसार रो रो कर क्यों मर रहा है ?प्रेम में किसी भी प्रकार का दुःख-दर्द नहीं होता |प्रेम के साथ ही इन सब विकारों का अदृश्य होजाना भी स्वाभाविक है |प्रेम के बारे में रसखान समझते हैं कि -
अति सूक्ष्म कोमल अतिहि ,अति पतरौ अति दूर |
प्रेम कठिन सब ते सदा,नित इकरस भरपूर ||
प्रेम बहुत ही सूक्ष्म और कोमल है |सूक्ष्म इस दृष्टि से कि यह प्रेम केवल प्रेमपूर्ण ह्रदय वाले को ही नज़र आ सकता है,बिना ऐसे ह्रदय के प्रेम को देख पाना असंभव है |प्रेम जब महसूस हो जाता है तब लगता है कि यह बहुत ही पास है और जब इसका आभास किसी को नहीं हो पता तो उसके लिए प्रेम बहुत ही दूर की बात है |प्रेम ,इसी कारण से सदैव ही कठिन कहा गया है ,क्योंकि प्रेम करने के लिए व्यक्ति को खुद को मिटाना होता है |इस संसार में हर कोई दूसरे को ही मिटाने पर तुला है,स्वयं मिटने को तैयार ही नहीं है |ऐसे में प्रेम कहाँ से प्रकट होगा ?इसी कारण से प्रेम को सबसे कठिन कहा गया है |प्रेम का पदार्पण जब हो जाता है तो वह अस्थाई कभी भी नहीं होता |वह असीम ,सनातन और आनंदित करने वाला होता है |प्रेम सदैव ही एक समान रस प्रदान करने वाला है और यह रस भी कम नहीं,भरपूर प्रदान करता है |
|| हरिः शरणम् ||
प्रेम प्रेम सब कोऊ कहत,प्रेम न जानत कोइ |
जो जन जानत प्रेम जो , मरे जगत क्यूँ रोइ ||
रसखान भी यहाँ कबीर कि तरह ही प्रेम के बारे में कहते हैं कि सारा संसार प्रेम,प्रेम ,प्रेम ....कहता जरूर है ,परन्तु प्रेम क्या होता है यह बात कोई जानता तक नहीं है |सब लोगों ने प्रेम का नाम सुन जरूर रखा है परन्तु उनके जीवन में प्रेम परिलिक्षित कहीं भी नहीं होता है |आप प्यासे हो और केवल पानी ,पानी की रट लगाते रहोगे तो केवल क्या पानी का नाम लेते रहना ही आपकी प्यास बुझा देगा ?अगर प्यास बुझानी है तो फिर पानी पीना ही होगा |इसी प्रकार केवल प्रेम का नाम रटते रहने से प्रेम का अवतरण आपके जीवन में नहीं हो पायेगा |जिस दिन प्रेम का प्रादुर्भाव हो जायेगा उस दिन के बाद आपके जीवन से सारा रोना-धोना स्वतः ही मिट जायेगा |इसी को रसखान कहते हैं -"जो जन जानत प्रेम जो , मरे जगत क्यूँ रोइ "|अगर प्रेम को जानते हैं तो फिर यह संसार रो रो कर क्यों मर रहा है ?प्रेम में किसी भी प्रकार का दुःख-दर्द नहीं होता |प्रेम के साथ ही इन सब विकारों का अदृश्य होजाना भी स्वाभाविक है |प्रेम के बारे में रसखान समझते हैं कि -
अति सूक्ष्म कोमल अतिहि ,अति पतरौ अति दूर |
प्रेम कठिन सब ते सदा,नित इकरस भरपूर ||
प्रेम बहुत ही सूक्ष्म और कोमल है |सूक्ष्म इस दृष्टि से कि यह प्रेम केवल प्रेमपूर्ण ह्रदय वाले को ही नज़र आ सकता है,बिना ऐसे ह्रदय के प्रेम को देख पाना असंभव है |प्रेम जब महसूस हो जाता है तब लगता है कि यह बहुत ही पास है और जब इसका आभास किसी को नहीं हो पता तो उसके लिए प्रेम बहुत ही दूर की बात है |प्रेम ,इसी कारण से सदैव ही कठिन कहा गया है ,क्योंकि प्रेम करने के लिए व्यक्ति को खुद को मिटाना होता है |इस संसार में हर कोई दूसरे को ही मिटाने पर तुला है,स्वयं मिटने को तैयार ही नहीं है |ऐसे में प्रेम कहाँ से प्रकट होगा ?इसी कारण से प्रेम को सबसे कठिन कहा गया है |प्रेम का पदार्पण जब हो जाता है तो वह अस्थाई कभी भी नहीं होता |वह असीम ,सनातन और आनंदित करने वाला होता है |प्रेम सदैव ही एक समान रस प्रदान करने वाला है और यह रस भी कम नहीं,भरपूर प्रदान करता है |
|| हरिः शरणम् ||
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