भगवान बुद्ध एक बार किसी गांव से गुजर रहे थे |उनके प्रायः सभी स्थानों पर ज्यादातर प्रशंसक ही थे |प्रशंसा और आलोचना एक ही सिक्के के दो पहलू हैं|जिस व्यक्ति के प्रशंसक ज्यादा होते हैं वहाँ एक दो उसके आलोचक अवश्य ही होते हैं चाहे वह साक्षात् ईश्वर ही क्यों न हो |ऐसा ही बुद्ध के साथ भी था |उस गांव में सभी लोग उनका चरणवंदन कर रहे थे |तभी वहाँ पर उनका एक आलोचक आया और क्रोध में आकर उनको गलियां देने लगा |बुद्ध निर्विकार भाव से उसकी गालियां चुपचाप बैठे सुनते रहे |उनके एक दो शिष्यों ने उस व्यक्ति को रोकने की कोशिश की,परन्तु बुद्ध ने उन्हें संकेत से कुछ भी करने से मना कर दिया |गालियाँ देते देते जब वह बुद्ध को जरा भी विचलित न कर सका तो अंत में थक हारकर वह चुप हो गया |
तभी भगवान बुद्ध ने उसे पास बुलाकर पूछा कि अगर तुम किसी को कोई वस्तु दो और सामने वाला उसे लेने से इंकार कर दे तो वह वस्तु किस के पास रहेगी ?वह व्यक्ति बोला कि मेरे पास ही रहेगी और किसके पास जायेगी |बुद्ध बोले -"अच्छा,बड़े समझदार लगते हो |मैं तुम्हारी यह सभी गलियां लेने से इंकार करता हूँ |"अब वह व्यक्ति बुद्ध का मंतव्य समझ गया |वह उनके चरणों में गिर पड़ा और अपने किये हुए व्यवहार की क्षमा मांगने लगा |बुद्ध ने उसे क्षमा कर दिया |वह बुद्ध का प्रिय शिष्य बन गया |
कबीर इसी बात को अपने अंदाज़ में साधारण जन को समझाते हुए कहते हैं-
गारी ही सो ऊपजे,कलह कष्ट और मींच |
हारि चले सो साधू है,लागि चले सो नीच ||
कबीर आमजन को समझाते हुए कहते हैं कि आपसी गाली-गलौज से ही झगडा यानि कलह .कष्ट ,परेशानी और तनाव बढता है |मींच का अर्थ होता है दबाव या तनाव |जैसे कि आँख मींचना का अर्थ होता है दबावपूर्वक आँख को बंद करना यानि जबरदस्ती आँख बंद करना |गाली के प्रत्युतर में गाली देना कलह,कष्ट और तनाव ही पैदा करता है |आपसी गाली गलौज से कुछ भी फायदा नहीं होनेवाला | कबीर आगे कहते हैं कि जो गाली के प्रत्युतर में गाली देता है वह निम्न प्रकृति का व्यक्ति माना जा सकता है |"लागि चले सो नीच "जिसको गाली लगती है वह वास्तव में उस गाली के लगता है न कि गाली उसे लगती है |अगर आप गाली के न लगो तो गाली और उसे देने वाला आपका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते |समस्या तो यहीं आकर पैदा होती है कि आप स्वयं उस गाली के लग जाते हो, चिपक जाते हो |तब कलह,कष्ट और तनाव पैदा हो जाता है | परन्तु सज्जन व्यक्ति गाली के साथ चिपकते नहीं है ,वह गाली और गाली देने वाले को महत्व बिल्कुल भी नहीं देते हैं |इसीलिए कबीर कहते हैं कि ""हारि चले सो साधू है"-जो गाली को छोड़ देते हैं ,गाली की तरफ ध्यान नहीं देते हैं ,उसे नजरंदाज़ कर देते है ,वास्तव में ऐसे व्यक्ति ही साधू कहलाने के योग्य हैं |
