सज्जन पुरुष और साधुजन कई बार अपने क्रियाकलापों से आम आदमी को जागरूक करते रहते हैं |किसी के पास लेखन की विधा होती है किसी के पास अपने कार्यों की और किसी के पास उदाहरण देकर समझाने की |ऐसे ही एक बार एक साधू-महात्मा रेल में अपने बड़े भारी भरकम सामान के साथ चढ़े |सभी लोगों के बीच जाकर एक सीट पर वे बैठ गए | भारी बक्से को उन्होंने अपने सिर पर ही उठाये रखा | नीच नहीं रखा ,जिसके कारण वे परेशानी में रहे |उन्हें इस स्थिति में देखकर पास ही बैठे एक व्यक्ति ने कहा-"महाराज जी,इस बक्से को नीचे रख दीजिए | बहुत भारी है |आराम से सफर कीजिये |"साधू बोले-"नहीं,मेरा बक्सा है | इसे मेरे को अपने साथ ही ले जाना है |इसे मैं नीचे क्यों कर रख दूं?"यह सुनकर पास बैठा दूसरा व्यक्ति बोल पड़ा-"महात्माजी ,यह रेल भी वहीं जायेगी,जहाँ आप जा रहे हो |बक्सा नीचे रख देने से वह कहीं दूसरी जगह नहीं चला जायेगा ?" इस पर भी साधू ने कहा कि "नहीं,यह मेरा बक्सा है ,इसे मैं ही उठाऊंगा |रेल में क्यों रखूं ?" तभी एक अन्य व्यक्ति ने कहा -"आप साधू हैं,समझदार हैं ,फिर भी यह मूर्खतापूर्ण बात क्यों कर रहे है ?बेवजह अपने बोझ को सिर पर उठा रखा है |बोझ को नीचे रख दीजिए ,आपकी यह यात्रा आरामदायक हो जायेगी |"
साधू बोले-"इस डिब्बे में आप सब समझदार लोग बैठें है,मैंने तो सोचा कि आप मुर्ख हैं |मैंने तो इस बक्से को ही सिर पर उठा रखा है,आप तो इस पूरे संसार का न जाने कितना बोझ अपने सिर पर लादे घूम रहे है | सब समझदार हो,केवल मेरे को ही समझा रहे हो,परन्तु खुद कुछ भी समझ नहीं रहे हो |"
यह जो संसार में मोह,माया,इर्ष्या और वैमनस्य का भार हर कोई अपने सिर पर उठाये घूम रहा है |वह इस संसार की यात्रा उस बोझ तले दबा हुआ कर रहा है |फिर वह कैसे उम्मीद कर सकता है कि उसकी यह जीवन-यात्रा सुगम होगी |रहीम इसी बात को अपने अनोखे अंदाज़ में कहते हैं-
भार झोंकी के भार में,रहिमन उतरे पार |
पै बुडे मंझधार में,जिनके सिर पर भार ||
यह जो दुनियादारी का बोझ आप अपने सिर पर उठाये फिर रहे हैं उसे भाड़ में झोक दो,बिलकुल ही समाप्त करदो |भाड़ वह बर्तन होता है जिसमे चने या मूगफली आदि सेके जाते हैं |अगर इस भार को सिर पर उठाये हुए ही संसार सागर से पार होना चाहते हो तो यह कदापि भी संभव नहीं है |सिर पर भार रखे अगर पार जाने की कोशिश करोगे तो पार होने की बजाय बीच मंझधार में ही डूब जाओगे |भार उठाकर घूमते रहना कोई समझदारी नहीं है |प्रत्येक व्यक्ति यही समझता है कि यह कार्य केवल और केवल मैं ही कर सकता हूँ |वह यह नहीं जानता कि तुम्हारे इस संसार में आने से पहले भी सब कार्य संपन्न होते थे और तुम्हारे इस संसार से चले जाने के बाद भी वैसे ही होते रहेंगे |फिर प्रत्येक बात का बोझ सिर पर उठाकर फिरने का अर्थ ही क्या है?यह बोझ आपकी जिंदगी को ही दुखदाई बनाएगा |इस संसार में तो होगा वही, जो होना है |और जो होना है वह पहले से ही निश्चित है |आप इसे चाहकर भी परिवर्तित नहीं कर सकते |
एक कब्रिस्तान के मुख्य दरवाजे पर लिखा था-
"यहाँ ऐसे सैंकड़ो लोग दफ़न हैं ,जो अपने जीवनकाल में कहा करते थे कि यह दुनियां उनके बिना नहीं चल सकती | आज वे इस दुनियां से चले गए,दुनियां फिर भी उनके बिना वैसे ही चल रही है |"
अब तो अपने सिर का भार उतार कर फैंक दीजिए........
|| हरिः शरणम् ||
साधू बोले-"इस डिब्बे में आप सब समझदार लोग बैठें है,मैंने तो सोचा कि आप मुर्ख हैं |मैंने तो इस बक्से को ही सिर पर उठा रखा है,आप तो इस पूरे संसार का न जाने कितना बोझ अपने सिर पर लादे घूम रहे है | सब समझदार हो,केवल मेरे को ही समझा रहे हो,परन्तु खुद कुछ भी समझ नहीं रहे हो |"
यह जो संसार में मोह,माया,इर्ष्या और वैमनस्य का भार हर कोई अपने सिर पर उठाये घूम रहा है |वह इस संसार की यात्रा उस बोझ तले दबा हुआ कर रहा है |फिर वह कैसे उम्मीद कर सकता है कि उसकी यह जीवन-यात्रा सुगम होगी |रहीम इसी बात को अपने अनोखे अंदाज़ में कहते हैं-
भार झोंकी के भार में,रहिमन उतरे पार |
पै बुडे मंझधार में,जिनके सिर पर भार ||
यह जो दुनियादारी का बोझ आप अपने सिर पर उठाये फिर रहे हैं उसे भाड़ में झोक दो,बिलकुल ही समाप्त करदो |भाड़ वह बर्तन होता है जिसमे चने या मूगफली आदि सेके जाते हैं |अगर इस भार को सिर पर उठाये हुए ही संसार सागर से पार होना चाहते हो तो यह कदापि भी संभव नहीं है |सिर पर भार रखे अगर पार जाने की कोशिश करोगे तो पार होने की बजाय बीच मंझधार में ही डूब जाओगे |भार उठाकर घूमते रहना कोई समझदारी नहीं है |प्रत्येक व्यक्ति यही समझता है कि यह कार्य केवल और केवल मैं ही कर सकता हूँ |वह यह नहीं जानता कि तुम्हारे इस संसार में आने से पहले भी सब कार्य संपन्न होते थे और तुम्हारे इस संसार से चले जाने के बाद भी वैसे ही होते रहेंगे |फिर प्रत्येक बात का बोझ सिर पर उठाकर फिरने का अर्थ ही क्या है?यह बोझ आपकी जिंदगी को ही दुखदाई बनाएगा |इस संसार में तो होगा वही, जो होना है |और जो होना है वह पहले से ही निश्चित है |आप इसे चाहकर भी परिवर्तित नहीं कर सकते |
एक कब्रिस्तान के मुख्य दरवाजे पर लिखा था-
"यहाँ ऐसे सैंकड़ो लोग दफ़न हैं ,जो अपने जीवनकाल में कहा करते थे कि यह दुनियां उनके बिना नहीं चल सकती | आज वे इस दुनियां से चले गए,दुनियां फिर भी उनके बिना वैसे ही चल रही है |"
अब तो अपने सिर का भार उतार कर फैंक दीजिए........
|| हरिः शरणम् ||
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