संसार में जितने भी महापुरुष पैदा हुए हैं ,सभी गाली और गाली देने वाले के साथ ऐसा ही व्यवहार करते हैं |गांधीजी ने तो यहाँ तक कहा है कि जो तुम्हे एक गाल पर थप्पड़ मारे उसके सामने दूसरा गाल भी करदो |तभी तो उन्हें महात्मा कहा जाता है |कबीर ने सत्य ही कहा है कि गाली आपको तनाव देती है,कष्ट देती है और कलह पैदा करती है |गाली के साथ चिपके नहीं उसे त्याग दे |आपको सचमुच में ही बड़ी अद्भूत शांति का अनुभव होगा |
|| हरिः शरणम् ||
तभी भगवान बुद्ध ने उसे पास बुलाकर पूछा कि अगर तुम किसी को कोई वस्तु दो और सामने वाला उसे लेने से इंकार कर दे तो वह वस्तु किस के पास रहेगी ?वह व्यक्ति बोला कि मेरे पास ही रहेगी और किसके पास जायेगी |बुद्ध बोले -"अच्छा,बड़े समझदार लगते हो |मैं तुम्हारी यह सभी गलियां लेने से इंकार करता हूँ |"अब वह व्यक्ति बुद्ध का मंतव्य समझ गया |वह उनके चरणों में गिर पड़ा और अपने किये हुए व्यवहार की क्षमा मांगने लगा |बुद्ध ने उसे क्षमा कर दिया |वह बुद्ध का प्रिय शिष्य बन गया |
कबीर इसी बात को अपने अंदाज़ में साधारण जन को समझाते हुए कहते हैं-
गारी ही सो ऊपजे,कलह कष्ट और मींच |
हारि चले सो साधू है,लागि चले सो नीच ||
कबीर आमजन को समझाते हुए कहते हैं कि आपसी गाली-गलौज से ही झगडा यानि कलह .कष्ट ,परेशानी और तनाव बढता है |मींच का अर्थ होता है दबाव या तनाव |जैसे कि आँख मींचना का अर्थ होता है दबावपूर्वक आँख को बंद करना यानि जबरदस्ती आँख बंद करना |गाली के प्रत्युतर में गाली देना कलह,कष्ट और तनाव ही पैदा करता है |आपसी गाली गलौज से कुछ भी फायदा नहीं होनेवाला | कबीर आगे कहते हैं कि जो गाली के प्रत्युतर में गाली देता है वह निम्न प्रकृति का व्यक्ति माना जा सकता है |"लागि चले सो नीच "जिसको गाली लगती है वह वास्तव में उस गाली के लगता है न कि गाली उसे लगती है |अगर आप गाली के न लगो तो गाली और उसे देने वाला आपका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते |समस्या तो यहीं आकर पैदा होती है कि आप स्वयं उस गाली के लग जाते हो, चिपक जाते हो |तब कलह,कष्ट और तनाव पैदा हो जाता है | परन्तु सज्जन व्यक्ति गाली के साथ चिपकते नहीं है ,वह गाली और गाली देने वाले को महत्व बिल्कुल भी नहीं देते हैं |इसीलिए कबीर कहते हैं कि ""हारि चले सो साधू है"-जो गाली को छोड़ देते हैं ,गाली की तरफ ध्यान नहीं देते हैं ,उसे नजरंदाज़ कर देते है ,वास्तव में ऐसे व्यक्ति ही साधू कहलाने के योग्य हैं |
संसार में जितने भी महापुरुष पैदा हुए हैं ,सभी गाली और गाली देने वाले के साथ ऐसा ही व्यवहार करते हैं |गांधीजी ने तो यहाँ तक कहा है कि जो तुम्हे एक गाल पर थप्पड़ मारे उसके सामने दूसरा गाल भी करदो |तभी तो उन्हें महात्मा कहा जाता है |कबीर ने सत्य ही कहा है कि गाली आपको तनाव देती है,कष्ट देती है और कलह पैदा करती है |गाली के साथ चिपके नहीं उसे त्याग दे |आपको सचमुच में ही बड़ी अद्भूत शांति का अनुभव होगा |
|| हरिः शरणम् ||
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